वैसे तो बहुत ही कम लोग जानते हैं कि धर्म और अध्यात्म दोनों अलग-अलग विषय है ! धर्म समाज को व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए बनाये गये नियमों का समूह है और अध्यात्म विशुद्ध आत्म उत्थान का विषय है !
आज के इस विकृत संसार में धर्म भी विकृत हो गया है या दूसरे शब्दों में कहा जाये तो धर्म द्वारा समाज को अनुशासित रखने वाले धर्माचार्यों के विकृत हो जाने के कारण आज संसार भी विकृत हो गया है !
और एक विकृत समाज कभी भी स्वस्थ व्यक्ति को प्रगट नहीं कर सकता या दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि स्वस्थ व्यक्ति स्वस्थ समाज में ही पैदा हो सकते हैं !
धर्म, धर्माचार्य, समाज और व्यक्ति यह सभी मिलकर आज अध्यात्म को नष्ट कर रहे हैं ! इसको एक कहानी से समझते हैं !
एक सामान्य किसान अपनी किसानी के दौरान कबीर, रहीम, दादू आदि के दोहे गाता गाता अपने अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति करने लगा ! यह उसके लिए एक आश्चर्यजनक सुखद अनुभूति थी !
अतः उसने यह निर्णय लिया कि जिस तरह उसे अध्यात्म की ऊर्जा से सुखद अनुभूति हुई है, ठीक उसी तरह इस समाज को भी वह अध्यात्म के ऊर्जा की सुखद अनुभूति करवायेगा !
अतः वह कृषि से बचे हुए समय पर अपने ही खेत में एक पेड़ के नीचे बैठकर साथी किसानों के साथ अध्यात्म की चर्चा करने लगा !
धीरे-धीरे उसका यश आसपास के गांव से होते हुए शहर तक पहुंच गया और शहर से बहुत बड़े-बड़े रईस उसका आध्यात्मिक प्रवचन सुनने के लिए उसके गांव आने लगे !
उन्हीं रईसों में से किसी ने यह सुझाव दिया कि जिस जगह पर वह किसान अध्यात्मिक प्रवचन करता है, वहां पर एक छोटा सा मंदिर बना देना चाहिये ! सभी रईसों ने चंदा इकट्ठा किया और देखते ही देखते मंदिर का निर्माण हो गया !
फिर दूसरे रईस ने कहा कि प्रवचन इतने अच्छे हैं कि इनके लिए एक लोडीस्पीकर की व्यवस्था की जाये ! जिससे अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हो सकें ! आनन फानन लोडस्पीकर भी खरीद कर आ गया और लग गया !
अब वह किसान लोडीस्पीकर पर अपने प्रवचन दिया करता था ! मंदिर में अच्छी खासी भीड़ लगने लगी और मंदिर के कार्य व्यवस्था को संभालने के लिए अनेकों कर्मचारियों को नियुक्त कर दिया गया !
अब वह किसान आध्यात्मिक व्यक्ति न रहकर एक कुशल धार्मिक प्रवचनकर्ता बन गया ! जो समाज को अच्छी-अच्छी धार्मिक बातें सुना कर मोटा पैसा वसूला करता था !
इसी बीच कोरोना का आगमन हो गया ! लॉकडाउन लगा और मंदिर में लोगों का आना जाना बंद हो गया ! लोगों के माध्यम से मिलने वाली आर्थिक मदद भी बंद हो गयी ! अब मंदिर के कर्मचारी का खर्च, वेतन आदि उस किसान के लिए बहुत बड़ी आर्थिक जिम्मेदारी बन गई !
और वह किसान उस जिम्मेदारी को निभाने के लिए सुबह से शाम तक लॉकडाउन में पुलिस से छुपते छुपाते शहर जाकर संपन्न व्यापारियों के घर घर चक्कर लगाने लगा ! किंतु अधिकांश जगहों पर संपन्न व्यापारियों के चौकीदारों ने ही उसे अपमानित करके भगा दिया !
जिससे वह किसान इतना निराश और हताश हुआ कि उसने अपने उसी मंदिर में भगवान के सामने अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर ली ! सारा आध्यत्मिक ज्ञान विकृत अव्यवहारिक धर्म के चक्कर में धरा रह गया !
सत्य यह है कि अध्यात्म का बोध या अध्यात्म का चिंतन नितांत व्यक्तिगत विषय है ! किंतु जो लोग अपने आध्यात्मिक अनुभूति से इस संसार में धन और यश कमाना चाहते हैं, वह धीरे धीरे अध्यात्म से बहुत दूर होते चले जाते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता है ! अंततः वह अध्यात्म की साधना छोड़ कर अवसाद ग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते हैं !
कुछ शरीर से करते हैं तो कुछ साधक मन से ! आज कमोवेश यही हाल सभी मठ, मंदिर के महंत और पुजारियों का है ! सभी परेशान अवसादग्रस्त अपने साधना से परे संसार में उलझे हुये हैं !!