प्रेत आत्माओं से सम्बन्ध कब और कैसे होता है !

हर व्यक्ति की जीवनी ऊर्जा का आत्माओं का गहरा सम्बन्ध है ! जिसे वैदिक ज्योतिष अनुसार किसी भी जन्मपत्रिका से जाना जा सकता है ! इसकी जानकारी के लिये जन्म पत्रिका में गुरु, शनि और राहू की स्थिति का गहन विश्लेषण आवश्यक है ! कुण्डली के ग्रहों सम्बन्ध पूर्व कर्मो से प्राप्त फल या प्रभाव बतलाता है ! शनि के पहले घर या बाद के घर में राहू की उपस्थिति या दोनों की युति और साथ में गुरु होने की दृष्टि या प्रभाव व्यक्ति का आत्माओं से सम्बन्ध के प्रभाव को बढ़ा देता है ! जैसे :–

1. गुरु यदि लग्न में होतो पूर्वजों की आत्मा का आशिर्वाद या दोष दर्शाता है ! अकेले में या पूजा करते वक्त उनकी उपस्थिति का आभास होता है ! ऐसे व्यक्ति को अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए !

2. दूसरे अथवा आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में सन्त या सन्त प्रकृति का या और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा ! ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं के आशीर्वाद रहते है ! अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृति से समस्त इच्छाएं पूर्व होती हैं ! ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते है ! उत्तरार्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं ! उनका जीवन साधारण परंतु सुखमय रहता है और अन्त में मौत को प्राप्त करते है !

3. गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से सुखमय जीवन व्यतीत होता है किन्तु शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है ! कुल देवी या मॉ भगवती की आराधना करने से ऐसे लोग लाभान्वित होते हैं !

4. गुरु चौथे स्थान पर होने पर जातक ने पूर्वजों में से वापस आकर जन्म लिया है ! पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन आनंदमय होता है ! शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त पाये जाते हैं ! इन्हें हमेशा भय बना रहता है ! ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करना चाहिए !

5. गुरु नवें स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता हैं ! ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और सन्त समान विचारों से ओतप्रोत रहता है ! ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाएगा ! ऐसे व्यक्ति की बददुआ भी नेक असर देती है !

6. गुरु का दसवें स्थान पर होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त प्रवृत्ति, धार्मिक विचार, भगवान पर अटूट श्रध्दा रखता है ! दसवें, नवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि या राहु भी है, तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल, या न्यास का पदाधिकारी होता है या बड़ा सन्त ! दुष्ट प्रवृत्ति के कारण बेइमानी, झूठ, और भ्रष्ट तरीके से आर्थिक उन्नति करता है किन्तु अन्त में भगवान के प्रति समर्पित हो जाता हैं !

7. ग्यारहवें स्थान पर गुरु बतलाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्रा मंत्र गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत कार्य करने से दूषित प्रेत आत्माएं परिवारिक सुख में व्यवधान पैदा करती है ! उस जातक को मानसिक अशान्ति हमेशा रहती है ! ऐसे जातक को राहू की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है ! ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करना चाहिए और संयम से जीवन यापन करना चाहिए !

8. बारहवें स्थान पर गुरु, गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्वजन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थान या मंदिर तोडने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पडता है ! ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं उदृश्यरुप से साथ देती है ! इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है ! गलत खान-पान से तकलीफों का सामना करना पड़ता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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