क्या हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं ? हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले बर्तन समेत अन्य वस्तुओं पर सिंधु घाटी सभ्यता की अंकित चित्रलिपियों को पढ़ने की कोशिशें लगातार जारी हैं ! यह तो निश्चित सत्य है कि उस समय तक वैष्णव संस्कृति में संस्कृति भाषा का विकास नहीं हुआ था !
वरना हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लिपियाँ संस्कृति भाषा के आस पास होती ! पुरातत्वविदों और भाषा के जानकारों की कोशिशों के बीच नागपुर के एक भाषाविद् का दावा है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सैंधवी लिपि को गोंडी भाषा में प्रामाणिकता से पढ़ा जा सकता है ! यह गोंडी भाषा के विद्वान आचार्य तिरु मोतीरावण कंगाली का दावा है !
सैंधवी लिपि को पढ़ने की कोशिश करने वाले डॉक्टर जॉन मार्शल सहित आधे दर्जन से अधिक भाषा और पुरातत्वविदों के हवाले से डा. मोती रावण कंगाली कहते हैं, “सिन्धु घाटी सभ्यता की भाषा द्रविड़ पूर्व (प्रोटो द्रविड़ीयन) भाषा थी ! यह संस्कृति या उसके आस पास की भाषा तो तो बिल्कुल नहीं थी !”
वहीं ग्रियर्सन सहित कई विद्वान दूसरे भाषाविदों का ज़िक्र करते हुये बतलाते हैं कि वह गोंडी भाषा को उसके उच्चारण और पिक्टोग्राफ़ के आधार पर द्रविड़ परिवार के भाषाओं की जननी मानते हैं !
इस दावे के साथ ही 2002 में उन्होंने सिंधवी लिपि को गोंडी भाषा में समझाने की कोशिश की थी और एक पुस्तक भी लिखी थी ! ‘सैंधवी लिपि का गोंडी भाषा में उद्वाचन !’
हड़प्पन लिपि को दाएं से बाएं लिखा जाता था ! जिसका सांस्कृतिक आधार गोंड समाज में मौजूद है ! वह सारे कार्य दाएं से बाएं एंटी क्लाक वाइज़ करते हैं !
जिस द्रविड़ भाषा में इन लिपियों को पढ़ने की कोशिश करते हुए पुरातत्वविद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं ! कि इन्हें द्रविड़ पूर्व भाषा में पढ़ा जा सकता है ! उस द्रविड़ शब्द का उद्गम गोंडी भाषा के ‘दईरबीर’ शब्द से है ! न कि संस्कृति भाषा से है !
द्रविड़ भाषा परिवार की भाषा तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम आदि में भी इन लिपियों को पढ़ने की कोशिशें जारी है !
सिंधु घाटी-क्षेत्र से संलग्न पूर्व द्रविड़ परिवार के भील, मीना, गोंड समुदाय की बोलियों–भाषाओं में सैंधवी लिपियों को न पढ़कर दो हज़ार किलोमीटर दूर की द्रविड़ भाषा तमिल आदि में इन्हें पढ़ने की कोशिश किया जाना ही यह बतलाता है कि उस समय तक “संस्कृति भाषा” का समुचित विकास नहीं हुआ था !
भील और मीना समुदाय की अपनी भाषाएँ नष्ट हो चुकी हैं, गोंडी आज भी जीवित है ! जबकि ऋग्वेद के अनुसार दुर्योण ‘कुयव असुरों’ की राजधानी थी ! जिसे जला दिया गया था ! मोहनजोदड़ो को भी जलाया गया था ! यह आर्यों की उत्पत्ति के पूर्व द्रविड़ियन की राजधानी बातलायी जाती है ! जो शैव जीवन शैली के पोषक थे ! गोंड समुदाय के लोग आज भी धरती माता की पूजा पर ‘कुयव’ से संबंधित मंत्र से जप करते हैं !
आज गोंड समुदाय के लोग महाराष्ट्र, आंध्र, उड़ीसा और छतीसगढ़ सहित कई राज्यों में रहते हैं ! गोंड महाराजाओं ने विदर्भ के नागपुर में बख्त बुलंद शाह ने, चंद्रपुर भीम बल्लारशाह ने, मध्यप्रदेश के आधुनिक जबलपुर और तब गढ़-मंडला संग्रामशाह आदि ने अनेक शहरों को बसाया था !
इस इलाके में लाखों की संख्या में गोंड समुदाय के लोग आज भी रहते हैं ! जो गोंडवाना राज्य के दावेदार हैं ! गोंडी साहित्य और संस्कृति को समर्पित कार्य करने बाले आर.बी.आई. के पूर्व प्रबन्धक नागपुरे और भाषाविद कंगाली ने अपने नाम से राम शब्द को हटाकर रावण जोड़ लिया था ! क्योंकि गंभीर शोध के बाद उनका मानना था कि भारत की मूल शैव संस्कृत का रक्षक रावण ही था ! जिसे वैष्णव राम द्वारा छल पूर्वक मारा गया था !
वह लोग इस फैसले को अपनी जड़ों से जुड़ना बतलाते हैं ! “आज भी नागपुर सहित कई शहरों में रावण की पूजा होती है !”