गाँधी भारतीय जनमानस का मनोविज्ञान खूब अच्छी तरह जानते थे ! उन्हें मालूम था कि उनके इस अहिंसा की नौटंकी में पढ़ा लिखा सवर्ण वर्ग शामिल नहीं होगा ! क्योंकि सवर्ण यह जानता था कि आजादी क्रांति से मिलेगी ! भजन गाने से नहीं !
अत: गाँधी ने भीड़ इकठ्ठा करने के लिये हरिजन और मुसलमानों का नेता बनने का निर्णय लिया और हरिजनों की तरह आधी धोती पहनने लगे तथा मंदिरों में कुरान पाठ करने लगे !
कुछ ही समय में गाँधी के आस पास अच्छी खासी भीड़ इकट्ठी होने लगी ! तब अंग्रेजों के गाँधी को संतुलित करने के लिये अम्बेडकर को हरिजन के नेता के रूप में उभरना शुरू किया और जिन्ना को मुसलिम नेता के रूप में प्रस्तुत किया !
जबकि हरिजन ने अम्बेडकर को कभी अपना नेता नहीं माना क्योंकि पढ़े लिखे अम्बेडकर दरिद्र हरिजनों में कभी मिक्स नहीं होते थे ! वह ब्राह्मण कलौनी में रहा करते थे उनकी दूसरी पत्नी भी ब्राह्मण ही थी इसीलिये अम्बेडकर पूरी जिन्दगी राजनीति करने के बाद तथा अंग्रेजों से भारी समर्थन के बाद भी कभी भी कोई चुनाव नहीं जीत पाये !
द्वतीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक स्थिती ख़राब हो जाने के कारण ब्रिटेन के पास सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने तक का पैसा नहीं था ! वेतन के आभाव में सरकारी कर्मचारियों में भारी असंतोष था ! भारत में रोज ही धरना प्रदर्शन हड़ताल आदि चल रहे थे और अंग्रेज भी जल्दी से जल्दी भारत में लोकतंत्र कायम करके भारत से पिण्ड छुड़ा लेना चाहते थे !
इस हेतु आनन फानन संविधान सभा बनाई गयी और अम्बेडकर को संविधान के ड्राफ्ट कमेटी का चेयरमैन बना दिया गया ! कहने को तो संविधान निर्मात्री सभा संविधान लिख रही थी पर उस पर असली कार्यवाही इंग्लैंड में चल रही थी !
बाद में जो संविधान लागू हुआ वह अम्बेडकर की इच्छा के विरुद्ध था इसीलिये अम्बेडकर ने बतौर कानून मंत्री राज्यसभा में दो बार इस संविधान को जला देने की बात भी कही थी ! जिस पर धूर्त भारतीय नेताओं ने गाँधी की प्रयोजीत हत्या हो जाने के कारण भय और स्वार्थ वश अम्बेडकर का साथ नहीं दिया ! अत: अम्बेडकर ने अपने अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म छोड़ कर बौद्ध धर्म अपना लिया और अम्बेडकर संविधान विरोधी आन्दोलन की तैय्यारी में जुट गये !
अम्बेडकर के इस संविधान विरोधी आन्दोलन की तैय्यारी से भयभीत कांग्रेसियों ने अंग्रेजों के इशारे पर राज्यसभा में ही कार्यवाही के दौरान अम्बेडकर की हत्या करवा दी ! जो रहस्य आज भी रहस्य है !
13 अक्टूबर 1935 को नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन में बोलते हुए आम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की थी ! उन्होंने कहा था कि “हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज मरूँगा नहीं !” ! जिस बात की जानकारी नेहरू और अंग्रेजों दोनों को थी !
गुप्त सूत्रों से अंग्रेजों और नेहरू दोनों को यह पता था कि अम्बेडकर अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध होने जा रहे हैं और इस संविधान के विरोध में भविष्य में हरिजन और बौद्धों को साथ लेकर बड़ा आन्दोलन कर सकते हैं ! अत: बौद्धों को संतुष्ट करने के लिये महान शासक अशोक के हजार घृणित कार्यों को अनदेखा करते हुये अशोक के लाट को भारतीय सत्ता के प्रतीक चिन्ह के रूप में 26 जनवरी 1950 को स्वीकृति दे दी गयी !
तथा हरिजनों को नियंत्रित करने के लिये उन्हें सरकारी नौकरी में मात्र 20 वर्ष के लिये आरक्षण दे दिया गया !!
विशेष : यदि आप सम्राट अशोक के घृणित कार्यों का ऐतिहासिक लेखा जोखा चाहते हों तो कमेंन्ट अवश्य कीजिये !!