रावण “वैष्णव संस्कृति” का विरोधी क्यों था !
“यक्ष” बनाम “रक्ष” संस्कृति
जैसा कि हमारे पुराण बतलाते हैं कि भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ ! विवाह के बाद संज्ञा ने वैवस्वत और यम (यमराज) नामक दो पुत्रों और यमुना (नदी) नामक एक पुत्री को जन्म दिया ! यही विवस्वान यानि सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु कहलाये !
वैवस्वत मनु के नेतृत्व में त्रिविष्टप अर्थात तिब्बत या देवलोक से प्रथम पीढ़ी के मानवों (देवों) का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ ! वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से पवित्र वेद भी साथ लाए थे ! इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चलती रही ! वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ ! इनकी शासन व्यवस्था में देवों में पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व ! इनके के दस पुत्र हुए थे ! इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे ! इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही मुख्यतः विस्तार हुआ ! इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं !
वैवस्वत सातवें मन्वंतर का स्वामी बनकर मनु पद पर आसीन हुए थे ! अत्रि, वसिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वमित्र और जमदग्नि- ये सातों इस मन्वंतर के सप्तर्षि थे !
इस मन्वंतर में ऊर्जस्वी नामक इन्द्र थे ! जो पृथ्वी के समस्त जल स्रोतों के स्वामी थे ! वह कृषि आदि के लिये प्रयोग किये जाने वाले जल पर “कर” (टैक्स) लगा कर उस कर के धन से अपना व अपने राज्य का पोषण करते थे ! जब जल पर कर अत्यधिक हुआ तो उसका उपभोग करने वालों ने इन्द्र का विरोध करना शुरू किया ! जिससे विवाद बढ़ता गया और अन्त में यूरेशिया के किसानों ने इन्द्र का जल स्रोतों को नियंत्रित करने वाले सारे बांधों को एक साथ तोड़ दिया जिससे यह धरती जल प्रलय के कारण जल से ढँक गई और तत्कालीन आर्य शासक भारत आकर सरजू नदी के तट पर वर्तमान अयोध्या में बस गये ! और यहाँ कृषि आदि कार्य को नये सिरे से आरम्भ किया !
यही मनु भारत में आर्यों के प्रथम शासक (राजा) वैवस्वत मनु कहलाये ! यह आर्य “वैष्णव संस्कृति” अर्थात नगरीय संस्कृति के पोषक थे ! इनके आगमन के पूर्व भारत में “शैव संस्कृति” प्राकृतिक संस्कृति का चलन था, जो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के विरोधी थे !
वैष्णव संस्कृति प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और उपभोग में विश्वास रखती थी ! यहीं से “यक्ष संस्कृति” अर्थात भोग विलासी संस्कृति की उत्पत्ति हुई ! जिसका रावण विरोधी था और उसने यक्ष संस्कृति के विरुद्ध “रक्ष संस्कृति” की स्थापना की ! जो कि भारत की मूल “शैव संस्कृति” का पोषण करती थी ! यही रावण और वैष्णव का विरोध था !
“वैष्णव संस्कृति” के पोषक “अग्नि” की उपासना करते थे ! जबकि “रक्ष संस्कृति” वाले “तप” में विश्वास रखते थे ! इसीलिए रावण अग्नि उपासक “यज्ञ” आदि करने वालों का विरोध करता था ! क्योंकि रावण का यह मानना था कि प्रकृति के प्रकोपों के भय से निर्मित काल्पनिक ईश्वर को खुश करने के लिये आयोजित “यज्ञ” में प्राकृतिक संसाधनों को अनावश्यक जला कर नष्ट कर दिया जाता है और तरह तरह के जीव जन्तुओं की बलि के रूप में निरीह पशुओं की हत्या कर दी जाती है जो कि उचित नहीं है !
जबकि सब कुछ मनुष्य के अन्दर ही ऊर्जा रूप में है, जिस ऊर्जा को “तप” के द्वारा जाग्रत किया जा सकता है और प्रकृति से वह सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है जो मनुष्य चाहता है ! इसके लिये किसी भी काल्पनिक ईश्वर के आराधना की कोई आवश्यकता नहीं है औए न ही प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने या निरीह पशुओं के हत्या की ही आवश्यकता है !
इसके अलावा “वैष्णव संस्कृति” में बड़े ही कठोर सामाजिक नियम थे ! कोई भी व्यक्ति यदि सामाजिक नियमों का पालन नहीं करता था या राजा किसी भी कारण से किसी नागरिक से असंतुष्ट हो जाता था ! तो उस नागरिक को समाज से बाहर कर दिया जाता था अर्थात उसकी समस्त संपत्ति, पत्नी और बच्चे सभी को छीन कर उसे जंगलों में निकाल दिया जाता था ! जिसे हुक्का पानी बंद करना या जिला बदल कहा जा सकता है !
रावण इस तरह के दंड के विधान का विरोध करता था ! इसीलिए वैष्णव के द्वारा निकाले गये सभी नागरिकों को वह अपने राज्य में स्थाई रूप से रहने के लिए स्थान प्रदान करता था ! इसीलिए वैष्णव द्वारा निकाले गए लोग रावण के लिए पूरी तरह समर्पित थे और रावण की सेना की महाशक्ति थे ! जिस सेना की वजह से रावण ने लगभग संपूर्ण पृथ्वी पर अपना शासन जमा लिया था !
रावण का यह मानना था कि राजा की समस्त संपत्ति पर उसकी प्रजा का समान अधिकार है ! जबकि वैष्णव परंपरा में “राजा” “प्रजा” का शासक था और राजा प्रजा के ऊपर “कर” लगा कर उस से धन प्राप्त करता था और धन को अपने निजी भोग विलास के लिए खर्च करता है !
रावण का यह भी मानना था कि यदि राज्य में कोई भी नागरिक किसी भी अभाव में जी रहा है तो नागरिक के उस आभाव के लिए शासक अर्थात राजा जिम्मेदार है ! और राजा का यह कर्तव्य है कि वह अपने प्रत्येक नागरिक की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करे ! इसीलिए रावण के राज्य में कभी कोई अकाल नहीं पड़ा और न ही कभी कोई नागरिक चिकित्सा आदि के अभाव में मारा ! यहाँ तक कि अपने शत्रु राम के भाई लक्ष्मण को भी शक्ति लगने पर रावण ने अपना राजवैध सुषेण को लक्ष्मण के इलाज के लिये भेजा था !
तीसरा रावण का यह भी मानना था कि विज्ञान और तकनीकी के इस्तेमाल पर मात्र राजा का अधिकार नहीं है ! बल्कि राज्य के समस्त नागरिक उस विज्ञान और तकनीकी का उपयोग कर सकते हैं ! इसीलिए रावण के राज्य में कोई भी नागरिक ऐसा नहीं था जो उस समय की विज्ञान या तकनीक से अनभिज्ञ हो या कोई नागरिक उस तकनीकी का समुचित प्रयोग न कर रहा हो अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उस समय की विज्ञान और तकनीकी का जितना उपभोग रावण के राजघराने किया करते थे ! लगभग उतना ही उपयोग प्रत्येक नागरिक किया करता था ! जबकि वैष्णव परंपरा में राजघराने विज्ञान और तकनीकी के उपभोग करने के प्रथम अधिकारी थे और उसके बाद राजा की इच्छा होती थी तभी राज्य का नागरिक उस विज्ञान या तकनीकी का उपयोग कर सकते थे !
रावण गुलाम प्रथा का विरोधी था ! वैष्णव परंपरा क्योंकि कृषि प्रधान नगरीय संस्कृति की पोषक थी ! अतः कृषि कार्यों को करने के लिए गुलामों और मजदूरों की आवश्यकता होती थी ! इसलिये वैष्णव परंपरा का राजा सदैव यह चाहता था कि उसके नागरिक गरीब या गुलाम रहें क्योंकि यदि नागरिक यदि अति संपन्न होंगे तो कृषि आदि कार्यों को करने के लिए मजदूर मिलना बहुत मुश्किल हो जाएंगे !
इसलिए वैष्णव परंपरा में आर्थिक समानता थी ! एक वर्ग वह था जो अति संपन्न था ! जिसके पास राजा की कृपा से संपन्नता के सभी संसाधन मौजूद थे और दूसरा वर्ग वह था जो अत्यंत गरीब और गुलाम था ! जो अति संपन्न वर्ग के लिए कृषि कार्य, पशुपालन, खनन आदि करके संपन्न वर्ग को और संपन्न बनाता था !
रावण इस आर्थिक असमानता का विरोधी था ! उसका यह मानना था कि ईश्वर ने हर मनुष्य को समान अधिकार दिये हैं ! अतः अपने निजी स्वार्थों के लिए किसी भी मनुष्य को किसी दूसरे मनुष्य के ऊपर शासन करने का अधिकार नहीं है और न ही कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को कृत्रिम रूप से अभावग्रस्त रख सकता है ! रही मजदूर और गुलाम की आवश्यकता तो यह सभी कार्य विज्ञान और तकनीकि से लिये जा सकते हैं ! जिनके लिये उसने कुंभकर्ण के निर्देशन में तरह-तरह के रोबोटों और यंत्रों का अविष्कार करवाया था ! यही वजह थी कि रावण के इतने बड़े साम्राज्य में कभी कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त नहीं रहा था !
इसके अलावा वैष्णव परम्परा में उपासना, तप, यज्ञ, अनुष्ठान,आदि पर वैष्णो लोगों ने ब्राह्मण तथा क्षत्रियों के अधिकार सुरक्षित कर रखे थे ! और यदि ब्राह्मण, क्षत्रियों के अलावा कोई अन्य व्यक्ति अनुष्ठान, उपासना, तप, यज्ञ आदि करता था ! तो राजा उसे दंडित करता था ! राम राज्य में “शंबूक वध” इसका सबसे बड़ा उदाहरण है !
जबकि रावण के शासनकाल में प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर की आराधना, तप आदि करने का स्वतंत्र अधिकार था ! कोई भी व्यक्ति यदि चाहें तो बिना किसी भेदभाव के पूजा, तप, अनुष्ठान, उपासना आदि कर सकता था !
इस तरह ज्ञानवान, विद्वान, तपस्वी रावण “रक्षक” संस्कृति का का पोषक था ! जो कि वैष्णव संस्कृति के तत्कालीन पुरोधा देव राज इंद्र को पसंद नहीं था ! इधर रावण की सास मंदोदरी की माँ हेमा का इन्द्र द्वारा अपरहण कर उसे अप्सरा बना देने के कारण जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने इन्द्र को हराया और अपनी नानी को इन्द्र के चंगुल से आजाद करवाया तो इन्द्र तिलमिला गया और इंद्र ने एक योजना बनाकर रावण की वंश मूल सहित हत्या करवा दी !
जैसे यहूदियों ने जीसस क्राइस्ट को मार डाला ! यूनानियों ने सुकरात को मार डाला और अमेरिकन उसने भगवान रजनीश “ओशो” को मार डाला ! उसी तरह वैष्णव संस्कृति के पोषकों ने महा प्रतापी, महा ज्ञानी, समाज में पूर्ण समृधि और समाजवाद लाने वाले, रावण को मार डाला !
और जैसा कि इतिहास में होता है कि जब एक सशक्त व्यक्ति दूसरे सशक्त व्यक्ति को मारता है ! तो मारने वाला शासक अपनी छवि को समाज में अच्छी बनाये रखने के लिए मरने वाले शासक के विरुद्ध तरह-तरह के मनगढ़ आरोपों का निर्माण करता है ! जैसे हिटलर के खिलाफ किया गया ! वर्तमान में “सद्दाम हुसैन” भी इसी तरह के षड्यंत्र का शिकार हुआ !
इतिहासकार जो ग्रंथों का लेखन करते हैं उनके अंदर यह विशेष हुनर होता है कि तत्कालीन लाभ उठाने के लिये वह शासन सत्ता का रूख देखते हुये, विजयी राजा के पक्ष में हारे हुए राजा को दोषी ठहराते हैं ! रावण भी इसी षडयंत्र का शिकार हुआ !