सनातन सभ्यता के इतिहास पर वामपंथीयों का हमला | Yogesh Mishra

एक महान सभ्यता के रूप में हमारा देश कितना प्राचीन है और उसका उद्गम स्थान कहां है? इस प्रश्न का उत्तर हाल की एक पुरातात्विक खोज में मिल जाता है ! दिल्ली से लगभग 60 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में सिनौली गांव के गर्भ से भारतीय पुरातत्व विभाग ने चार हजार वर्ष पुराने रथ के अवशेष और प्राचीन इतिहास की जानकारी खोजकर निकाली है !

इस खुलासे ने वामपंथी इतिहासकारों के दावों और उनके द्वारा रचित वांग्मयों को निर्णायक रूप से पुन: खंडित किया है, जिसमें आर्यों को विदेशी और प्राचीन वैदिक संस्कृति को काल्पनिक घोषित कर, भारतीय जनमानस को उसकी जड़ों से काटने का भरसक प्रयास किया गया है !

गत दिनों सिनौली गांव में भारतीय पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान राज परिवार के ताबूत के साथ 8 नरकंकाल और पहली बार 3 रथों के अवशेष मिले ! सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल राखीगढ़ी, कालीबंगा और लोथल आदि क्षेत्रों में खुदाई के दौरान कई नरकंकाल तो मिल चुके हैं, किंतु पुरातत्वविदों को रथ के अवशेष पहली बार मिले हैं !

अब तक विश्व में केवल मैसोपोटामिया, यूनानी और जार्जिया की सभ्यता में ही रथ मिलने के प्रमाण हैं ! इन युद्ध-रथों के साथ पुरातत्वविदों को एक मुकुट भी मिला है, जो योद्धा के द्वारा पहना जाता था ! खुदाई से जुड़े लोगों के अनुसार यह महाभारतकालीन सभ्यता के संकेत भी हो सकते हैं !

खुदाई में राज परिवार के मिले ताबूत की लकड़ी खराब हो चुकी है ! इस पर केवल तांबे की नक्काशी ही बची है, जिस पर फूल-पत्तियां आदि उकेरी गई हैं ! इस ताबूत के साथ 2 रथ मिले हैं, जिसमें तांबे का इस्तेमाल हुआ है ! ताबूत के साथ बड़ी संख्या में पहने जाने वाले मनके मिले हैं, जिनमें से पांच सोने के हैं ! कुछ दूरी पर एक अन्य कंकाल मिला है जिसके पास शीशे के पीछे का हिस्सा और कंघा मिला है ! माना जा रहा है कि यह कंकाल किसी महिला का है !

खुदाई में मिट्टी के बर्तन, तांबे की तलवारें, मशाल और ढाल भी मिली हैं ! ये सभी चिन्ह 4000 वर्ष से अधिक पुराने बताए जा रहे हैं ! सिनौली गांव में 2004-2005 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने खुदाई कराई थी ! उस समय यहां से सिंधु घाटी सभ्यता के 116 नरकंकाल मिले थे ! इस वर्ष फरवरी में गांव के एक किसान को अपने खेत में काम करते समय तांबे के कुछ टुकड़े मिले थे ! पुरातत्व विभाग से किसान द्वारा सम्पर्क किए जाने के बाद यहां उत्खनन का काम शुरू हुआ और अब परिणाम हम सभी के सामने है !

भारत की विडम्बना रही है कि देश का एक बड़ा भाग न केवल अपनी मूल पहचान और प्राचीन इतिहास से अनभिज्ञ है, साथ ही उनमें इनके प्रति घृणा का भाव भी घर कर चुका है ! इस विकृति का बीजारोपण 7वीं शताब्दी में तब हुआ, जब मोहम्मद बिन कासिम ने भारत पर हमला कर मजहबी अभियान की शुरूआत की ! कालांतर में अनेकों इस्लामी आक्रांताओं द्वारा लूटपाट के बाद सैंकड़ों मंदिरों (अयोध्या स्थित प्राचीन मंदिर सहित) को तोड़ दिया गया, प्रतीक चिन्हों को जमींदोज कर तलवार के बल पर स्थानीय लोगों का बलात् मतांतरण किया गया !

सन् 1193 में बख्तियार खिलजी ने तो विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त कर दिया, जहां सैंकड़ों वर्षों से अन्य देशों के भी छात्र-छात्राएं 60 से अधिक विषयों पर अध्ययन और उन पर शोध कर रहे थे ! आज वहां इस विश्वविद्यालय के केवल अवशेष बचे हैं ! ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि भारत की प्राचीन संस्कृति के अवशेषों की जानकारी सार्वजनिक हुई है ! अनेकों बार भारतीय पुरातत्व विभाग और सामथ्र्यवान पुरातत्वविदों (विदेशी सहित) ने मिथकों व झूठ पर आधारित भारत के विकृत इतिहास का भंडाफोड़ किया है !

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने अपने शोध लेख के माध्यम से प्रमाणित किया है कि भारत की सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 8000 वर्ष पुरानी है, जो विश्व की दो बड़ी मिस्र और मैसोपोटामिया की सभ्यताओं से भी प्राचीन है ! यहां तक कि एक अमरीकी चैनल ने ‘रामसेतु’ को प्राकृतिक न घोषित करते हुए हजारों वर्ष पुरानी आलौकिक मानव निर्मित उपलब्धि बताया है किंतु इन सभी पर गर्व करने के प्रतिकूल विभाजनकारी एजैंडे के अंतर्गत इन तथ्यों को गर्त पर पहुंचाने का प्रयास पिछले 70 वर्षों से हो रहा है !

किशोरावस्था में अधिकांश भारतीयों को अपने इतिहास की जानकारी स्कूली पाठ्यक्रम के माध्यम से मिल जाती है, जो चिरकाल तक बनी भी रहती है ! यह कटु सत्य है कि देश की शिक्षा पद्धति आज भी उसी मैकाले नीति पर चल रही है, जिसे अंग्रेजों ने अपने साम्राज्यवादी, औपनिवेशिक और राजनीतिक हितों को साधने के लिए लागू किया था ! यूरोपीय विद्वानों ने भारत के प्राचीन इतिहास को इतना विकृत कर दिया कि वह आज अपना मूल स्वरूप खोकर कई कडिय़ों में बंट चुका है !

नि:संदेह, आज हम जिस सिंधु घाटी सभ्यता, मोहनजोदाड़ो- हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानते हैं, अजंता-एलोरा की गुफाओं के सौंदर्य को जाकर निहारते हैं और सांची के स्तूप आदि को देखकर अपने अतीत पर गौरवान्वित होते हैं ! ऐसी अनेकों प्राचीन धरोहरों को अंग्रेजों ने अपने अनुसंधानों और पुरातात्विक उत्खननों के माध्यम से सामने लाने का काम किया है ! इसमें एलैक्जैंडर कनिंघम का योगदान सबसे महत्वपूर्ण है, जिन्होंने 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्थापना की थी ! 1856 में कनिंघम ने सिंधु घाटी के बारे में सर्वेक्षण कर कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई थीं !

विडम्बना यह है कि भारतीय इतिहास लिखने वाले अधिकांश यूरोपीय विद्वान औपनिवेशिक और साम्राज्यवादी ङ्क्षचतन से जकड़े हुए थे किंतु स्वतंत्रता के बाद देश को इस मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए था, किंतु भोग-विलासिता में लीन देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने शीर्ष शिक्षण नियामक संस्थानों को उन वामपंथियों के हाथों में सौंप दिया, जो वैचारिक कारणों से इस विशाल भूखंड की वैदिक संस्कृति और परंपराओं से घृणा करते थे और आज तक स्वयं को इससे जोड़ नहीं पाए हैं !

देश में इतिहासकारों में एक वर्ग ऐसा है, जो पाश्चात्य अवधारणाओं और मिथकों को ही पुष्ट करने में व्यस्त है, जिसमें एक यह भी है कि आर्य विदेशी आक्रमणकारी थे और उन्होंने द्रविड़ों को दक्षिण की ओर खदेड़ दिया था ! औपनिवेशिक काल से आजतक पुरातत्व उत्खननों में जितने ऐतिहासिक साक्ष्यों की खोज हुई है- वह चाहे राखीगढ़ी हो या फिर बागपत का सिनौली, उससे कहीं भी यह सिद्ध नहीं होता है कि आर्य बाहरी थे !

वर्तमान समय में प्राचीन भारतीय संस्कृति का सबसे मूर्तरूप योग ही है ! यह किसी विडम्बना से कम नहीं कि विश्व के जिस भूखंड पर हजारों वर्ष पूर्व ऋषि-मुनियों ने योग की उत्पत्ति की, उसे भारत की ओर से वैश्विक धरोहर घोषित करने और उसे पहचान दिलाने का सर्वप्रथम प्रयास 27 सितम्बर 2014 को तब हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा, जिसे 90 दिनों के भीतर 177 सदस्य देशों से स्वीकृति भी मिल गई !

इस विलम्ब का एकमात्र कारण वामपंथियों का वह बौद्धिक संक्रमण है, जिससे देश पर सर्वाधिक शासन करने वाली कांग्रेस 1960-70 के दशक से आज तक ग्रस्त है ! बागपत सहित अनेकों हालिया शोध-परिणामों से देश की प्राचीन संस्कृति को लेकर वामपंथियों द्वारा फैलाए भ्रम, धारणाओं और मिथकों को विश्वसनीय अनुसंधानों ने प्रमाणिकता के साथ ध्वस्त करने का काम किया है ! उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकतर लोगों के पूर्वज कहीं बाहर से नहीं आए थे बल्कि युगों-युगों से इसी धरती की संतान रहे हैं !

सरस्वती नदी कल्पना न होकर एक वास्तविकता है जिसके किनारे हजारों वर्ष पूर्व एक महान वैदिक सभ्यता का जन्म और विकास हुआ था ! जब हजारों साल पहले विश्व के अधिकांश भागों में मानव पाषाण युग में जीवन-यापन कर रहे थे, तब हमारे पूर्वज एक उन्नत और विकसित समाज का निर्माण कर चुके थे !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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