स्त्री-पुरुष द्वारा मैथुनिक संतान के अतिरिक्त 5 अन्य जन्म के प्रकार का वर्णन है भारतीय शास्त्रों मे । Yogesh Mishra

जन्म के छः प्रकार

रज प्रधान मैथुनिक समाज में अब मात्र रज और वीर्य के मिलन से ही संतान उत्पत्ति की व्यवस्था जीवित है पर हमारे प्राचीन जीवन शैली में पांच अन्य प्रकार से भी संतान उत्पत्ति का विधान प्रचलित था किन्तु ज्ञान के आभाव में धीरे- धीरे यह विलुप्त हो गया किन्तु इसका वर्णन शास्त्रों में अभी भी मिलता है इस प्रकार जन्म के संबंध मे भारतीय शास्त्रों में छः प्रकार के जन्म पद्धति वर्णित हैं-

  1. माता पिता के मैथुन व्यवहार से जो रज-वीर्य का मिलन होता है इसे लौकिक जन्म कहा जाता है अथवा ऐसा भी कहा जा सकता है कि मन की वासना के अनुसार जो जन्म मिलता है, यह जनसाधारण का जन्म है।
  2. दूसरे प्रकार का जन्म संतकृपा से होता है। जैसे, किसी संत ने आशीर्वाद दे दिया, फल दे दिया और उससे गर्भ रह गया। तप करे, जप करे, दान करे अथवा किसी साधु पुरूष के हाथ का वरदान मिल जाये, उस वरदान के फल से जो बच्चा पैदा हो, वह जनसाधारण के जन्म से कुछ श्रेष्ठ माना जाता है। उदाहरणार्थः भागवत में आता है कि धुन्धुकारी का पिता एक संन्यासी के चरणों में गिरकर संतान प्राप्ति हेतु संन्यासी से फल लाया। वह फल उसने अपनी पत्नी को दिया तो पत्नी ने प्रसूति पीड़ा से आशंकित होकर अपनी बहन से कह दिया कि, “तेरे उदर में जो बालक है वह मुझे दे देना। यह फल मैं गाय को खिला देती हूँ और पति को तेरा बच्चा दिखला दूँगी।” ऐसा कहकर उसने वह फल गाय को खिला दिया। उसकी बहन के गर्भ से धुन्धुकारी पैदा हुआ तथा संन्यासी द्वारा प्रदत्त फल गाय ने खाया तो गाय के उदर से गौकर्ण पैदा हुआ जो भागवत की कथा के एक मुख्य पात्र हैं।
  3. कोई तपस्वी क्रोध में आकर शाप दे दे और गर्भ ठहर जाय यह तीसरे प्रकार का जन्म है।

एक ऋषि तप करते थे। उनके आश्रम के पास कुछ लड़कियाँ गौरव इमली खाने के लिए जाती थीं। लड़कियाँ स्वभाव से ही चंचल होती हैं, अतः उनकी चंचलता के कारण ऋषि की समाधि में विघ्न होता था। एक दिन उन ऋषि ने क्रोध में आकर कहाः “खबरदार ! इधर मेरे आश्रम के इलाके में अब यदि कोई लड़की आई तो वह गर्भवती हो जायेगी।” ऋषि का वचन तो पत्थर की लकीर होता है। वे यदि ऊपर से ही डाँट लें तो अलग बात है लेकिन भीतर से यदि क्रोध में आकर कुछ कह दें तो चंद्रमा की गति रूक सकती है लेकिन उन ऋषि का वचन नहीं रूक सकता। सच्चे संत का वचन कभी मिथ्या नहीं होता। दूसरे दिन भी रोज की भाँति लड़कियाँ आश्रम के नजदीक गई। उनमें से एक लड़की चुपचाप अन्दर चली गयी और ऋषि की नजर उस पर पड़ी। वह लड़की गर्भवती हो गई क्योंकि उस ऋषि का यही शाप था।

    1. दृष्टि से भी जन्म होता है। यह चौथे प्रकार का जन्म है। जैसे वेदव्यासजी ने दृष्टि डाली और रानियाँ व दासी गर्भवती हो गई। जिस रानी ने आँखें बन्द की उससे धृतराष्ट्र पैदा हुए। जो शर्म से पीली हो गई। उसने पांडु को जन्म दिया। एक रानी ने संकोचवश दासी को भेजा। वह दासी संयमी, गुणवान व श्रद्धा-भक्ति से संपन्न थी तो उसकी कोख से विदुर जैसे महापुरूष उत्पन्न हुए।
    2. पाँचवें प्रकार का जन्म है कारक पुरूष का जन्म। जब समाज को नई दिशा देने के लिए अलौकिक रीति से कोई जन्म होता है हम कारक पुरूष कहते हैं। जैसे कबीर जी। कबीर जी किसके गर्भ से पैदा हुआ यह पता नहीं। नामदेव का जन्म भी इसी तरह का था।
      नामदेव की माँ शादी करते ही विधवा हो गई। पतिसुख उसे मिला ही नहीं। वह मायके आ गई। उसके पिता ने कहाः “तेरा संसारी पति तो अब इस दुनिया में है नहीं। अब तेरा पति तो वह परमात्मा ही है। तुझे जो चाहिए, वह तू उसी से माँगा कर, उसी का ध्यान-चिंतन किया कर। तेरे माता-पिता, सखा, स्वामी आदि सब कुछ वही हैं।”
      उस महिला को एक रात्रि में पतिविहार की इच्छा हो गई और उसने भगवान से प्रार्थना की कि ‘हे भगवान ! तुम्हीं मेरे पति हो और आज मैं पति का सुख लेना चाहती हूँ।’ ऐसी प्रार्थना करते-करते वह हँसती रोती प्रगाढ़ नींद में चली गई। तब उसे एहसास हुआ कि मैं किसी दिव्य पुरूष के साथ रमण कर रही हूँ। उसके बाद समय पाकर उसने जिस बालक को जन्म दिया, वही आगे चलकर संत नामदेव हुए।
    3. जन्म की अंतिम विधि है अवतार। श्रीकृष्ण का जन्म नहीं, अवतार है। अवतार व जन्म में काफी अन्तर होता है। अवतरति इति अवतारः। अर्थात् जो अवतरण करे, ऊपर से नीचे जो आवे उसका नाम अवतार है।
      सच पूछो तो तुम्हारा भी कभी अवतार था किन्तु अब नहीं रहा। तुम तो विशुद्ध सच्चिदानंद परमात्मा थे सदियों पहले, और अवतरण भी कर चुके थे लेकिन इस मोहमाया में इतने रम गये कि खुद को जीव मान लिया, देह मान लिया। तुम्हें अपनी खबर नहीं इसलिए तुम अवतार होते हुए भी अवतार नहीं हो।
      श्रीकृष्ण तुम जैसे अवतार नहीं हैं, उन्हें तो अपने शुद्ध स्वरूप की पूरी खबर है और श्रीकृष्ण अवतरण कर रहे हैं।
      श्रीकृष्ण का अवतार जब होता है तब पूरी गड़बड़ में होता है, पूरी मान्यताओं को छिन्न भिन्न करने के लिये होता है। जब श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ तब समाज में भौतिकवाद फैला हुआ था। चारों ओर लग जड़ शरीर को ही पालने-पोसने में लगे थे। धनवानों और सत्तावानों का बोलबाला था। ऐसी स्थिती में श्रीकृष्ण ने आकर धर्म का मार्ग दिखलाया

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

शिव भक्ति सरल, सहज, सस्ती, प्रकृति अनुकूल और अनुकरणीय क्यों है ? : Yogesh Mishra

शैव साहित्यों की शृंखला ही बहुत विस्‍तृत है ! वैरोचन के ‘लक्षणसार समुच्‍चय’ में इन …