आखिर ज्योतिष की शुरुआत कैसे हुई : Yogesh Mishra

प्राचीन काल में जब आधुनिक सुविधाएं नहीं थी ! मनुष्य गुफाओं में रहता था और वस्त्र के स्थान पर जानवरों की खाल या पेड़ों के पत्रों का प्रयोग किया करता था ! तभी से मनुष्य के मन में प्राकृतिक घटनाओं को देखकर कौतूहल होता था और मनुष्य प्रकृति के परिवर्तनशील घटनाक्रम को निश्चित अवधि के अंतराल पर घटने-बढ़ने के कारण उसके पीछे छिपे गणितीय सिद्धांत को खोजने की जिज्ञासा में लग गया !

सूर्योदय से सूर्यास्त, चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं और ऋतु का बार-बार निश्चित समय अंतराल पर परिवर्तन, पुष्प का निश्चित समय पर खिलना और मुरझा जाना, फलों का निश्चित समय पर उगना, अनाज का निश्चित समय पर पकना, जैसी प्राकृतिक घटनाओं के जरिए समय का हिसाब-किताब रखने का प्रयास शुरू किया गया ! इन आकाशीय घटनाक्रमों ने मनुष्य को काफी हद तक सामाजिक और धार्मिक जीवन जीने के लिये मजबूर किया !

यह सत्य है कि आरंभिक दौर में ब्रह्मांड की व्याख्या करने के मनुष्य के तथ्य मात्र अवधारणा पर आधारित थे ! जैसे बीज गणित के सूत्र होते हैं ! उनका कोई गणितीय सिद्धांत नहीं था ! मात्र अनुमान और कल्पना ही थी ! जिससे अनुभव के आधार पर सिद्धांतों का निर्माण किया गया ! जिसमें कई पीढियां खप गयीं तब इस परिवर्तन के रहस्य को जानने का गणितीय आधार बन सका !

इसीलिए भगवान की कल्पना करना और उस पर विश्वास करना मनुष्य की मजबूरी बन गई और उसने सामान्य सिद्धांतों के आधार पर देवता शब्द की उत्पत्ति की और यह माना कि मनुष्य की तरह देवता भी पृथ्वी के ऊपर किसी लोक में रहता है, जोकि सभी पृथ्वी वासियों के सुख और दुख अर्थात प्राकृतिक आपदा व सुविधा का कारण है !

यदि अपने सुख और सुरक्षा के लिये उस देवता को खुश कर दिया जाये, तो हम समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं ! इस भय ने ही मानव समाज में पूजा, यज्ञ और कर्मकांड आदि की उत्पत्ति की ! जो आज सनातन जीवन शैली का आधार है ! जिसे समय-समय पर मनुष्य के ज्ञान के बढ़ने के साथ-साथ विकसित संशोधित और परिवर्तित किया जाता रहा है !

अपने कल्पना को आधार मानकर निरंतर शोध करते हुए हमारे मनीषी ऋषियों ने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि सारी भौतिक और प्राकृतिक क्रियाएं पंचमहाभूतों और देवताओं के अधीन हैं ! मनुष्य उनकी कृपा पर ही निर्भर हैं !

क्योंकि उस समय मानव प्रकृति की अजीबोगरीब लीलाओं को वैज्ञानिक तरीके से जानने-समझने में असमर्थ था ! बादलों की कड़कड़ाहट, बिजली की चमक, तेज बारिश, जंगलों में लगने वाला भयंकर आग, भूकम्प, बाढ़ आदि मनुष्य के मन को भय और आश्चर्य से भर देता था ! जन्म, मृत्यु, स्वप्न, बिमारी आदि तत्कालीन मनुष्य की दैनिक समस्याएं थी ! जिनका समाधान मनुष्य की समझ से परे थीं !

उस समय मनुष्यों की सबसे बड़ी समस्या मौसम परिवर्तन था ! जहां अच्छा मौसम उनके लिए सुख लाता था, वहीं खराब मौसम में उनका जीना ही दूभर कर देता था ! कभी कभार हजारों वर्षों के लिए पृथ्वी बहुत ठंडी हो जाती थी ! इस लंबे कालखंड को आज हम हिमयुग कहते हैं !

आज से तकरीबन तीस हजार वर्ष पहले पृथ्वी पर आखिरी हिमयुग आया था ! हिमयुग में पृथ्वी का ज्यादातर हिस्सा बर्फ से ढक गया था ! हिमयुग के दौरान अपने अस्तित्व रक्षा के लिये मनुष्य को सूर्य का ही सहारा था ! इसलिए दुनिया भर के लोगों ने सूर्य को खुश करने के लिए उसकी पूजा करना शुरू कर दिया !

लेकिन जैसे-जैसे अनुभव के आधार पर मनुष्य का मस्तिष्क विकसित होता गया और मनुष्य ने गणित के अंकों की खोज कर ली ! जिससे प्रकृति के बदलते क्रम को समझने में उसे आसानी होने लगी और मनुष्य ने अपने को प्रकृति के अनुरूप ढाल लिया !

उसने यह जान लिया कि कुछ घटनाएं निश्चित हैं ! जैसे सूर्योदय हमेशा पूरब में तथा सूर्यास्त हमेशा पश्चिम में ही होता है ! जिज्ञासा और अवलोकन की तीव्र भावना रखने वाले मनुष्य ने तारों से भरे आकाश, सूर्य, चन्द्रमा और ग्रहों के बारे में और अधिक जानने के लिए जाँच-पड़ताल करने का प्रयास किया ! इस प्रकार प्राकृतिक नियमों की खोज का सिलसिला शुरू हुआ ! मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति तथा इसी तर्कसंगत कुशलता से ही कालांतर में विज्ञान का जन्म हुआ !

वैदिक काल की कोई भी लिपि नहीं थी, इसलिए मानव अनुभव पर आधारित सिद्धांतों के संग्रह को वेद कहा गया ! जिसे श्रुति भी कहा गया है ! मानव अनुभव को संगृहीत करने वाले व्यक्ति को वेदों में ऋषि कहा गया ! जो गुरु शिष्य परंपरा पर गुरु द्वारा दिए गए उपदेश जिसे श्रुति कहा जाता था और शिष्य द्वारा याद रखे गए सिद्धांतों को स्मृति कहा जाता था ! यही इस प्राचीन ज्ञान को अगली पीढ़ी को देने की व्यवस्था थी ! पूरी तरह से श्रुति और स्मृति के आधार पर परंपरागत तरीके से यह मानव अनुभव आधारित ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों तक चलता रहा !

किंतु कालांतर में जब आहार-विहार-विचार और जीवन शैली में परिवर्तन के कारण मनुष्य की स्मृति कमजोर पड़ने लगी तब हमारे पूर्वजों द्वारा खोजे गए प्रकृति के मौलिक सिद्धांतों को बहुत क्षति होने लगी ! जिस समस्या से निपटने के लिए मनुष्य ने सर्वप्रथम विभिन्न तरह के चित्रों को बनाकर अपने याददाश्त के लिए सुरक्षित रखना शुरू कर दिया किंतु प्रत्येक विषय चित्र द्वारा सुरक्षित रखना संभव नहीं था ! अतः उन्हें संकेत अर्थात अक्षर या लिपि का आविष्कार करना पड़ा ! जिसे सर्व सुलभ समझाने के लिए कालांतर में व्याकरण का निर्माण करना पड़ा ! जिससे लिखने की परंपरा शुरू हुई और यहीं से शास्त्रों के निर्माण की परंपरा शुरू हुई !

वैदिक ऋषियों को सूर्य, चन्द्र, ग्रहों एवं तारों की गतिविधियों का अच्छा ज्ञान था ! परन्तु सूर्य, चन्द्र, ग्रहों और तारों की दूरियों के संबंध में उन्हें रावण के समय तक बिलकुल भी ज्ञान नहीं था ! जिस पर सर्वाधिक कार्य रावण और कुंभकर्ण ने किया ! जो दोनों ही अंतरिक्ष्य विज्ञानी थे ! इन्होंने सेटे लाईट भी बनायी थी, जो आज भी पृथ्वी का भ्रमण कर रही है ! इन्होंने वेदों के ऋचाओं का निर्माण भी किया था !

ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा से मनुष्य को बचाने के लिये मंत्र, स्त्रोत, ध्वनि, संगीत, वाध्य यंत्र आदि का भी अविष्कार किया था ! आयुर्वेद के सिद्धान्त व तंत्र के सिधान्तों की भी खोज की थी ! जिससे वैष्णव आक्रांता सदैव भयभीत रहते थे !

ऋग्वेद में 12 महीनों का चन्द्रवर्ष माना गया है ! वैदिक ऋषियों को सात ग्रहों, 27 नक्षत्रों, खगोलीय परिघटना उत्तरायण-दक्षिणायण का ज्ञान था ! वैदिक ऋषियों को ग्रहणों की बारंबारता का ज्ञान था, परन्तु ग्रहणों के कारण का ज्ञान नहीं था ! हमारे प्राचीन भारतीय पूर्वजों को खगोलविज्ञान की महत्ता के बारे में ज्ञान था !

उनका कहना था : ‘वेदस्य निर्मलं चक्षु: ज्योति: शास्त्रामनुत्त्तमम् !’ अर्थात् वेद के ज्ञान के सर्वाधिक निर्मल चक्षु के रूप में हमें ज्योति अर्थात खगोल विज्ञान को देखना चाहिए !

यहीं से ज्योतिष विज्ञान की शुरुआत हुई जो पहले विशुद्ध गणित पर आधारित थी किंतु कालांतर में इन गणित सिद्धांतों से मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण ज्योतिष में फलित सिद्धांत का समावेश हो गया ! जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी हजारों वर्ष तक विकसित और संशोधित किया जाता रहा ! जिस पर सर्वाधिक कार्य महर्षि भृगु, रावण, पराशर आदि ने किया !

किंतु मानवता का यह दुर्भाग्य है कि पिछले 1000 वर्षों से ज्योतिष पर कोई भी शोध कार्य नहीं हो रहा है !जिसके कारण निरंतर परिवर्तन शील ब्रह्माण्ड आज वर्तमान में सटीक फलित करने में असफल है ! इसीलिये गणितीय सिद्धांतों पर आधारित गणित ज्योतिष तो विश्वसनीय है किंतु फलित ज्योतिष में शोध न होने के कारण लगभग 30% भविष्यवाणियां गलत हो जाती हैं ! जो कि बहुत बड़ी क्षति है ! जिनमें सुधार की आवश्यकता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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