जानिए क्या थी वैष्णवों की राज्य हड़प नीति : Yogesh Mishra

आपने कभी विचार किया कि वैष्णव पूरी दुनिया के शासक कैसे बने ! और इनका युद्ध सदैव से दैत्य, दानव, असुर, राक्षस, यक्ष, किन्नर आदि सभी के साथ क्यों होता रहा ! जबकि वैष्णव संस्कृत का उदय ईशा से मात्र 15000 वर्ष पूर्व हुआ था !

जब तथाकथित देवताओं के राजा इंद्र द्वारा वर्षा के जल पर भी अपना नियंत्रण कर लिया गया और वैष्णव कृषकों को बिना “कर” दिये कृषि के लिये भी जल देना बंद कर दिया ! तब कृषि आधारित इस पृथ्वी की पहली संस्कृत हड़प्पा के शासकों ने इन्द्र के अनुचित कर से बचने के लिये यह निश्चय किया कि वह अब हड़प्पा छोड़कर किसी अन्य दूर स्थान पर जाकर कृषि योग्य स्थल पर बस जायेंगे और उस योजना के तहत यह सभी भारत वर्ष में सरजू नदी के तट पर अवध में आकर बसने लगे !

फिर वैष्णव द्वारा गंगा की चीन जा रही धारा को भारत की तरफ मोड़ने के बाद गंगा का भारत में आगमन हुआ ! और गंगा की तरई भी उपजाऊ होने लगी तब भारत के वैष्णव संस्कृति में दो हिस्से हुये ! एक सूर्यवंशी और दूसरे चन्द्रवंशी ! आपसी विवाद ज्यादा बढ़ने पर चन्द्रवंशी वैष्णव अवध छोड़कर प्रतिष्ठानपुर (प्रयागराज) आकर बस गये ! परन्तु अवध के निकट होने के कारण यहाँ भी विवाद बढ़ने लगा तब फिर यह लोग जाकर यमुना के किनारे मथुरा और फिर दिल्ली फिर बाद में पंजाब और अफगानिस्तान में बस गये !

इनके शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र शुरूआती दौर में नैमिषारण था और गुरुकुल की भाषा संस्कृत थी ! कालांतर में वैष्णव ने ऐसा प्रचार किया कि उनके द्वारा निर्मित सभ्यता ही विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है और प्राचीनतम भाषा संस्कृत है ! यही बाद में वैदिक सभ्यता कहलाई ! जबकि विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता शैव सभ्यता थी और प्राचीनतम भाषा तमिल थी !

उस समय क्योंकि संगठित समाज नहीं था ! अत: किसी ने इनका कभी कोई विरोध नहीं किया ! यहां के मूल निवासी शैवों ने इनको शुरुआत में सामान्य कृषक समझता था लेकिन उसे नहीं मालूम था कि यह सामान्य से दिखने वाले कृषक जल्द ही भारत की मूल शैव सभ्यता और संस्कृत के सर्वनाश का कारण बनेंगे !

धीरे-धीरे यह लोग सशक्त होते चले गये और क्योंकि यह लोग ठंडे स्थल से आये थे ! अतः सूर्य उपासक थे ! इसलिये इन्होंने अग्नि को प्रमाण मानना शुरू कर दिया ! और शुरुआत में धर्म के नाम पर जगह-जगह यज्ञ वेदी बनाकर छोटे-छोटे हवन आदि करने शुरू कर दिये और फिर कालांतर में उसी यज्ञ वेदी के स्थल के आसपास की जगह को कब्जा करके इन लोगों ने आश्रमों का निर्माण शुरू कर दिया ! फिर आश्रम के आकार में विस्तार करके उसमें गुरुकुल चलाने लगे और उनके यहां शिक्षा लेने के लिये जो छात्र रहते थे ! उन्हें शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र का भी ज्ञान देकर इन वैष्णव गुरुकुलों के प्रमुखों ने अपनी निजी सेना का निर्माण करना शुरू कर दिया !

कालांतर में इन्हीं गुरुकुरू की सेना इतनी सशक्त हो गई कि बड़े-बड़े राजा भी युद्ध के समय इन गुरुकुल से सेना व शस्त्र उधार मांगने लगे ! जिस कारण से आगे चलकर इन गुरुकुल के प्रमुख का महत्व राज सत्ता में भी बढ़ता चला गया और राजा भी इन गुरुकुल प्रमुखों के निर्देश का पालन करने के लिये बाध्य होने लगे ! इन गुरुकुल प्रमुखों को महर्षि की पदवी दी गयी जो राजा से भी ऊँची थी !

फिर इन गुरुकुल के प्रशिक्षित शिष्य बड़े-बड़े राजघरानों में जाकर राजकुमारों को शिक्षा देने लगे और इस तरह इन वैष्णव गुरुकुलों के आचार्यों की पहुंच सीधे राजघरानों में होने लगी !

इन्हीं आचार्यों में से कुछ आचार्य लोगों ने वैष्णव राजघराने के साथ-साथ तत्कालीन शैव राजघरानों को भी अपने नियंत्रण में लेने का कार्य शुरू कर दिया ! जिसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रह्लाद है ! सभी जानते हैं कि विष्णु द्वारा षडयंत्र करके हिरण्याक्ष की हत्या के बाद उसका बड़ा भाई हिरण्यकशिपु विष्णु विरोधी हो गया और हिरण्यकशिपु ने विष्णु की हत्या का संकल्प लिया और पूरी दुनिया में विष्णु को ढूढ़ना शुरू कर दिया ! तब विष्णु हिरण्यकशिपु से डर कर तीन वर्षों तक पत्नी लक्ष्मी सहित भूमिगत हो गये थे !

इसी बीच हिरण्यकशिपु के अति व्यस्त होने के कारण नारद ने दुस्साहस करके हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद को वैष्णव शिक्षा देनी आरंभ कर दी और उसे वैष्णव बना दिया ! जिससे पिता-पुत्र में अंतर्विरोध खड़ा हो गया और अंततः विष्णु ने पुत्र को अपने षड्यंत्र का माध्यम बनाकर शैव शासक हिरण्यकशिपु की धोके से हत्या कर दिया !

ठीक इसी तरह जब रावण ने भोगवादी यक्ष संस्कृति के विपरीत त्याग और तप पर आधारित “रक्ष संस्कृति” की स्थापना की और उस रक्ष संस्कृत के विस्तार के लिये पूरी पृथ्वी पर अपना प्रचार अभियान शुरू किया ! तब 16 वर्ष तक निरंतर रावण विश्व की यात्रा पर रहा ! इसी दौरान नारद ने पुनः लंका में घुसकर रावण के भाई विभीषण एवं रावण के बड़े पुत्र जो भविष्य में राजा बन सकता था ! मेघनाथ को वैष्णव शिक्षा देनी आरंभ कर दी !

जब 16 साल बाद रावण वापस आया ! तब उसने नारद का लंका आना जाना बंद करवा दिया और अपने प्रभाव से मेघनाथ को पुनः शैव जीवन शैली की ओर मोड़ा और शिव उपासक बनाया ! किंतु विभीषण की रुचि क्योंकि नारद के द्वारा विभीषण का ब्रेन वाश कर देने के कारण अब वह भी वैष्णव की मदद से लंका को हड़पने की थी !

अतः विभीषण ने वैष्णव जीवन शैली को छोड़ने से साफ मना कर दिया ! इसी के परिणाम स्वरूप राम रावण युद्ध के समय विभीषण ने वैष्णव अवतार कहे जाने वाले भगवान राम के साथ मिलकर रावण की उसके पुत्र सहित हत्या करवा दी और रावण का राज्य ही नहीं उसकी पत्नी और संपत्ति भी राम के प्रभाव से हड़प ली !

इसके अलावा वर्तमान में जिस तरह मुसलमानों के सुंदर लड़के हिंदुओं की लड़कियों के साथ लव जिहाद का प्रयोग करते हैं ! ठीक उसी तरह उस समय भी गुरुकुल में पढ़ने वाले सुंदर और स्मार्ट लड़के संपन्न परिवार की लड़कियों को अपने सौंदर्य और ज्ञान के जाल में फंसा कर गंधर्व विवाह कर लिया करते थे ! जिन्हें बाद को लड़की के गर्भवती होने पर सामाजिक मान्यता दे दी जाती थी और फिर यह लड़के अपने गुरुकुल की सैन्य शक्ति के सहयोग से उस संपन्न परिवार की संपत्ति हड़प लिया करते थे और उसका कुछ अंश राजकोष में दे दिया करते थे ! इसलिये राजा भी गुरुकुलों की इस नीच हरकत की अनदेखी कर देते थे !

इसी तरह जो गुरुकुल शस्त्र और शास्त्र के द्वारा जितना सशक्त होता था ! वह गुरुकुल उस क्षेत्र में उतना अधिक प्रभावशाली होता था और उस क्षेत्र ही नहीं आसपास के राजाओं को भी इन गुरुकुलों के स्वामी नियंत्रित किया करते थे ! दूसरे शब्दों में कहा जाये तो उस दौर में गुरुकुल चलाने वालों का अपना एक अलग ही निर्द्वन्द शासन था ! जिसमें राजा भी हस्तक्षेप नहीं करता था ! इसी गुरुकुल की कपट और सैन्य शक्ति के द्वारा वैष्णव दूसरों की संपत्ति हड़प लिया करते थे !

लोग व्यर्थ ही ब्रिटिश साम्राज्य के लॉर्ड डलहौजी की ‘राज्य हड़पने की नीति’ का विरोध करते हैं ! क्योंकि वैष्णवों के पूर्वज भी तो यही किया करते थे ! इसी नीति के तहत ही तो सक्षम वैष्णव शासकों द्वारा अश्वमेघ यज्ञ आदि किये जाते थे !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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