कुतुबमीनार वास्तव में हिन्दुओ का विष्णु संतभ है ,पढ़े पूरा इतिहास ,शेयर करें ! Yogesh Mishra

कुतुबुद्दीन ऐबक दुर्दांन्द लुटेरा शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी का अति महत्वाकॉँक्षी सैन्य गुलाम था | उसे बचपन में मुहम्मद गौरी को एक दास के रूप में बेच दिया गया था पृथ्वी राज चौहान द्वारा मोहम्‍मद गोरी को मारे जाने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने स्वयं को लाहौर में एक स्वत्रंत शासक के रूप में घोषित किया और “लाहौर” अपनी राजधानी बनायी | कुतुबुद्दीन ऐबक ने बाद में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया |24 जून 1206 ई0को लाहौर में उसका राज्याभिषेक हुआ और गुलामवंश की स्थापना हुई | उसकी मृत्यु 1210  में घोड़े से पोलो खेलते समय गिर कर एक दुर्घटना में हुई थी। उसकी कब्र लाहौर, पाकिस्तान में आज भी स्थित है | कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद उसके पुत्र ‘आरामशाह’ को शासक घोषित किया गया कुछ समय बाद कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश ने आरामशाह को बंदी बनाकर इसकी हत्या करा दी और स्वयं शासक बन गया|

अपने चार साल के शासन कल में उसने इस्लाम न कबूलने पर एक लाख तैतीस हजार (1,33,000) हिन्दुओं का सारे आम कत्ल किया तथा सात सौ (700) से अधिक मन्दिर तोड़े और सैकड़ो हिन्दु महिलाओं की इज्जत लुटी |

कहा जाता है कि उसने कुतुब मीनार का निर्माण एक सूफी संत ख्वाजा कुतुबु- उद- दीन बख्तियार काकी के नाम पर करवाया था जबकि सत्य यह है कि कुतुबुद्दीन ने अपने छोटे से जिहाद कार्यकाल में बड़ा जिहाद कर दिया था |

कुतुबमीनार, कुतुबुद्दीन ने नहीं बनवाई थी बल्कि तोड़ दिया था | इस्लाम के अन्दर किसी भी तरह की मूर्ति इस्लाम के विरूद्ध है इसीलिये यहाँ के 27 खूबसूरत मंदिरों को तोड़ दिया था ताकि कोई भी इस जगह को पहचान न सके |

अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि यदि कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ने नहीं किया था तो किसने किया था ?

कुतुबमीनार का निर्माण विक्रमादित्य के राजज्योतषी वराहमिहिर ने करवाया था, जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक और खगोलशास्त्री भी थे उन्होंने इस मीनार का नाम विष्णु ध्वज,विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में था |जिसका वर्णन आज भी शास्त्रों में मिलता है । इस महान सम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ, खगोल शास्त्री, वास्तु विशेषज्ञ एवं भवन निर्माण विशेषज्ञ हुआ करते थे।

राजज्योतषी वराहमिहिर वहीं निवास भी करते थे इसीलिए आज भी कुतुबमीनार के निकट ही महिरौली मुहल्ला स्थित है |यहीं पर मिहिर छात्रों को गणित, खगोल शास्त्र और ज्योतिष का ज्ञान देते थे | यही उस समय भारत का टाइम जोन था निकट ही गड़ा लौह स्तंम्भ है जिसे गरूड़ ध्वज कहते थे | जिस पर ब्राम्ही भाषा में स्थापना काल लिखा हुआ है | जिस पर कभी जंग नहीं लगती है |

वराहमिहिर ने विष्णु स्तम्भ के चारों और नक्षत्रों के अध्ययन के लिए 27 कलापूर्ण परिथ्यों का निर्माण करवाया था। इन परिथ्यों पर हिंदू देवी देवताओं के चित्र बने हुए थे। जिसे कुतुबद्दीन ने तोड़ा था ।

इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहीं दिख जाती हैं | कुछ संस्कृत भाषा के अंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद आज भी पढ़े जा सकते हैं |

 

मूलत: यह मीनार सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर ” ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए “मूर्ति थी जो तोड़ दी गयी, छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे, वे भी बाद में हटा दिए गए, अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है |

 

कुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिण में महरौली भाग में स्थित है। ईंटों से बनी दुनिया की यह सबसे ऊँची मीनार है जिसकी ऊँचाई 72.5 मीटर जा 237.86 फुट है तथा इसका व्यास 14.3 मीटर है जो शिखर पर जाकर मात्र 2.75 मीटर रह जाता है।

इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य कल में खगोल शास्त्री वराहमिहिर को जाता है | कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे “कुवातुल इस्लाम मस्जिद” कह दिया, विष्णु ध्वज (स्तम्भ ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बना दिया |

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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