कार्पोरेट खेती का माया जाल : Yogesh Mishra

भारत में किसी भी व्यक्ति या कंपनी को एक सीमा से अधिक खेती खरीदने के लिये सीलिंग कानून प्रतिबंध करता है ! विद्यमान कानून के चलते कार्पोरेट घरानों को खेती पर सीधा कब्जा करना संभव नही है ! इसलिये अब राजनीतिज्ञों के सठा-गांठ से सीलिंग कानून बदलने के लिये प्रयास किया जा रहा है !

कुछ राज्यों में तो अनुसंधान और विकास, निर्यातोन्मुखी खेती के लिये कृषि व्यवसायी फर्मों को सीमा से अधिक खेती खरीदने की अनुमति भी दी जा चुकी है ! तो कहीं पर कंपनियों के निदेशकों या कर्मचारियों के नाम पर खेतों को बड़े पैमाने में खरीदी जारी है ! तो कहीं राज्य सरकारों ने इन कंपनियों को पट्टे पर अपने राज्य में जमीनें दे रखी हैं ! कहीं बंजर भूमि खरीदने के नाम पर तो कहीं मात्र किरायेदारी के नाम पर जमीन दी जा रही है ! अर्थात आज राजनीतिज्ञ किसी भी कानून के तहत कार्पोरेट को जमीन दे देना चाहते हैं ! मजे की बात यह है कि खुद का कार्यकाल तो मात्र पांच साल है, पर कार्पोरेट को जमीनें 99 साल के लिये दे रहे हैं !

और दूसरी तरफ राजनीतिज्ञों के मिलीभगत से कृष जमीनों की दो गुनी कीमत देकर निरंतर किसानों की संख्या कम की जा रही है और यह सब कुछ राष्ट्र के नीति आयोग की जानकारी में है ! बल्कि यूं कहें कि राष्ट्र का नीति आयोग की इस षड्यंत्र में शामिल है क्योंकि राष्ट्रीय नीति आयोग का सुझाव यह है कि किसानों को कृषि से गैर कृषि व्यवसायों में लगाकर किसानों की संख्या आधी की जानी चाहिये ! जिससे बचे हुये किसानों की आमदनी अपने आप दोगुनी हो जायेगी !

आयोग कहता है कि ‘कृषि कार्यबल को कृषि से इतर कार्यों में लगाकर किसानों की आय में काफी वृध्दि की जा सकती है ! अगर जोतदारों की संख्या घटती रही तो उपलब्ध कृषि आय कम किसानों में वितरित होगी !’

नीति आयोग आगे कहता है कि ‘वस्तुत: कुछ किसानों ने कृषि क्षेत्र को छोड़ना शुरु भी कर दिया है और कई अन्य कृषि को छोडने के लिये उपयुक्त अवसरों की तलाश कर रहे है ! किसानों की संख्या 14.62 करोड से घटाकर 2022 तक 11.95 करोड करना होगा ! जिसके लिये प्रतिवर्ष 2.4 प्रतिशत किसानों को गैर कृषि रोजगार से जोडना होगा !’

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार आज देश में लगभग 40 प्रतिशत किसान अपनी पैतृक कृषि खेती बेचने के लिये तैयार बैठे हैं !

भारत के केंद्रीय वित्त मंत्री ने संसद में कहा था कि सरकार किसानों की संख्या 20 प्रतिशत तक ही सीमित करना चाहती है ! शेष 80 प्रतिशत को वैकल्पिक रोजगार की तरफ मोड़ा जाना आवश्यक है ! अर्थात यह 20 प्रतिशत संपन्न किसान वही होंगे, जो कार्पोरेट के गुप्त प्रतिनिधि बन कर देश के गरीब किसानों से कार्पोरेट के लिये खेती खरीदें गे और यही लोग कार्पोरेट के गुप्त प्रतिनिधि के तौर पर कार्पोरेट की पूंजी, आधुनिक तकनिक और यांत्रिक खेती का इस्तेमाल कार्पोरेट के हित में करेंगे ! इस तरह यह सभी किसान कार्पोरेट घराने के ही क्षद्म प्रतिनिधि होंगे !

कृषि लूट की इस व्यवस्था को कानूनी जामा पहनाकर उसे स्थाई और अधिकृत बनाने का कार्य अब भारत के राजनीतिज्ञों ने भी सदनों में शुरू कर दिया है ! लेकिन इससे देश खाद्यान्न सुरक्षा, आत्मनिर्भरता को हमेशा के लिये खो देगा और पुन: परावलंबी राष्ट्र बन कर रह जायेगा ! जो राष्ट्र की सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा है !

इस समय देशी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां रॉथशिल्ड, रिलायंस, पेप्सी, कारगील, ग्लोबल ग्रीन, रॅलीज, आयटीसी, गोदरेज, मेरीको आदि के व्दारा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगना,तामिलनाडू, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ आदि प्रदेशों में फलों मे आम, काजू, चीकू, सेब,लीची, सब्जिओं में आलू, टमाटर, मशरुम, स्वीट कार्न आदि की खेती इसी षडयंत्रकारी पध्यति से किसानों का हक़ छीन कर, कर रही हैं !

यह स्थिति देश के लिये बहुत भयावह है ! यह देश 140 करोड़ नागरिकों का देश है, जिनका पेट भारत के किसान ही भरते हैं ! यदि भारत के किसानों को इस षड्यंत्र से नहीं बचाया गया तो निश्चित रूप से यह मान कर चलिये कि यह 140 करोड़ नागरिकों का देश भुखमरी से तड़प-तड़प कर खत्म हो जायेगा और जो बचेंगे वह किसान नहीं बल्कि इन कारपोरेट घराने के बंधुआ मजदूर होंगे !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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