सितंबर 2019 से देहरादून ओ.एन.जी.सी. सभागार से हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने अन्य मुख्य जजों के साथ मिलकर ‘संकल्प नशामुक्त देवभूमि’ नाम से अभियान शुरू किया ! नशे के खिलाफ चीफ जस्टिस के इस अभियान का पुलिस विभाग, कई शिक्षण संस्थानों सहित तमाम संस्थानों ने सहयोग किया है ! इन सभी अधिकारीयों ने इस अभियान के तहत देव भूमि को नशा मुक्त करने का संकल्प लिया !
वहीं दूसरी तरफ अब अमेरिका और फ्रांस के बाद उत्तराखंड में भांग की फसल पर फोकस कर रही “जी !पी ! हेम्प एग्रोवहशन स्टार्टअप “अभी तक सिर्फ विदेशों में भांग से बने विभिन्न प्रॉडक्ट तैयार करने पर शोध होते रहे थे वह अब भारत की देव भूमि उत्तराखंड में एक स्टार्टअप शुरू करने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है !
यमकेश्वर ब्लॉक में भांग की फसल पर फोकस कर रही जीपी हेम्प एग्रोवहशन ने एक नया स्टार्टअप शुरू किया है जिसमें वह भांग के बीजों से तैयार औषधियां, साबुन, बैग, पर्स आदि बाजार में उतारने के साथ ही अब उससे ईंटें भी तैयार कर रहे हैं !”
भांग की खेती के लिये उत्तराखंड राज्य में 3.17 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि को भविष्य में प्रयोग में लाया जा सकता है ! यह भूमि सिंचाई के साधन न होने, बंदरों, सुअर व अन्य जंगली जानवरों के आतंक के कारण सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में यह बंजर भूमि व्यर्थ ही पड़ी हुई है ! ऐसे में यमकेश्वर ब्लॉक में भांग की खेती पर फोकस कर रही जीपी हेम्प एग्रोवहशन ने स्टार्टअप्स शुरू किया है ! वह भांग के के बीजों और रेशे से दैनिक उपयोग की वस्तुओं के निर्माण की तैयार कर रहे हैं !
भांग का नाम आते ही अक्सर लोगों के जहन में सिर्फ नशे का ख्याल आता है ! लेकिन भांग सिर्फ नशे के लिये ही नहीं बल्कि कई अन्य तरह से भी उपयोगी है ! भांग पर रिसर्च अभी तक भारत में प्रतिबन्धित होने के कारण सिर्फ विदेशों में ही होती रही है ! लेकिन इस बदलते दौर के साथ अब उत्तराखंड के युवा भी भांग की उपयोगिता को समझने लगे हैं ! यही कारण है कि अब इसे लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ने लगी है ! फिलहाल, भांग के बीजों से यमकेश्वर के युवा अब रामबाण औषधियां, साबुन, लुगदी के बैग, पर्स आदि बना कर बाजार में उतार चुके हैं !
पिछले दिनो वह भांग पर आधारित अपने उत्पादों को लेकर आई !आई !एम ! के उत्तिष्ठा-2019 में भी पहुंचे ! वह उत्पादों की ऑनलाइन मार्केटिंग भी करते हैं ! उनके समूह में आठ लोग हैं ! वह बतलाते हैं कि भांग का पूरा पेड़ बहुपयोगी है ! इसके बीजों से निकलने वाले तेल से औषधियां बनती हैं ! इस तेल को “एनाया” नाम दिया गया है, जिसका अर्थ केयर करना है !
इसका उपयोग खाद्य तेल के रूप में भी किया जा सकता है ! इसके अलावा अन्य जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार तेल जोड़ों के दर्द, स्पाइनल पैन, सिरोसिज जैसे असाध्य बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किया जा रहा है ! इसके पौधे की लुगदी से साबुन भी तैयार किया जा रहा है ! भांग के रेशे से धागा बनाकर हस्तशिल्प कारीगरों की ओर से बैग, पर्स, कंडी या अन्य उपयोग की वस्तुएं उत्पादित की जा रही हैं !
इसी भांग के रेशे से ही नोटबुक भी बनाई जा रही है ! खास बात यह है कि भांग से निर्मित उत्पादों को सात से आठ बार तक रिसाइकिल किया जा सकता है लेकिन उनके प्रॉडक्शन की शुरुआत छोटे पैमाने पर होने के कारण इसमें मुनाफा कम पड़ रहा है ! देश में जल्द ही भांग के पौधों से बनी ईंटों से बनाये घर और स्टे होम नजर आएंगे ! इससे न केवल लोगों को सस्ते दामों में ईंटें मिलेंगी बल्कि युवाओं को रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे !
भांग के उत्पाद का व्यवसाय मात्र 20 हजार लगाकर घर बैठे ही शुरू कर सकते हैं ! इस दिशा में काम करने से पहाड़ से होने वाले पलायन को रोका जा सकता है ! पहाड़ों में भांग के पौधे बड़े स्तर पर मिल जाते हैं ! इसलिये कच्चे माल की कोई कमी नहीं है ! वह लोग भांग की लकड़ी, चूने और पानी से ईंट बना रहे हैं, जो समय के साथ-साथ कार्बन डाई आक्साइड को सोख लेती हैं ! भांग की ईंट और लकड़ी के पार्टीशन से बने भवन टिकाऊ होने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिये भी अनुकूल साबित होते हैं ! मध्यप्रदेश में भांग से बनी ईंट का उपयोग किया जा रहा है ! भांग आधारित उद्योग उत्तराखंड के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं !
भांग की खेती के लिये बेहद कम पानी और समय की जरूरत होती है ! वह बताते हैं कि जो ईंटें उनके यहां बनाई जा रही हैं, वह एंटी वैक्टीरियल के साथ ही भूकंप रोधी भी हैं ! काम को बढ़ावा देने के लिये उन्होंने उत्तराखंड हैंप एसोसिएशन बनाई है, जिसमें करीब 15 लोग जुड़े हैं ! भांग के रेशे से साबुन, तेल, डायरी, झोला और घरों के निर्माण में प्रयोग होने वाले ब्लाक तैयार करने में कामयाबी हासिल की है !
काफी शोध के बाद उन्होंने पहाड़ पर बहुतायत में उगने वाले भांग के पौधों को सकारात्मक रूप से रोजगार का जरिया बनाने का निर्णय लिया ! इससे न सिर्फ भांग के प्रति लोगों का नजरिया बदलेगा बल्कि पहाड़ के गांवों से होने वाले पलायन पर भी रोक लग सकेगी ! एक साल की मेहनत में ही वहां के युवाओं ने भांग के पौधों से ईंट और अन्य सामान बनाने का काम शुरू कर दिया है !
जिससे गांवों में रोजगार पैदा करने के लिये एक से 10 लाख रुपए तक में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई जा सकती है ! पॉलिथीन का इस्तेमाल खत्म करने के लिये भांग के पौधे की भूमिका अहम हो सकती है ! इसके रेशे से बायो प्लास्टिक तैयार किया जा सकता है ! इससे बनी पॉलिथीन या बोतल फेंक देने पर महज छह घंटे में नष्ट हो जाती हैं ! अभी भांग के रेशे से तैयार उत्पादों की कास्ट थोड़ा ज्यादा है ! वृहद स्तर पर इसका उद्योग लगाया जाये तो इसके उत्पाद काफी सस्ते और पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल भी होंगे ! इस समय ऋषिकेश में भांग के रेशे से तैयार टीशर्ट, बैग, ट्राउजर आदि नेपाल से आयात हो रहा है ! यह शीघ्र ही उतराखंड में ही तैयार होने लगेंगे !
एलोरा की गुफाओं में भी भांग के पेंट से ही पुताई की गई थी जो कि आजतक भी खराब नहीं हुई है ! दरअसल एलोरा की गुफाओं से पहले अजंता की गुफाएं बनाई गई थीं, जहां पर बनाई गई मूर्तियों में कुछ ही सालों में फंगस लग गई थी, जिसे देखते हुए एलोरा की गुफाओं में मूर्ति बनाने से पहले भांग से पेंटिग की गई, यही कारण है कि आज भी एलोरा की गुफाओं में बनी मूर्तियां सुरक्षित हैं !
यहां के भांग की वस्तुओं के निर्माता बड़ी संख्या में उत्तराखंड के युवाओं और महिलाओं को रोजगार दे रहे हैं ! युवा और महिलायें अपने ही गांव में रोजगार पाकर खुश हैं !
बस डर यही है कि यह भांग की खेती कहीं उत्तराखंड को भविष्य में अफगान न बना दे ! भांग के विभिन्न रूप में उपलब्ध चरस, गांजा, अफीम, हैरोइन (स्मैक, ब्राउन शुगर मारफीन, पैथेडीन) आदि व्यसन की नार्कोटिक श्रेणी में सम्मिलित हैं और प्रायः भांग के पौधों से ही प्राप्त होते हैं ! भांग के अनियंत्रित उत्पाद से नशीली दवाओं का नेटवर्क सक्रीय हो सकता है !
वैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, पोर्टो रिको और डोमिनिक गणराज्य में प्रवेश करने वाले नशीली दवाओं का एक बड़ा हिस्सा मेडेलिन कार्टेल द्वारा नियंत्रित होता था, जिनमें से अधिकाँश कोकीन पेरू और बोलिविया से आता था, क्योंकि शुरुआती दौर में कोलंबियाई कोका की गुणवत्ता घटिया स्तर की थी ! एस्कोबार के उत्पाद कई अन्य देशों, ज्यादातर अमेरिका के आसपास तक पहुँच गये, हालांकि यह कहा जाता है कि उसका नेटवर्क यहाँ से काफी दूर एशिया तक भी पहुँच गया है !
हैरोइन, मार्फीन, पेथेडीन और कोकीन या तो कश के रूप में लिये जाते हैं या फिर तरल पदार्थ के रूप में इंजेक्शन द्वारा अफीम, गांजा, चरस आदि को व्यक्ति या तो नाक से खींचता है या चिलम का सहारा लेता है लेकिन इन सभी पदार्थों का निर्माण भांग के पौधे से ही होता है !
इन नशीले पदार्थों के अत्यधिक प्रयोग से व्यक्ति की भूख कम हो जाती है ! नार्कोटिक पदार्थों का सेवन बन्द कर देने से अन्तिम डोज लेने के 8 से 12 घण्टे बाद शरीर में कम्पन्न, पसीना आना, दस्त मिचलाहट पेट व टांगों में ऐंठन, मानसिक वेदना जैसे लक्षण प्रकट होने लगते हैं ! इन सब अवस्थाओं से गुजरने पर व्यक्ति महसूस करता है कि जैसे वह जीते जी नरक भोगकर आया है !
इसलिये देव भूमि में भांग की खेती दोधारी तलवार से कम नहीं है !!