देव-असुर संग्राम में आप किस ओर से लड़ेंगे ? Yogesh Mishra

सनातन धर्मशास्त्र हमें यह बतलाते हैं कि सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अब तक 14 विश्वयुद्ध लड़े जा चुके हैं ! मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही धर्म को मानने वाले और न मानने वाले दोनों पैदा हुये ! दोनों ही शक्तियों का एक साथ विकास हुआ और काल के प्रवाह में कभी धर्म को मानने वालों का वर्चस्व रहा और तो कभी धर्म को न मानने वालों का ! सनातन संस्कृति ने वह भी दौर देखे हैं जब सनातन संस्कृत को इस पृथ्वी पर पैर रखने के लिए भी स्थान उपलब्ध नहीं था और “सनातन संस्कृत के पोषक व संरक्षक भगवान विष्णु” ने “बावन अवतार” धारण करके विश्व विजेता राजा “बाली” से सनातन संस्कृति के लिए मात्र “तीन पग” जमीन मांगी थी !

इसलिए अगर आज सनातन संस्कृति पूरे विश्व से समेट कर भारत के किसी एक कोने में असुरक्षित पड़ी है तो इससे घबराने की जरूरत नहीं ! क्योंकि सनातन संस्कृत के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं है ! आज निःसन्देह आसुरी शक्तियां “अर्थ” को हथियार बनाकर पूरी पृथ्वी पर हावी हो रही हैं !

“पूंजीवादी शक्तियों” ने “साम्यवादी शक्तियों” को इस धरती से उखाड़ फेंका है ! लेकिन भारत की सनातन संस्कृति एक आध्यात्मवादी “ऊर्जा” है, “शक्ति” नहीं है ! इसे न तो पूंजीवादी शक्तियां ही उखाड़ सकती हैं और न ही साम्यवादी शक्तियां ! “सर्वे भवंतु सुखना, सर्वे संतु निरामया” की विचारधारा की पोषक सत्य सनातन “ऊर्जा” न जाने कितनी पूंजीवादी या साम्यवादी जैसी विचारधारा को अपने में समेटे हुये है ! विचार कीजिये कि भारत की संवेदना और सहयोग पर आधारित “सनातन संस्कृति” ही यदि नष्ट हो जाये तो क्या मनुष्य इस पृथ्वी पर जीवित बचेगा ?

आज पूंजीवादी शक्तियां समस्त पृथ्वी को “विश्व सत्ता” के अधीन लाने का प्रयास कर रही हैं ! इसे रोकना के लिए यदि “सनातन धर्मियों” और “आसुरी पूंजीवादी शक्तियां” के बीच यदि एक बार फिर “धर्म युद्ध” हुआ तो इस “धर्म युद्ध” में हमें अपने विवेक से यह निर्णय लेना होगा कि हम इस “धर्म युद्ध” में अपने “क्षणिक स्वार्थ” के लिए कौरव के पक्ष में खड़े होंगे या “मानवता की रक्षा” के लिए “भगवान श्रीकृष्ण” के साथ खड़े होंगे ! कुछ लोग कौरव के पक्ष में अपनी “विवेकहीनता” के कारण खड़े होते हैं और कुछ लोग अपनी मजबूरियां वश ! लेकिन जो लोग विवेकशील हैं और बौद्धिक रूप से स्वतंत्र और सम्पन्न हैं ! वह सदैव इस “महायुद्ध” में भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही खड़ा होगा !

पृथ्वी की व्यवस्था काल के प्रवाह में समय-समय पर बदलती रहती है, लेकिन प्रकृति की व्यवस्था कभी नहीं भी बदलती ! इसलिए बहुत ही धैर्य और संयम के साथ “पृथ्वी की व्यवस्था” बदलने वाले पूंजीवादी शक्तियों के साथ “प्रकृति की व्यवस्था” का प्रतिनिधित्व करते हुए “धर्म संघर्ष” करने की आवश्यकता है ! हम किसी पूंजीवादी व्यवस्था की देन नहीं है और न ही किसी “विश्व सत्ता” के पोषक हैं ! हम “ईश्वरीय सत्ता” के अधीन प्रकृति की व्यवस्था पर विश्वास रखने वाले “मानव” हैं और सदैव ईश्वरीय सत्ता में हमारी आस्था बनी रहेगी !

क्योंकि “प्रकृति की व्यवस्था” चिरस्थाई और निरंतर है ! जो लोग काल के प्रवाह में अपने स्वार्थ के लिये क्षणिक अस्थाई “विश्व सत्ता” जैसी शक्तियों के साथ जुड़ जाते हैं, उन्हें कोई याद नहीं करता और जो “आत्म संयम” के साथ “प्रकृति की व्यवस्था” से जुड़े रहते हैं, उन्हें ही “युग पुरुषों” की श्रेणी में रखा जाता है ! हमारी आस्था और विश्वास मानवता के साथ जुड़े हैं ! मैं मानवता की हत्या करके किसी भी तरह का सुख नहीं भोगना चाहता !

मैं ईश्वर के बनाए हुए “मनुष्य” के साथ हूं ! आसुरी और पैशाचिक शक्तियां के रूप में जो मनुष्य इस पृथ्वी पर भटक रहे हैं और पूरी पृथ्वी को निगल जाना चाहते हैं ! ऐसी शक्तियों के विरुद्ध मानवता की रक्षा हेतु “धर्म संघर्ष” सदैव ईश्वर के निर्देश पर चलता रहेगा ! यही ईश्वर की इच्छा है कि हम ईश्वर के कार्य में लगें और मैं इसमें लगा हुआ भी हूँ इसलिए मेरा यह पूरा विश्वास है कि ईश्वर मेरी रक्षा करेगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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