भारत में अंग्रेजों के आने के पहले जब किसान गाय बैलों के माध्यम से कृषि करता था, तो उसके उत्पाद पूरे विश्व में बिका करते थे और पूरे विश्व का अर्जित धन “सोने” के रूप में भारत के अंदर संग्रहित होता था ! इसी वजह से पूरा विश्व भारत को सोने की चिड़िया के नाम से जानता था !
अंग्रेजों ने भारत में आकर भारत के किसानों को अपना गुलाम बनाया और अपनी इच्छा के अनुरूप तंबाकू, नील आदि की खेती करने के लिए उन्हें मजबूर किया और किसानों को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर नए-नए नियम लागू किए ! परिणामत: अंग्रेज व्यवसाई तो संपन्न होते चले गए किंतु भारत का किसान निर्बल और गरीब होता चला गया !
देश की तथाकथित आजादी के बाद भारत की राजसत्ता में बैठे हुए नेताओं ने भारत के किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए कृषि सुधार नीति लागू की और उसमें समय समय पर अनेक परिवर्तन किए ! जिसका परिणाम यह हुआ कि कृषि उद्योग का यंत्रीकरण शुरू हो गया ! गाय और बैल कत्लखानों में काट दिए गए और किसानों को कृषि के लिए विकास के नाम पर ट्रैक्टर आदि संयंत्रों दे दिये गये !
गाय और बैल की गोबर से बनने वाली स्वाभाविक खाद के स्थान पर अधिक उत्पादन का लालच देकर “यूरिया और फ़र्टिलाइज़र” का प्रयोग करवाया जाने लगा ! जिससे भारतीय कृषि उत्पाद जहरीला हो गया और विश्व स्वास्थ मानकों के विपरीत होने के कारण विश्व धरातल पर भारतीय कृषि उत्पादों को अस्वीकार कर दिया गया !
किसान जो स्वालंबी था वह पराश्रित हो गया ! ट्रैक्टर के लिए बैंकों से कृषि की जमीन गिरवी रखकर लोन दिया जाने लगा ! अज्ञानतावश प्रतिष्ठा का विषय मानकर किसान ने ट्रैक्टर के लिये कर्ज तो लिया लेकिन कर्ज चुका नहीं पाया और उसकी गिरवी रखी कृषि की जमीन भी बैंकों द्वारा हड़प ली गई ! अतः कल तक जो किसान था वह बैंक की इस कार्यवाही के बाद मजदूर हो गया !
कृषि उत्पादों को संग्रहित करने के नाम पर जो बड़े-बड़े गोदाम बनाए गए, वह शुरू से ही भ्रष्टाचार और शोषण का अड्डा बन गए ! बहुत ही कम मूल्य पर किसानों का उत्पाद इन बड़े-बड़े गोदामों में कैद कर दिया गया और नीति के तहत गोदामों में रखा कृषि उत्पाद उपभोक्ता तक पहुंचने के पहले ही पानी आदि डालकर सड़ा दिया गया ! इस तरह उपभोक्ता उत्पाद से वंचित रह जाते हैं !
आज भी किसान अपने कृषि उत्पादों को खुले बाजार में नहीं बेच सकते ! बाजारों के अंदर दलाली का लाइसेंस लेकर डकैत बैठे हुए हैं, जो बलपूर्वक किसानों के उत्पादों को बहुत ही कम मूल्य पर छीन कर उपभोक्ताओं को कई गुना अधिक मनमाने रेट पर देते हैं ! यदि कोई किसान इसका विरोध करता है तो उसके साथ मारपीट दुर्व्यवहार करते हैं ! जिसकी कोई सुनवाई नहीं होती है !
तर्क दिया जाता है कि किसानों को मजदूर नहीं मिलते जब मनरेगा जैसी शोषणवादी, अव्यवस्थित नीतियों को चला कर मजदूरों को किसानों से अलग कर दिया जाएगा तो स्वाभाविक बात है कि कृषि के लिए किसानों को मजदूर नहीं मिलेंगे !
यदि किसानों को आत्महत्या से बचाना है तो सबसे पहले उन्हें बाजार में बैठे हुए लाइसेंसधारी दलालों से बचाना होगा और उत्पाद संग्रह के नाम पर जो किसान और उपभोक्ता के बीच में शोषण का क्रम चल रहा है, इसे समाप्त करना होगा !
प्रत्येक किसान को यह अधिकार देना होगा कि वह अपने मनचाही इच्छा से कृषि उत्पाद करे और उसे मनचाहे स्थान पर विक्रय करे ! तभी किसानों को आत्महत्या करने से रोका जा सकता है ! कृषि में यंत्रीकरण के स्थान पर परंपरागत कृषि पद्धति को फिर अपनाना होगा !
आवश्यकता है के किसान के शोषण के लिए कृषि सुधार नीति के नाम पर जो भी कार्य किए जा रहे हैं उन्हें तत्काल बंद किया जाए और किसानों को स्वाभाविक रूप से कृषि करने एवं अपने कृषि उत्पाद बेचने के लिए स्वालंबी बनाया जाए किसानों की आत्महत्या को रोकने का एकमात्र यही इलाज है !