‘‘चार बांस, चैबीसअंगुल अष्ठ प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, चूके मत चौहान।।
मित्रो जैसा की आप जानते है हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मुस्लिम शासक सुल्तान मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी को 17 बार हराया और उसे क्षमा कर दिया था , लेकिन 18 वीं जब गौरी ने फिर आक्रमण किया था तब पृथ्वीराज चौहान अपने ही राज्य के एक व्यक्ति जयचंद की गद्दारी के कारण हार गया । और निर्दयी गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की आँखें ही निकाल ली ।
पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा।
वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई। चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।
इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया। पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया। चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे,
अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया। इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया:-
‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूके मत चौहान।।’’
अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है,
इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें,
तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई
और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया। गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-हाकार मच गया,
इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये। आज भी पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई की समाधी काबुल में विद्यमान हैं।
इस प्रकार भारत के अन्तिम हिन्दू प्रतापी सम्राट का 1192 में अन्त हो गया और हिन्दुस्तान में मुस्लिम साम्राज्य की नींव पड़ी।
आज भी अफगानिस्तान में मौजूद है पृथ्वीराज की ‘समाधि’
अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी इलाके में आज भी पृथ्वीराज की समाधि मौजूद है। गोरी की मजार पाकिस्तान के पंजाब के झेलम जिले में है। कई इतिहासकार गोरी की मजार के गजनी शहर में होने का दावा करते हैं।
पृथ्वीराज की समाधि का अपमान कर रहे हैं अफगानी
‘आर्म्स एंड आर्मर: ट्रेडिशनल वेपंस ऑफ इंडिया’ नाम की किताब लिखने वाले ई जयवंत पॉल के मुताबिक, अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी इलाके में मौजूद पृथ्वीराज की समाधि आज बहुत ही बुरी हालत में है। गोरी की मौत के 900 साल बाद भी अफगानिस्तानी और पाकिस्तानी उसे अपना ‘हीरो’ मानते हैं। ये लोग गोरी की मौत का बदला लेने के लिए अपना गुस्सा पृथ्वीराज की समाधि पर निकालते हैं। पॉल की किताब के मुताबिक पृथ्वीराज की मजार के ऊपर एक लंबी मोटी रस्सी लटकी हुई है। कंधे की ऊंचाई पर इस रस्सी में गांठ लगी हुई है। स्थानीय लोग रस्सी की गांठ को एक हाथ में पकड़कर मजार के बीचोबीच अपने पैर से ठोकर मारते हैं।