एक तरफ 19 जनवरी 1990 को जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों नरसंहार शुरू कर दिया था, जिससे कश्मीरी पंडितों का कश्मीर से सामूहिक पलायन शुरू हो गया था, तो दूसरी तरफ सवर्ण परिवारों के बच्चे आरक्षण के कारण अपने अंधकारमय भविष्य से बचने के लिये तत्कालीन सरकार पर दबाव डालने के लिये स्वत: अपने शरीर पर पेट्रोल डाल कर इसलिये आत्म दाह कर रहे थे कि भारत में अब आरक्षण की अवधि न बढ़ायी जाये और मंडल कमीशन के सुझाव लागू न किये जायें !
और संयोग यह था कि उस समय केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे और तथाकथित राष्टवादी जनता दल जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में नव अवतरित हुई उसकी भी केंद्र में गठबंधन सरकार थी ! विश्वनाथ प्रताप सिंह का समर्थन कर उनकी सरकार चला रही थी !
और उस समय बोजेपी के नेता न तो कश्मीरी पंडित के पलायन से दुखी थे और न ही सवर्ण बच्चों के आत्मदाह से बल्कि बोजेपी के नेता भारत को धर्म के ओट में गृह युद्ध में झोंकने की योजना बना रहे थे !
इस योजना का विषय था, राम जन्म भूमि विवाद ! जहाँ पहले से ही राम लला विराजमान थे और विधिवत् उनकी पूजा उपासना चल रही थी ! आम हिन्दूओं को उनके सहज दर्शन भी उपलब्ध थे !
उसी समय उत्तर प्रदेश में समाज वादी पार्टी के एक उभरते हुये युवा मुख्यमंत्री नेता का बीजेपी के साथ आतंरिक समझौता हुआ कि बीजेपी हिन्दू हितों की राजनीति करेगी और उन्हें मुस्लिम हित की बात करनी है और इन दोनों के मध्य छद्म भूमिका निभा रहे थे, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे मजे हुये तत्कालीन नेता जनेश्वर मिश्र ! जिन्हें ने मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, एच डी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुज़राल जैसे छ: सरकारों के मंत्रिमण्डलों में काम किया था ! जिन्हें मुलायम सिंह जैसे नेता अपना गुरु मानते थे !
और अंततः राम जन्म भूमि का मुद्दा गरमाया ! जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुषांगिक संगठन विश्व हिन्दू परिषद् ने महत्व पूर्ण भूमिका अदा की और भारत में गृह युद्ध जैसे हालत बनाते चले गये !
इस गृह युद्ध जैसे हालात से न तो हिंदुओं को कोई फायदा हुआ और न ही मुसलमानों को ! यह जरूर है कि इस घटना क्रम का लाभ उठा कर केंद्र में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार जरूर बन गई और ताज्जुब की बात यह है कि अपनी सरकार के बनने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने कश्मीरी पंडितों की तो कोई सुध ली नहीं और दूसरी तरफ सवर्ण हिन्दुओं के वोट से सरकार को बनाने के बाद आरक्षण को भारत में 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया ! यह था हिंदूवादी सरकार का सवर्ण हिंदुओं के लिए तोहफा !
यह सारा इतिहास हिंदुत्व की रक्षा करने का दावा करने वाले राजनीतिक दल का पुनः विश्लेषण करने के लिए है ! जो लोग भावुक होकर फिल्म काश्मीर फाइल पर अपनी टिप्पणी कर रहे हैं ! उन्हें बीजेपी का यह सत्य भी मालूम होना चाहिए कि उस समय भी भारत में यही संविधान था, कोर्ट थी, सेना थी और केंद्र में हिन्दुओं की बनायीं हुई बीजेपी की सरकार छ: वर्ष तक थी ! तब भी राहत शिवरों में पड़े हुये कश्मीरी पंडितों की सुध लेने वाला कोई नहीं था !!

