प्रायः दिखाया जाता है कि भगवान राम, कृष्ण आदि जैसे महान योद्धा सामान्य तीर-कमान, चक्र, गदा, तलवार, आदि से बड़े-बड़े युद्ध किया करते थे !
जबकि दूसरी तरफ यह भी बतलाया जाता है कि जिन तीर कमानों से वह युद्ध करते थे ! उसी से वह समुद्र का पानी खौला देते थे ! वर्तमान परमाणु बम की तरह भयावह विस्फोट करते थे ! जिससे पृथ्वी पर भूचाल आ जाता था और बड़े बड़े भूखंड टूटकर समुद्र में समा जाते थे ! किंतु व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो ऐसा संभव नहीं है !
हम अपने पूर्वजों के इन भयानक हथियारों पर आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से इस विषय पर अधिक शोध न करें ! इस मंशा से पश्चिम के षड्यंत्रकारियों ने हमारे महान पूर्वज योद्धाओं और उनके हथियार विज्ञान को उन्हें भगवान बतला कर हमसे छुपा लिया है !
वरना इतिहास गवाह है कि हमारे पूर्वज सामान्य घोड़ा गाड़ी से नहीं बल्कि दिव्या हवाई जहाजों से चला करते थे ! तभी तो द्वारिका से हस्तिनापुर अर्थात वर्तमान दिल्ली जो 1400 किलोमीटर दूर है वहां कभी भी आ जाते थे ! जिसे सामान्य घोड़ा गाड़ी से सफर करना संभव नहीं है !
और भगवान श्री कृष्ण ही नहीं वेद व्यास, महर्षि अगस्त, विश्वामित्र, वशिष्ठ आदि भी जब उनका मन होता था तब वह रूस, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका गहन हिमालय की गहराईयों में भी अनेकों बार यात्रा कर चुके थे ! जो कि सामान्य घोड़ा गाड़ी से किया जाना संभव नहीं है !
इसका मतलब यह है कि ऋषि, मुनि, महात्मा, भगवान आदि के नाम पर हमें हमारे पूर्वजों के विज्ञान से अलग करके हमारे पूर्वजों के समय के विकसित विज्ञान को हमसे छुपाया गया है ! इस विज्ञान को खोजना यह आज की युवा पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है ! जिस क्षेत्र में कोई काम नहीं हो रहा है !
जबकि पश्चिम के देशों में हमारे पूर्वजों के कार्य और उनकी वैज्ञानिक कार्यशैली पर शास्त्रों में किये गये वर्णन के आधार पर गंभीर शोध कार्य किये जा रहे हैं और उनसे नित्य नये आधुनिक हथियारों का निर्माण भी किया जा रहा है !
जिन हथियारों के दम पर आज पश्चिम जगत के लोग पूरे विश्व को अपने नियंत्रण में करने का प्रयास कर रहे हैं और हम और हमारी युवा पीढ़ी गुलामों की तरह उनके यहां उनके उद्देश्यों को पूर्ति के लिये उनके इशारे पर अपने पूर्वजों के विकसित विज्ञान को आधुनिक व्यावहारिक विज्ञान में बदलने के लिए कार्य कर रही है !
यदि भारत को यदि पुनः सशक्त बनाना है तो हमें भी अपने यहां इस तरह के शोध संस्थानों का निर्माण करना होगा, जहां पर पुरातन धर्म शास्त्रों के आधार पर आधुनिक विज्ञान के सापेक्ष नए-नए तरह के यंत्रों का विकास किया जा सके ! अन्यथा हम कई पीढ़ियों तक इन पश्चिम के उद्योगपतियों के गुलाम बने रहेंगे और धीरे-धीरे अपना सर्वनाश कर लेंगे !!