सभी जानते हैं कि भारत को अंग्रेजों से तथाकथित आजादी 15 अगस्त 1947 को संसद के ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष में समारोह आयोजित कर आधी रात को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरु को ब्रिटेन के वायसराय माउंटबैटन ने ब्रिटेन की महारानी की ओर से प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवाई थी ! हिंदुस्तान के आम आवाम को यह बता दिया गया कि देश आजाद हो गया किंतु सत्य यह था कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भारत के आम आवाम ने कभी भी प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नहीं चुना था,
बल्कि जवाहरलाल नेहरू ब्रिटिश सत्ता के अंदर भारतीय मूल के प्रथम ब्रिटिश प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किये गए थे ! जो व्यवस्था आज भी लोकतांत्रिक पद्धति के रूप में चली आ रही है ! इसीलिए भारत आज तक कामनवैल्थ की सदस्यता नहीं छोड़ सका ! आज भी हमारे बहुत से नेता ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादार हैं !
ठीक इसी तर्ज पर 30 जून 2017 की रात्रि में संसद के ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष में समारोह आयोजित कर भारत के वित्त मंत्री ( जो लोकतांत्रिक पद्धति से चुनाव हरा कर अस्वीकार किये जा चुके हैं ! जिन्हें भारत के आम आवाम ने कभी भी वित्त मंत्री के रूप में नहीं चुना ) वह “माल एवं सेवा कर” जिसे “जीएसटी” के नाम से जाना जाता है !
उसके लागू होने की सूचना प्रसारित करेंगे ! यह “जीएसटी” लागू करने के पीछे उद्देश्य यह बताया जाता है कि भारत के विभिन्न राज्यों में जो अलग-अलग कर नीतियां हैं, उससे विदेशी निवेशकों को भारत में व्यवसाय करने में अनेक तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ! अतः विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिये यह कदम जरुरी है !
इस तरह भारत की अर्थव्यवस्था विदेशी निवेशकों के हाथ में देने का यह विस्तृत समारोह करीब 1 घंटे चलेगा ! इसके बाद भारत के नागरिकों को यह बताया जाएगा कि भारत के अंदर “समान कर प्रणाली” लागू कर दी गई है किंतु वास्तव में भारत की अर्थव्यवस्था विदेशी निवेशकों के हाथ में सौंप दी जाएगी और जिस तरह आज भारत के किसान पूरे देश भर में आत्महत्या कर रहे हैं ! आज से 20 साल बाद भारत के व्यवसाई और उद्योगपति भी इसी तरह पूरे देश में आत्महत्या करते नजर आएंगे !
लेकिन हम असहाय हैं संसद के अंदर जो हमारे प्रतिनिधि बैठे हैं वह हमारे मनोभाव को सदन में प्रस्तुत करने में अक्षम है ! इसी तरह हमारी न्यायपालिका भी घटना होने के पूर्व किसी भी विषय पर टीका टिप्पणी करने में अक्षम है ! तीसरा जन आंदोलन उसे दबाने के लिए राजनेताओं के पास बहुत से विकल्प खुले हैं !
जैसा पिछले 3 वर्षों में देखा गया कि जिस किसी भी विषय पर जन आंदोलन खड़ा किया गया उस आन्दोलन के चुनिंदा नेताओं के ऊपर हत्या और बलात्कार के मुकदमे दर्ज करा कर उस आंदोलन को समाप्त कर दिया गया ! यदि यही लोकतंत्र है या भारतीय राष्ट्रीयता है तो हमारा भविष्य खतरे में है और अपने भविष्य को बचाने के लिए हमारे पास कोई विकल्प नहीं है !