संवाद का भय क्या होता है ? : Yogesh Mishra

परस्पर संवाद की अपनी एक ऊर्जा होती है ! संवाद ही वह शक्ति है जो समाज के हर वर्ग को एक दूसरे से जोड़े रखती है ! जिस समाज में संवाद खत्म हो जाता है ! उस समाज में अपराध बहुत तेजी से बढ़ता है और वह समाज आपसी अविश्वास और अहंकार से ख़त्म हो जाता है !

आप कल्पना कीजिये कि यदि समाज में हर व्यक्ति एक दूसरे को जानता हो और हर व्यक्ति के कार्य और व्यक्तित्व की चर्चा करने के लिये समाज में हर व्यक्ति स्वतंत्र हो ! तो क्या कोई भी व्यक्ति इन परिस्थितियों में अपनी सामाजिक छवि खराब करने के लिये कोई अपराध करेगा !

उत्तर स्पष्ट है नहीं क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ! अतः वह समाज में अपनी छवि खराब नहीं करना चाहेगा ! क्योंकि धन से अधिक महत्वपूर्ण है कि समाज में व्यक्ति की प्रतिष्ठा बनी रहे ! यदि व्यक्ति की प्रतिष्ठा समाज में एक बार खराब हो गई तो उसके पास कितना भी धन हो लेकिन उसका सामाजिक सम्मान खत्म हो जाता है और आखिर धन भी तो सामाजिक सम्मान के लिये ही तो कमाया जाता है !

समाज मे प्राचीन काल से ही गांव स्तर से लेकर बड़े-बड़े महानगरों तक में संवाद केंद्र हुआ करते थे ! जिन्हें व्यक्ति ग्रामीण स्थल पर चौपाल और नगरीय महा केंद्रों में कॉफी हाउस जैसे मॉडर्न नाम से जानता था ! जहां पर समाज का हर व्यक्ति भागीदारी करता था ! सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और वैश्विक विषयों पर लोग चर्चा करते थे और अपना विचार स्वतन्त्र रूप से व्यक्त करते थे ! यह संवाद ही समाज को जीवित बनाये रखता था !

किंतु काल के प्रवाह में इंटरनेट के आगमन के बाद लोगों ने संवाद करना लगभग बंद कर दिया है ! अब लोगों ने विचार फेंकना शुरू कर दिया है और वह भी विचार किसी दूसरे का होता है ! बस सिर्फ एक क्लिक के द्वारा उसे आगे फॉरवर्ड कर दिया जाता है ! जो व्यक्ति विचार को फॉरवर्ड करता है ! वह स्वयं उसने क्या फॉरवर्ड किया है यह नहीं जानता है ! उसको पढ़ता भी नहीं है ! ऊपर की चार लाइन पढ़ी उसे पसंद आ गई तो उसने फॉरवर्ड का बटन दबा दिया !

यह जो संवादहीनता का वातावरण समाज में फैला है ! इसने ही हर क्षेत्र मे अपराध को बढ़ा दिया है और बौद्धिक चिंतन को खत्म कर दिया है !

आज कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर कोई बौद्धिक चिंतन स्वयं नहीं करना चाहता है ! व्यक्ति की सोच का दायरा या तो मात्र 3 रुपये के समाचार पत्र तक सीमित है या फिर उस टी.वी. डिबेट तक ! जो रोज शाम डिफरेंट टी.वी. चैनल पर कुछ चीखने चिल्लाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी वक्ता रोज शाम को अपना बुद्धि विलास करते हैं !

इसीलिये अब न ही समाज और न ही राष्ट्र को कोई स्थाई दिशा नहीं मिल पा रही है ! जिसका सबसे अधिक लाभ राजनैतिक व्यक्तियों ने उठाना शुरू कर दिया ! उन्होंने अपने राजनीतिक दलों की छवि सुधारने के लिये आई.टी. सेल का निर्माण किया और उसके अंदर कुछ बेरोजगार, बुद्धिहीन, बदतमीज और दरिद्र परिवारों के लड़कों को 10 -12 हजार महीने की नौकरी पर रख कर उन्हें अपने राजनीतिक दल की छवि सुधारने का टास्क दिया गया और वह मुर्ख लोग निरंकुश भाव से झूठ और तथ्यविहीन सूचनाओं को समाज में व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से फैला कर अपने अन्नदाता कि छवि सुधारने का काम करने लगे !

इस तरह एक तरफ गलत सूचनाओं का आगमन और दूसरी तरफ समाज में संवादहीनता का वातावरण ! इन दोनों ने ही मिलाकर समाज को विकृत कर दिया और आज उसी का परिणाम है कि समाज में अपराध बढ़ गया है और देश दिशा विहीन हो गया है !

इस संवादविहीन वातावरण के अवसर का लाभ उठाकर राजनीतिक दलों के प्रमुखों को भगवान से भी अधिक महत्वपूर्ण बतलाया जाने लगा और इस विकृत राजनीतिक दलों के विकृत सोच के लोगों ने समाज को अपने निजी लाभ के लिये संवादविहीन बनाने में विशेष रुचि ली ! क्योंकि वह जानते हैं कि उनकी छवि और अस्तित्व इसी संवादहीनता के अभाव में खड़ा रह सकता है !

अतः आप देख रहे होंगे कि फेसबुक की रीच इन्हीं राजनीतिक कारणों से गिरा दी गई ! यूट्यूब पर वीडियो बिना किसी कारण के डिलीट कर दिये जा रहे हैं ! व्हाट्सएप पर जो कभी स्वतंत्र प्रसारण आधार था !उसको लिमिटेड कर दिया जा रहा है ! दूरदर्शन, टीवी चैनल या समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आज वही समाचार प्रकाशित होते हैं ! जो किसी विशेष राजनीतिक दल की छवि को और अच्छा बनाने के लिये उपयोगी हैं !

आज सत्य का संवाद समाज में विलुप्त हो गया है ! इसलिये यह परम आवश्यक हो गया है कि हम लोग अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिये अपने निजी स्तर पर संवाद को पुनः जीवित करें ! क्योंकि यदि हमने संवाद को खत्म कर दिया तो हमारा समाज और राष्ट्र भी खत्म हो जायेगा !

सत्ता में बैठे हुये क्षुब्द मानसिकता के लोग कभी नहीं चाहते कि समाज में संवाद पुनर्जीवित हो ! क्योंकि वह जानते है कि उनके भ्रम की दुकान इसी सामाजिक संवाद हीनता में ही चल सकती है इसलिये यह लोग सामाजिक संवाद से उतना ही भयभीत होते हैं जितना उल्लू सूर्य की रोशनी से भयभीत हो जाता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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