आत्म मुग्ध भारत ही समस्या का कारण है : Yogesh Mishra

भारत का अतीत बहुत खुबसूरत नहीं बल्कि सदैव से दरिद्रता और शोषण का रहा है !

हां कुछ राजे रजवाड़े या उनके प्रशासनिक चमचे संपन्न हुआ करते थे या धर्म के नाम पर कुछ मठ, मन्दिर चलाने वाले समाज का शोषण करके संपन्न हुआ करते थे ! पर आम समाज का नागरिक तब भी मेहनत की ही खाता था और आज भी मेहनत की ही खा रहा है !

पहले प्रचार का माध्यम लेखन और सार्वजनिक स्थलों पर गीत-संगीत के कार्यक्रम हुआ करते थे ! उसमें राजा और उसके शासन, प्रशासन व्यवस्था की तारीफ ठीक उसी तरह की जाती थी ! जैसे आज प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कर रही है !

पहले भी राजाओं के अंधभक्त और चमचे हुआ करते थे ! जो राजा का अहंकार पोषण करते थे और जो लोग राजाओं की नीति का विरोध करते थे, उन्हें बागी घोषित करके सरे आम फांसी पर लटका दिया जाता था ! जिससे आम जनमानस राजा की अय्याशी और नीतियों का विरोध नहीं कर पाते थे !

जैसे आजकल सरकारी एजेंसी सी.बी.आई, ई.डी. बगैरा सरकार के इशारे पर सरकार का विरोध करने वाले व्यक्तियों को परेशान करती हैं ! इसी तरह पूर्व में राजा के प्रशासनिक अधिकारी राजा का विरोध करने वाले व्यक्तियों को सरेआम हत्या कर देते थे और उस व्यक्ति की जमीन जायदाद हड़प लेते थे !

पूर्व में राजा के समर्थन में लिखे गए साहित्य को वर्तमान में ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है जो कि एक भयंकर भूल है क्योंकि राजा के समर्थन में लिखे गये ऐतिहासिक दस्तावेज राजा को खुश करने के लिए लिखे जाते थे ! वह समाज का वास्तविक हाल कभी नहीं हुआ करते थे !

और आम आदमी के लिए अपने इतिहास को लिखना संभव नहीं था क्योंकि राजघरानों की उन पर कड़ी निगरानी हुआ करती थी ! यही कारण है कि मुग़ल और अंग्रेज शासन काल में बहुत सा भ्रामक और मनगड़ंत इतिहास लिखा गया ! जो क्रम आज भी जारी है !
इसलिए मात्र राजघरानों के प्रशासनिक दस्तावेज के आधार पर भारत का स्वर्णिम इतिहास मान लेना, भारत के वास्तविक इतिहास के साथ विश्वासघात होगा !

इस सत्य को हम जितना जल्दी स्वीकार करके आत्ममुग्ध अवस्था से बाहर निकल आयें, उतना ही बेहतर है क्योंकि हम भ्रामक इतिहास के कारण अपने स्वर्णिम इतिहास को सत्य मान कर आत्ममुग्ध अवस्था में फंसे हुए हैं और दूसरी तरफ पूरी दुनिया विज्ञान का सहारा लेकर निरंतर विकास की तरफ बढ़ रही है !

आज भी हम रामायण, महाभारत, भागवत कथा, वेद, पुराण, उपनिषद आदि आदि न जाने कितने निरर्थक ग्रंथों में ज्ञान को तलाश रहे हैं जबकि मानवता की प्रगति के साथ-साथ यह सभी ग्रंथ आज अव्यावहारिक और अनुपयोगी सिद्ध हो चुके हैं ! इसीलिये भारत का कोई विकसित अरबपति इस तथाकथित धार्मिक साहित्यों की दुहाई नहीं देते हैं !

अगर हमें विश्व की प्रतिस्पर्धा में अपने अस्तित्व को बचाये रखना है, तो निश्चित रूप से हमें वर्तमान विज्ञान का सहारा लेना होगा और विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी ! आज अपने अस्तित्व रक्षा के लिए वर्तमान विज्ञान ही हमारा सहायक है ! अव्यवहारिक धर्म ग्रन्थ नहीं !

यदि हम अपने प्राचीन आत्ममुग्ध समाज और साहित्य में उलझे रहेंगे तो हमारा भविष्य निश्चित रूप से अंधकार में है और हम बहुत जल्द ही अपनी प्राचीन सभ्यता संस्कृति के साथ विश्व के नक्शे पर मिट जाएंगे ! इसलिए इस विषय को गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …