इस कोरोना महामारी की वजह राम जन्म भूमि शिलान्यास तो नहीं : Yogesh Mishra

इतिहासकारों के अनुसार उत्तर कौशल प्रदेश की प्राचीन राजधानी अवध को कालांतर में अयोध्या और बौद्धकाल में साकेत कहा जाने लगा ! अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर था ! हालांकि यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध एवं जैन धर्म से जुड़े मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं ! जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ था ! बौद्ध मत के अनुसार यहां भगवान बुद्ध ने कुछ माह विहार किया था !

अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था ! तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का राज महाभारतकाल तक रहा ! यहीं पर प्रभु श्रीराम का दशरथ के महल में जन्म हुआ था ! महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इन्द्रलोक से की है ! धन-धान्य व रत्नों से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुंबी इमारतों के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है !

किन्तु माता सीता के त्याग से दुखी माता सीता ने इस अयोध्या को श्रीहीन होने का शाप दिया था ! जिसके प्रभाव से अयोध्या उजाड़ गई ! भगवान राम को जल समाधी लेनी पड़ी ! अयोध्या पर सैकड़ों आक्रमण हुये और फिर कभी अयोध्या में श्री का निवास नहीं हुआ ! आज भी अयोध्या में श्रीहीन ही है !

माता सीता के शाप से सोने की लंका में सम्पूर्ण वैभव के साथ रहने वाले रावण का भी वंश मूल के साथ सर्वनाश हो गया था ! केकई के प्रभाव में राजा दशरथ द्वारा भगवान राम को वनवास की आज्ञा देने के बाद सीता माता के अयोध्या छोड़ते ही राजा दशरथ भी पुत्र शोक में अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए थे !

माता सीता के जन्म के समय उनके पिंड को एक मटके में गाड़ दिए जाने के कारण मिथिला राज्य में 14 वर्ष तक निरंतर अकाल और सूखा पड़ता रहा जो राजा जनक के तपोबल से माता सीता को मटके से निकालने के उपरांत ही समाप्त हुआ !

इसी क्रम में माता सीता के भूमि गमन के बाद भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने बार-बार अयोध्या नगरी के पुनर्निर्माण का प्रयास किया ! किन्तु वह सफल नहीं हुये बल्कि वह जितना प्रयास करते थे ! आक्रमण और प्राकृतिक आपदाओं के कारण अयोध्या उतनी ही उजडती चली जा रही थी ! अंततः हार कर कुश ने अयोध्या नगरी के पुनर्निर्माण के सभी प्रयास बंद कर दिये !

इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व प्रभावहीन रहा और सुर्यवंश के आखिरी राजा, महाराजा बृहद्बल भी महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के हाथों मारे गये और महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या ऐसी उजड़ी कि आजतक नहीं सम्हल पायी ! जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी बसाने का कई बार प्रयास किया था !

ईसा के लगभग 70 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य एक दिन आखेट करते-करते अयोध्या पहुंच गये ! थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी के किनारे एक आम के वृक्ष के नीचे वह अपनी सेना सहित आराम करने लगे ! उस समय यहां घना जंगल था ! कोई नगर नहीं था ! महाराज विक्रमादित्य को इस भूमि में कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे ! तब उन्होंने खोज आरंभ की और पास के योगी व संतों की कृपा से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह श्रीराम की जन्म भूमि अवध है ! उन संतों के आग्रह पर महाराज विक्रमादित्य ने माता सीता का आवाहन किया उनसे आशीर्वाद लिया और उनकी आज्ञा के उपरांत यहां एक भव्य मंदिर के साथ-साथ कूप, सरोवर, महल आदि भी बनवाये ! कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था ! जिस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी !

विक्रमादित्य के बाद के अनेक राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की ! लेकिन किसी ने न तो माता सीता का आवाहन किया और न ही उनका आशीर्वाद लिया ! अत: सभी के शासनकाल में उन्हें अपने राज्य में भयंकर सूखा, अकाल, महामारी आदि से जूझना पड़ा !

फिर एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग जो कि ब्राह्मण थे ! उन्होंने साधना कर माता सीता को प्रसन्न किया और फिर माता सीता का आशीर्वाद प्राप्त करके उन्होंने राम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया ! पुष्यमित्र का एक शिलालेख भी अयोध्या में प्राप्त हुआ है ! जिसमें उन्हें सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किये जाने का वर्णन है ! अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और उसके पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी रही ! लेकिन सभी ने माता सीता को अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा है ! यही उनकी सफलता का राज था ! गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंशम में इसका विस्तार से उल्लेख किया है !
कहते हैं कि चीनी भिक्षु फा-हियान ने यहां आया था ! उसने देखा था कि उस समय की अयोध्या में कई बौद्ध मठ थे ! यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग भी आया था ! उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे ! जिसमें 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर राम जन्म भूमि भी था ! जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे ! किन्तु वह माता सीता का न तो आवाहन करते थे और न ही पूजन करते थे ! अत: जब बैद्धों ने इस नगरी का विस्तार करना चाहा तो वहीँ से बौद्ध धर्म का विनाश शुरू हो गया और अंततः भारत में विलुप्त हो गया !

इसके बाद 11वीं शताब्दी में कन्नौज नरेश जयचंद यहाँ आया और उसने भी माता सीता के आवाहन और आज्ञा के बिना अयोध्या का विस्तार करना चाहा ! यहाँ के मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति शिलालेख को उखाड़कर उसने अपना नाम लिखवा दिया और यहीं से उसका पतन शुरू हुआ ! फिर पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया !

इसके बाद तो भारत वर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण और बढ़ता चला गया ! आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तियां तोड़ने का क्रम जारी रखा ! लेकिन 14वीं सदी तक वह आक्रान्ता अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाये !

विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा ! कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था ! 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए ! अंतत: 1527-28 में बाबर के आदेश पर इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया ! फिर क्रूर शासक औरंगजेब ने अपने पूर्वज बाबर के सपने को पूरा करते हुए यहां भव्य मस्जिद का निर्माण करवाया और उसका नाम बाबरी मस्जिद रख !

राजीव गांधी सरकार के प्रयास से राम जन्म भूमि मंदिर का शिलान्यास अयोध्या में 9 नवंबर 1989 को किया गया था ! यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने वीएचपी के नेताओं के साथ एक मीटिंग की थी ! जिसमें तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह भी शामिल थे ! लेकिन इसमें भी वही गलती हुई ! अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी माता सीता का न तो आवाहन किया गया और न ही उनका आशीर्वाद लिया गया !

परिणामत: इस शिलान्यास बाद राजीव गाँधी की हत्या हो गयी ! नारायण दत्त तिवारी पर चरित्रहीनता का आरोप लगा ! वह मुक़दमा हार गये और न चाहते हुये भी रोहित को सार्वजनिक रूप से अपना पुत्र स्वीकार करना पड़ा !

बूटा सिंह ने स्वर्ण मंदिर में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के समर्थन में बयान दे दिये ! नतीजा यह हुआ कि अकाल तख्त ने उन्हें ‘जातबाहर’ कर दिया ! बहिष्कृत बूटा सिंह ने गुरुद्वारों में बर्तन धोकर और जूते पोंछकर सेवा करते हुये प्रायश्चित किया ! तब सिख समाज ने उन्हें माफ़ किया !

वर्ष 1990 में बीजेपी के सहयोग में विश्व हिन्दू परिषद ने भारत के इतिहास में राम जन्म भूमि को आजाद करवाने के लिये सबसे बड़ा आन्दोलन शुरू किया और अंत: 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराया गया ! जिसमें सैकड़ों हिन्दू शहीद हुये !

राम जन्मभूमि आंदोलन का बीजेपी को लाभ यह मिला कि बीजेपी ने सत्ता को प्राप्त किया ! किंतु सत्ता प्राप्त करते ही बीजेपी अपने वादे से मुकर गई और राम जन्मभूमि के शिलान्यास हेतु उसने कोई भी प्रयास नहीं किया !

परिणाम यह हुआ कि मात्र छः साल में ही बीजेपी का अस्तित्व विलुप्त हो गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई का स्वास्थ्य निरंतर गिरने के कारण उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अंततः कोमा में चले गये !

दूसरी तरफ न्यायलय में रामजन्मभूमि पर अधिकार के लिये हिन्दू और मुसलमान पक्षों के मध्य मुक़दमा चलता रहा और अंत: 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्राप्त हुआ कि “विवादित जमीन पर राम मंदिर बने” !

जिस आदेश के तहत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 5 अगस्त 2020 को राम मन्दिर निर्माण हेतु अयोध्या में भूमि पूजन व शिलान्यास किया ! उस समय देव शयन काल चल रहा था ! इस पूजन में भी वही त्रुटि हुई ! जो इससे पहले शासकों से होती रही और उसका खामयाजा भुगतना पड़ रहा है ! वह थी “अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी माता सीता का आवाहन कर शिलान्यास व भूमि पूजन हेतु उनकी आज्ञा और आशीर्वाद प्राप्त न करना” !

अब उसी का परिणाम है कि जिस रोज से शिलान्यास किया गया ! उसके बाद निरंतर बीजेपी की लोकप्रियता में कमी होती जा रही है तथा आम जनमानस कोरोना जैसी भयंकर महामारी की चपेट में आ गया है ! रोज सैकड़ों मौतें हो रही हैं ! जिससे बीजेपी के शासन व्यवस्था पर राज्य और केंद्र दोनों स्तर पर अनेकों प्रश्न खड़े हो गए हैं !
दूसरी तरफ जिन राज्यों में चुनाव हुये वहां भी निरंतर बीजेपी को राजनीतिक असफलता का सामना करना पड़ रहा है अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि राम जन्मभूमि शिलान्यास क्योंकि उचित मुहूर्त के बिना किया गया तथा माता सीता की आज्ञा और आशीर्वाद के बिना किया गया !

अत: मेरा ऐसा मानना है कि आज बीजेपी के लोकप्रियता में निरंतर कमी आ रही है और भारत में व्याप्त महामारी भी इसी का दुष्परिणाम है ! जिससे बचने लिए सभी भारतीयों को माता सीता को प्रसन्न करने के लिये अपने निजी स्तर पर अनुष्ठान करना चाहिये ! जिससे संपूर्ण देश में व्याप्त महामारी समाप्त हो सके और हमारा देश पुनः खुशहाल हो सके !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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