बैंकिंग व्यवस्था एक विश्वव्यापी षडयंत्र जानिए कैसे : Yogesh Mishra

आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि दुनिया भर में महंगाई, बेरोजगारी, हिंसा के लिये आधुनिक बैकिंग प्रणाली ही जिम्मेदार है ! इन बैंकों का मायाजाल लगभग विश्व के हर देश में फैला है ! पर उसकी असली बागडोर अमेरिका के 13 शीर्ष लोगों के हाथ में है और यह शीर्ष लोग भी मात्र 2 परिवारों से हैं ! जो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था नियंत्रित करते हैं ! सुनने में यह अटपटा लगेगा पर यही सत्य है !

अब आईये विस्तार से चर्चा करते हैं ! सीधा सवाल यह है कि भारत के जितने भी लोगों ने अपना पैसा भारतीय या विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है, अगर वह कल सुबह इसे मांगने बैंक पहुंच जायें, तो क्या यह बैंक 10 फीसदी लोगों को भी उनका जमा पैसा लौटा पाएंगे ! जवाब है ‘नहीं’ !

क्योंकि इस बैंकिंग प्रणाली में जब भी सरकार या जनता को कर्ज लेने के लिये पैसे की आवश्यकता पड़ती है ! तो वह ब्याज समेत पैसा लौटाने का वायदा लिखकर बैंक के पास जाते हैं ! बदले में बैंक उतनी ही रकम आपके खातों में लिख देते हैं ! इस तरह से देश का 95 फीसदी पैसा व्यवसायिक बैंकों ने खाली खातों में लिखकर पैदा किया है ! न कि भौतिक रूप से देकर ! इस तरह यह रकम बस सिर्फ विभिन्न खातों में ही लिखा रहता है ! जो वास्तव में कभी बैंक से बाहर नहीं जाता है और बैंक का पैसा बैंक में ही रहने के बाद भी ब्याज के रूप में बढ़ता रहता है ! यही इस खेल की मायागिरी है !

उदहारण के लिये हम भारतीय रिजर्व बैंक को लेते हैं जो मात्र 5 प्रतिशत पैसे ही बनाता है ! वह भी कागज के नोट के रूप में हमें दिखाई पड़ते हैं ! जबकि वह हमारा यथार्थ सोना ले लेते हैं ! इसलिये बैंकों ने 1933 में गोल्ड स्टैडर्ड खत्म कराकर आपके कागज के रूपये की ताकत खत्म कर दी ! अब आप जिसे रूपया समझते हैं ! दरअसल वह एक वादा (रूक्का) मात्र है ! जिसे स्वीकार करना आपकी क़ानूनी मजबूरी है ! अन्यथा आपको जेल जाना होगा !

जबकि इसकी कीमत एक रद्दी कागज के ढ़ेर से ज्यादा कुछ भी नहीं ! जैसा कि नोट बंदी के बाद हजार और पांच सौ के नोट रद्दी में बदल गये !

इस रूक्के पर क्या लिखा है ! ‘मैं धारक को एक हजार रूपए अदा करने का वचन देता हूं’, यह कहता है भारत का रिजर्व बैंक ! जिसकी गारंटी मात्र भारत सरकार लेती है ! किन्तु वह इसे जारी नहीं करती है ! जैसे किसी प्राइवेट कम्पनी की गारेंटी विश्वसनीयता बढ़ने के लिये सरकार ले लेती है !

इसलिये आपने देखा होगा कि सिर्फ एक के नोट पर भारत सरकार लिखा होता है और बाकी सभी नोटों पर रिजर्व बैंक लिखा होता है ! इस तरह से लगभग सभी नोट बैंक बनाते या छपते हैं ! इनका सरकार से कोई लेना देना नहीं है ! और यह भी जानिये कि रिजर्व बैंक के पास जितना सोना जमा है वह उससे कई दर्जन गुना ज्यादा कागज के नोट छापकर देश में चलता है ! जिन नोटों को पाने के लिये आप रातों दिन मेहनत करते हैं या अपना घर जमीन गिरवीं रखते हैं ! इस तरह यह कागज का नोट रिजर्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था को झूठे वायदों पर चला रहा है !

जबकि 1933 से पहले हर नागरिक को इस बात की तसल्ली थी कि जो कागज का नोट उसके हाथ में है, उसे लेकर वह अगर बैंक जायेगा, तो उसे उसी मूल्य का सोना या चांदी मिल जायेगा ! कागज के नोटों के प्रचलन से पहले चांदी या सोने के सिक्के चला करते थे ! उनका मूल्य उतना ही होता था, जितना उस पर अंकित रहता था, यानि कोई जोखिम नहीं था !

पर, अब आप बैंक में अपना एक लाख रूपया जमा करते हैं, तो बैंक अपने अनुभव के आधार पर उसका मात्र 10 फीसदी रोक कर 90 फीसदी कर्जे पर दे देता है और उस पर ब्याज कमाता है ! अब जो लोग यह कर्जा लेते हैं, वह इन कागज के नोटों के बदले घर, जमीन, सोना, चांदी, आदि बैंकों को गिरवीं देते हैं और कागज के नोटों भी नहीं लेते है बल्कि मात्र अपने खाते में रकम लिखवा लेते हैं फिर मेहनत की कमाई से पेट काट कर उस पर ब्याज देते हैं ! और खुद आभावग्रस्त बने रहते हैं ! जबकि बैंक फलते फूलते रहते है ! और पैसा न दे पाने पर आपकी सम्पत्ति भी हड़प कर लेते हैं !

इस तरह बैंक आपको बेबकूफ बना कर आप ही के पैसे का मूल्य चुराकर बिना किसी लागत के 100 गुनी संपत्ति अर्जित कर लेता हैं और आपको पता भी नहीं चलता है ! इस प्रक्रिया में आपकी सम्पत्ति नष्ट हो रही है और आप इस भ्रम में रहते हैं कि आपका पैसा बैंक में सुरक्षित है !

दरअसल, वह पैसा नहीं बस सिर्फ केवल एक वायदा है ! जो कागज के नोट पर छाप कर पूरा किया जाता है ! पर, यदि आप कभी उस वायदे के बदले (नोट के) अगर आप जमीन, अनाज, सोना या चांदी मांगना चाहें, तो देश के कुल 10 फीसदी लोगों को ही बैंक यह सब दे पाएंगे ! 90 फीसदी के आगे हाथ खड़े कर देंगे कि न तो हमारे पास सोना/चांदी है, न संपत्ति है और न ही अनाज, यानि पूरा बैंक का कारोबार वायदों का खेल खेल कर आपकी सम्पत्ति हड़प रहा है अर्थात जिसे आप नोट समझते हैं उसकी कीमत मात्र रद्दी से ज्यादा कुछ नहीं है !

यह सारा भ्रमजाल इस तरह फैलाया गया है कि एकाएक कोई अर्थशास्त्री, विद्वान, वकील, पत्रकार, अफसर या नेता आपकी इस बात से सहमत नहीं होगा और आपकी हंसी उड़ाएगा ! पर, हकीकत यह है कि बैंकों की इस रहस्यमयी माया को हर देश के हुक्मरान एक खरीदे गुलाम की तरह छिपाकर रखते हैं और बैंकों के इस जाल में एक कठपुतली की तरह अपनी भूमिका निभाते हैं !

पिछले 70 साल का इतिहास गवाह है कि जिस-जिस राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ने बैंकों के इस फरेब का खुलासा करना चाहा या अपनी जनता को कागज के नोट के बदले संपत्ति देने का आश्वासन चरितार्थ करना चाहा, उस-उस राष्ट्राध्यक्ष की इन अंतर्राष्ट्रीय बैंकों के मालिकों ने हत्या करवा दी ! इसमें खुद अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन व जॉन.एफ. कैनेडी, जर्मनी का चांसलर हिटलर, ईरान (1953) के राष्ट्रपति, ग्वाटेमाला (1954) के राष्ट्रपति, चिले (1973) के राष्ट्रपति, इक्वाडोर (1981) के राष्ट्रपति, पनामा (1981) के राष्ट्रपति, वैनेजुएला (2002) के राष्ट्रपति, ईराक (2003) के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन, लीबिया (2011) का राष्ट्रपति गद्दाफी शामिल है !

जिन मुस्लिम देशों में वहां के हुक्मरान पश्चिम की इस बैकिंग व्यवस्था को नहीं चलने देना चाहते, उन-उन देशों में लोकतंत्र बहाली के नाम पर हिंसक आंदोलन चलाए जा रहे हैं, ताकि ऐसे शासकों का तख्तापलट कर पश्चिम की इस लहूपिपासु बैकिंग व्यवस्था को लागू किया जा सके ! खुद उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने एक बार कहा था कि ‘अगर अमेरिका की जनता को हमारी बैकिंग व्यवस्था की असलियत पता चल जाए, तो कल ही सुबह हमारे यहां क्रांति हो जायेगी !’

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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