श्रीमद्भागवत गीता की छीछालेदर : Yogesh Mishra

भक्त भी भगवान द्वारा बनाया गया एक नायाव जीव है ! जो भगवान को भी धोखा देकर मोक्ष की कामना करता है ! उसे अगर भगवान स्वयं भी आकर साक्षात् ज्ञान देना चाहें तो भक्त उस ज्ञान की भी छीछालेदर कर देता है ! इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भगवान श्री कृष्ण द्वारा स्वयं गूढ़ ज्ञान के रूप में प्रस्तुत की गई श्रीमद्भागवत गीता है !

बतलाया जाता है कि महाभारत युद्ध के समय जब अर्जुन ने अपने कुल परिवार के प्रिय जनों को देखकर युद्ध न करने का निर्णय लिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के पूर्व प्रकृति के गूढ़ रहस्यों से भरा हुआ जो ज्ञान प्रदान किया था उसे महाभारत ग्रंथ में श्रीमद्भागवत गीता के नाम से जाना जाता है !

जबकि यह बात अलग है कि वर्तमान प्रचलन में जो श्रीमद्भगवद्गीता है वह भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए ज्ञान से एकदम अलग है ! क्योंकि वर्तमान प्रचलन में उपलब्ध श्रीमद भगवत गीता में मात्र 700 श्लोक हैं जबकि महाभारत ग्रंथ के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने जो अर्जुन को ज्ञान दिया था वह 745 श्लोकों में था और उन मूल श्रीमद्भगवद्गीता के 745 श्लोकों की क्रम संख्या गुण धर्म भी वर्तमान में प्रचलित श्रीमद्भगवद्गीता से भिन्न है !

वर्तमान में प्रचलित श्रीमद् भागवत गीता आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा जब बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण सनातन धर्म की उपासना पद्धति समाज से विलुप्त हो गई थी, तब उसे पुनः स्थापित करने के लिये लिखा गया एक भाष्य ग्रन्थ है ! जिसमें सनातन उपासना पद्धतियों का वर्णन मात्र है ! जिसमें कृष्ण और अर्जुन के संवाद को मात्र आधार बनाया गया है ! जैसे कि बहुत से सब शैव ग्रंथों में भगवान शिव और पार्वती के संवाद को ग्रन्थ का आधार बनाया जाता है !

इसका भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए महाभारत युद्ध के उपदेश से कोई लेना देना नहीं है किन्तु अंग्रेजों द्वारा रचित कुटिल नीति के कारण अब इसे ही भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिये गये ज्ञान वाली श्रीमद्भगवद्गीता मान लिया गया है ! जिस नकली गीता को स्थापित करने के लिए विधिवत अंग्रेजों ने भारत में एक धर्म ग्रंथों के प्रकाशन हेतु प्रेस की स्थापना भी की थी ! जिससे बाकायदा सब्सिडी मूल्य पर टैक्स फ्री कागज उपलब्ध करवाया जाता था ! जिसने भारत के मूल ग्रंथों को प्रकाशित करने वाले वेंकटेश्वर प्रेस जैसे प्रमाणित प्रेसों को बंद होने के लिये बाध्य कर दिया था !

लेकिन आज भी श्रीमद्भागवत गीता की मूल प्रति विश्व के कई संग्रहालयों में सुरक्षित है ! जिस संदर्भ में मेरे द्वारा पूर्व में अनेक लेख लिखे जा चुके हैं !

ताज्जुब की बात यह है कि अंग्रेजों द्वारा स्थापित श्रीमद भगवत गीता पर भी आज समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी भक्तगण अपनी समीक्षा टीका लिख रहे हैं जो लगभग 7000 तरह से भी अधिक तरह से लिखी जा चुकी है ! जो आज भी भिन्न-भिन्न प्रकाशकों द्वारा समाज में प्रकाशित और प्रचलित है ! इसके अलावा भी बहुत सी ऐसी टीकाएँ लिखी की गई हैं जो कभी भी समाज में प्रकाशित और प्रचलित नहीं हुई हैं बल्कि संसाधनों के अभाव में लेखक के अलमारी में सुशोभित हो रही हैं !

लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि किसी भी टीकाकार कभी यह नहीं कहा कि वर्तमान में समाज में उपलब्ध श्रीमद्भगवद्गीता वह मूल गीता है ही नहीं है जो ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के समय दिया था !

दूसरा उससे भी अधिक महत्वपूर्ण विषय यह है कि भगवान श्री कृष्ण ने जिस भाव में जो ज्ञान अर्जुन को दिया था, वह मात्र एक ही रहा होगा ! जिससे प्रेरित होकर धर्म पर पूरी आस्था और निष्ठा रखने वाले सर्व त्यागी भाव के अर्जुन ने महाभारत युद्ध के दौरान छल, कपट, प्रपंच अनीति आदि का सहारा लेकर अपने ही स्वजनों की हत्या कर दी ! निश्चित ही वह अद्भुत ब्रेनवाश करने वाला सांसारिक ज्ञान रहा होगा !

यह ज्ञान निश्चित ही नितांत सांसारिक, व्यावहारिक राजनीति से परिपूर्ण कूटनीतिज्ञ, धर्म नीति और शासन नीति आदि से परिपूर्ण रहा होगा ! जिस ज्ञान की आज मानवता को अपनी रक्षा के लिए आवश्यकता है, किन्तु इसे आज प्राचीन शास्त्रों के रूप में संग्रहालयों में समाज से दूर सुरक्षित रख दिया गया है !

और उसके स्थान पर आदि गुरु शंकराचार्य के नाम से एक योग, त्याग, साधना आदि पर आश्रित ग्रंथ समाज को श्रीमद भगवत गीता के नाम से दे दिया गया है ! जिसमें नीति और संघर्ष की कोई चर्चा ही नहीं है !

कल्पना कीजिए कि महाभारत का वह युद्ध जो कि उस समय का सबसे बड़ा विश्व युद्ध था ! उस युद्ध के समय क्या किसी योद्धा को योग, त्याग, साधना धर्म आदि का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण जैसा विद्वान राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, प्रशासक 90 वर्ष की अनुभवी आयु में देगा !

और उससे ज्यादा हास्यास्पद बात यह है कि इस सत्य को जानते हुए भी तथाकथित धार्मिक बुद्धिजीवी भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए मूल ग्रंथ की चर्चा कहीं नहीं करते हैं बल्कि उस मूल ग्रंथ के विकल्प में जो ग्रंथ समाज को दे दिया गया उसी की टीका लिखने में व्यस्त हैं और यह सिद्ध कर देना चाहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने विश्व युद्ध जैसे कठिन समय में भी यज्ञ, तप, ज्ञान, दया, योग, त्याग, साधना आदि की व्याख्या ऐसे योद्धा से की जो उस महान विश्व युद्ध का केंद्र बिंदु था !

यह तथाकथित आध्यात्मिक बुद्धिजीवियों के मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है ! जब की आवश्यकता उस मूल ज्ञान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करने की थी, जो भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन को दिया था ! जो पूरी तरह से लोक कल्याण के लिए राजनीति, कूटनीति, धर्म नीति, शासन नीति आदि से परिपूर्ण है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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