वानर अर्थात “वने भवं वानम्, राति (रा आदाने) गृह्णाति ददाति वा ! वानं वन सम्बन्धिनं फलादिकं गृह णाति ददाति वा !! दूसरे शब्दों में जो वन में उत्पन्न होने वाले फलादि को खा कर जीवन निर्वाह करता है ! वह वानर अर्थात वन में रहने वाला नर कहलाता है !
वर्तमान में जिसे आदिवासी, जंगलों व पहाड़ों में रहने वाले और वहाँ पैदा होने वाले पदार्थों पर निर्वाह करने वाले ‘गिरिजन’ कहलाते हैं ! इसी प्रकार वनवासी और वानप्रस्थ वानर वर्ग में गिने जा सकते हैं ! वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति, प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता !
जिसके द्वारा जाति एवं जाति के चिह्नों को प्रकट किया जाता है, वह आकृति है ! प्राणिदेह के अवयवों की नियत रचना जाति का चिह्न होती है ! सुग्रीव, बालि आदि के जो चित्र देखने में आते हैं ! उनमें उनके पूंछ लगी दिखाई जाती है परन्तु उनकी स्त्रियों के पूंछ नहीं होती ! नर-मादा में इस प्रकार का भेद अन्य किसी वर्ग में देखने में नहीं मिलते हैं ! तुलसीदास द्वारा शुरू की गयी राम लीला को रोचक बनाने के लिये वन नरों को पूंछ लगा कर बन्दर जैसा दिखलाया गया और इस मंचन के कारण हनुमान आदि को बन्दर माना लिया गया ! जबकि यह बन्दर नहीं थे !
जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि सुग्रीव की पत्नी रूमा था तथा बलि की पत्नी का नाम तारा था ! जो कि लंका के राज वैद्ध सुषेण की बेटी थी ! बलि और सुग्रीव इन पर आसक्त थे ! तब अपने मामा बलि और सुग्रीव की ख़ुशी के लिये हनुमान ने लंका से इन दोनों कन्याओं का अपरहण कर अपना कर्तव्य निभाते हुये रूमा का विवाह सुग्रीव से और तारा का विवाह बलि से करवाया था !
जबकि हनुमान की माता अंजनी की मां अर्थात हनुमान की नानी गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या थी ! बालि और सुग्रीव की अंजना सौतेली बहन थी ! बलि का जन्म इन्द्र और अहिल्या से हुआ था तथा सुग्रीव का जन्म सूर्य और अहिल्या से हुआ था ! जिसकी जानकारी गौतम ऋषि को उसकी बेटी अंजनी ने दी थी ! तब गौतम ऋषि ने चरित्रहीनता के आरोप में अहिल्या का परित्याग कर दिया था !
सुग्रीव के भाई बाली ने अपनी बहन का विवाह महा प्रतापी रावण से किया था ! जिससे रावण को दो पुत्र संतानों की प्राप्ति हुई थी ! जामवंत रावण के पिता महर्षि विश्रवा के बड़े भाई थे !
ऐसे ही अनेक प्रमाण मिलते हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि रावण की सेना में बंदर नहीं बल्कि वेद, उपनिषद, वैदिक व्याकरण, आयुर्वेद, राजनीति, कूटनीति, लोकनीति आदि के ज्ञाता मनुष्य ही थे ! क्योंकि वह वन अर्थात जंगल में रहते थे और वन में स्वत: उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थों को खाते पीते थे ! इसलिये उन्हें वन नर कहा जाता था !
किंतु दुर्भाग्य से जब अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को गिरफ्तार कर उनके द्वारा रचित रामचरितमानस को जप्त करके टोडरमल को दे दिया ! तब इसके बाद जब गोस्वामी तुलसीदास अकबर के कैद से आजाद हुये ! तो उन्होंने दोबारा रामचरितमानस लिखने के स्थान पर रामचरित्र का मंचन शुरू किया ! जिसमें आम जनमानस को आकर्षित करने के लिये उन्होंने सभी वन नर को बंदर की तरह प्रस्तुत किया ! यहीं से यह भ्रांति फैली के राम की सेना में सभी बंदर थे ! जबकि ऐसा नहीं है !!