स्वाधिष्ठान चक्र कैसे सिद्ध करें ? स्वाधिष्ठान चक्र के बारे मे विस्तार से जानिए । Yogesh Mishra

स्वाधिष्ठान चक्र कैसे सिद्ध करें ?

मूलाधार चक्र से थोड़ा ऊपर और नाभि से नीचे यह चक्र स्थित है।  इसका मूल मंत्र ” वं ” है। यह चक्र जल तत्व  से सम्बंधित है। इस चक्र के जागृत होने पर शारीरिक समस्या समाप्त हो जाती है।  शरीर में कोई भी विकार जल तत्व के ठीक न होने से होता है ,

इसके जाग्रत होने से जल तत्व का पूर्ण ज्ञान होता है , शारीरिक विकार का नाश हो जाता है ,जल सिद्ध की प्राप्ति होती है

 

द्वितीय चक्र उपस्थ में स्वाधिष्ठान चक्र के रूप में स्थित है। इसमें 6 पंखुड़ियों वाला कमल होता है। यह कमल 6 पंखुड़ियों वाला और 6 योग नाड़ियों का मिलन स्थान है। यहां 6 ध्वनियां- वं, भं, मं, यं, रं, लं निकलती रहती है। इस चक्र का प्रभाव प्रजनन कुटुम्ब कल्पना आदि से है। स्वाधिष्ठान चक्र के जल तत्व में मूलाधार का पृथ्वी तत्व विलीन होने से कुटुम्बी और मित्रों से सम्बंध बनाने में कल्पना का उदय होने लगता है। इस चक्र के कारण मन में भावना जड़ पकड़ने लगती है। यह चक्र भी अपान वायु के अधीन होता है।

इस चक्र वाले स्थान से ही प्रजनन क्रिया सम्पन्न होती है तथा इसका सम्बंध सीधे चन्द्रमा से होता है। समुद्रों का ज्वार-भाटा चन्द्रमा से नियंत्रित होता है। मनुष्य के शरीर का तीन चौथाई भाग जल है। मन मनुष्य की भावनाओं के वेग को प्रभावित करता है। स्त्रियों में मासिकधर्म आदि चन्द्रमा से सम्बंधित है। उपरोक्त कार्यो का नियंत्रण स्वाधिष्ठान चक्र से होता है। यह सभी क्रियाएं स्वाधिष्ठान चक्र के द्वारा ही सम्पन्न होती है। इस चक्र के द्वारा मनुष्य के आंतरिक और बाहरी संसार में समानता स्थापित करने की कोशिश रहती है। इसी चक्र के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान करने से मन शांत होता है तथा धारणा व ध्यान की शक्ति प्राप्त होती है। इससे आवाज मधुर बनती है।

स्वाधिस्ठानचक्र मे छः पंखडियाँ होती है! स्वाधिस्ठानचक्र सफेद रंग का होता है, साधारण कडवी सी रुचि होती है! इस चक्र को महाभारत मे श्री नकुल जी का चक्र कहते है! श्री नकुल जी का शंख सुघोषक है! यह चक्र ध्यान कर रहे साधक को आध्यात्मिक सहायक शक्तियों की तरफ मन लगा के रखने मे सहायता करता है! स्वाधिस्ठान चक्र मे ध्यान करने से पवित्र बांसुरी वादन की ध्वनी सुनाई देगी! साधक का हृदय पवित्र बांसुरी वादन सुन के स्थिर होने लगते है, साधक को इधर द्विज कहते है! द्विज का अर्थ दुबारा जन्म लेना! इधर साधक को पश्चाताप होता है कि मैने इतना समय बिना साधना किए व्यर्थ ही गवाया, इसी कारण द्विज कहते है! सुनाई देने को संस्कृत भाषा मे वेद कहते है!

इसी कारण तिरुपति श्रीवेंकटेश्वर स्वामि चरित्र मे स्वाधिस्ठानचक्र को वेदाद्रि कहते है! इधर जो समाधि मिलती है उस को सविचार संप्रज्ञात समाधि या सामीप्य समाधि कहते है! इस चक्र मे ध्यान करने से साधक को क्रिया शक्ति की प्राप्ति होती है! इस का अर्थ हाथ, पैर, मुख, शिश्न( मूत्रपिडों मे) और गुदा यानि कर्मेंद्रियों को शक्ति प्राप्त होती है!ध्यान फल को साधक को ‘’ध्यानफल श्री ब्रह्मार्पणमस्तु’’ कहके उस चक्र के अधिदेवता को अर्पित करना चाहिये! स्वाधिस्ठान चक्र मे आरोग्यवान यानि साधारण व्यक्ति को 24 घंटे 144 मिनटों मे 6000 हंस होते है!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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