उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पाए जाने वाले इस पारिजात वृक्ष की उम्र वनस्पति वैज्ञानिकोँ के अनुसार 5000 साल हो सकती है.यह दुर्लभ प्रजातिका पारिजात वृक्ष “देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन” की याद दिलाता हैं. किन्तु पर्याप्त रखरखाव के अभाव में कीट पतंगों और दीमक से इस वृक्ष का क्षरण हो गया है. इन पेड़ों में अब फूल भी नहीं आ रहे हैं. ऐसे में वन विभाग भी इस वृक्ष को बचाने में अक्षम महसूस कर रहा है. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पारिजात को समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त सर्व सिद्ध प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष यानि कामनाएं पूर्ण करने वाले वृक्ष के रूप में माना गया है.
मान्यता है कि 5000 वर्ष पूर्व महाभारत के युद्ध के पूर्व अर्जुन ने इसी वृक्ष के नीचे भगवान श्री कृष्ण के निर्देश पर युद्ध जीतने कि कामना से तप किया था यह ऐतिहासिक वृक्ष आज सूखने कि कगार पर है और भारत के सभी वनस्पति वैज्ञानिक मिलकर भी इस वृक्ष को नहीं बचा पा रहे है
मेरी(पंडित योगेश मिश्र) की राय मे इस वृक्ष को बचाने के लिए निम्नलिखित सुझाव पर विचार करना चाहिए :-
1. वृक्ष के निकट बनाए गए सभी आधुनिक निर्माण 500 मी० तक हटकर वृक्ष को उसके स्वाभाविक अवस्था मे पनपने का मौका देना चाहिए क्योकि २०० वर्ष पूर्व विकसित आधुनिकीकारण की सोच व विज्ञान इस वृक्ष के मूल स्वभाव के विपरीत है |
2. वृक्ष के निकट भारतीय नश्ल के गौवंश को पाला जाना चाहिए क्योकि भारतीय मान्यताओ के अनुसार भारतीय नश्ल का गौवंश (कामधेनु) और पारिजात वृक्ष समुद्र मंथन के दौरान पाया गया था अतः भारतीय नश्ल के गौवंश में पाया जाने वाला तत्व इसका पूरक होगा |
3. मनुष्य की तरह वृक्ष भी संवेदनशील एवं भावुक होते है अतः उन्हे प्रेम और सुरक्षा का परिवेश उपलब्ध होना चाहिए जबकि वनस्पति वैज्ञानिको द्वारा किए गए प्रयोग उनके पश्चिमी आसुरी शिक्षा पद्धति के क्रातिम ज्ञान पर आधारित है जिसे सनातनी वयोवृद्ध कल्पवृक्ष आस्वीकार कर रहा है
अतः यदि कल्पवृक्ष को जीवित रखना है तो उसके साथ संवेदना पूर्वक सनातन दृष्टिकोण से उसे सुरक्षा प्रदान करनी होगी