यह एक बहुत बड़ी भ्रांति है कि भगवान विष्णु और राजा विष्णु एक ही व्यक्ति थे ! इसको आज इस लेख में मैने स्पष्ट करने का मन बनाया है !
मनुष्य के ज्ञात इतिहास में सबसे प्राचीन संस्कृति “शैव संस्कृति” है ! जिसके अधिष्ठाता देव भगवान शिव हैं और शिव के परम उपासक भगवान शंकर थे ! जो कि मानसिक शक्तियों के वैज्ञानिक थे ! जिन्होंने “तंत्र शक्ति” का आविष्कार किया था ! यह हिमालय कैलाश पर्वत पर निवास करते थे ! इन्होंने ही प्रकृति आधारित शैव संस्कृति की स्थापना और उसका विस्तार किया था ! जो कि भारत के उत्तर में स्थित कैलाश पर्वत से लेकर कश्मीर के मध्य पनपी और बड़ी हुयी ! इसके ज्ञात आदि पुरुष कश्यप ऋषि थे !
इसके बाद दूसरी महत्वपूर्ण संस्कृति “ब्रह्म संस्कृति” है ! जिसकी स्थापना मंगल ग्रह को भीषण परमाणु और जैविक युद्ध में नष्ट करने के बाद वहां से भाग कर आये हुये मंगल ग्रह वासी वैज्ञानिकों ने स्थापित और विस्तारित किया था ! जैसे अब पृथ्वी को नष्ट करके पुनः मंगल ग्रह पर मानव संस्कृति को बसाने की योजना वैज्ञानिकों द्वारा चल रही है !
यही वेदों के निर्माता थे ! जिन्होंने वेदों के अंदर मंगल ग्रह के ज्ञात समस्त विज्ञान को वहां की “ब्रह्म भाषा” में इसलिये लिपि बद्ध कर दिया था कि “ब्रह्म संस्कृत” का अनुसरण करने वाले इस पृथ्वी ग्रह पर मंगल ग्रह के विज्ञान को जोकि उनके पूर्वजों द्वारा लाखों साल में विकसित किया था, उसे भविष्य में समझ और जान सकें !
इस “ब्रह्म संस्कृति” के अधिष्ठाता देव “भगवान ब्रह्म” हैं ! जिनकी उपासना मंगल ग्रह से आये हुये लोगों द्वारा की जाती थी और इनके आदि पुरुष मंगल ग्रह के परम वैज्ञानिक “ब्रह्मा जी” हैं !
इनको पृथ्वी पर मंगल ग्रह से बार-बार आने के कारण पृथ्वी के चारों दिशाओं अर्थात समस्त भौगोलिक स्थिति का समस्त ज्ञान था ! इसीलिये इनकी संस्कृति में ब्रह्मा जी के चार मुख की कल्पना की गई है !
यह ब्रह्म संस्कृति “सरस्वती नदी के तट पर” जो वर्तमान अफगानिस्तान में कभी पृथ्वी के ऊपर बह कर अरब सागर तक जाती थी, जो अब विलुप्त होकर पृथ्वी के अंदर-अंदर बने जल धाराओं के साथ बहती है ! जिसकी खोज वर्तमान भू वैज्ञानिकों ने भी अब कर ली है !
कालांतर में “ब्रह्म संस्कृति” के समाज से निकाले गये “धूर्त मनुष्यों” ने यूरोप में कैस्पियन सागर के निकट जाकर बसना शुरू कर दिया ! क्योंकि ब्रह्म संस्कृति में मंगल ग्रह से आये हुये प्रताड़ित शरणार्थियों ने पूर्व में मंगल ग्रह पर ही विनाशकारी घटनाओं के कारण अपने सामाजिक व्यवस्था में यह नियम बनाया कि जो व्यक्ति वेदों के आदर्श सिद्धांतों को नहीं मानेगा, उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जायेगा !
अर्थात उस व्यक्ति का समाज में जनसंपर्क बंद कर दिया जायेगा ! जिससे मानवता विरोधी विकृत विचारधारा का प्रसार दोबारा समाज में न हो सके और उस व्यक्ति के साथ समाज का कोई भी व्यक्ति अपनी रोटी और बेटी का संबंध नहीं रखेगा ! यह व्यवस्था आज भी नव विकसित वैष्णव समाज में पायी जाती है !
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह रहा होगा कि ब्रह्म संस्कृति को मानने वालों ने अपने इतिहास को देखकर यह महसूस किया होगा कि समाज में मात्र 1% धूर्त लोग पूरे समाज को परेशानी में डाल देते हैं ! जिस वजह से पूर्व में मंगल ग्रह नष्ट हुआ था !
अतः पृथ्वी पर आने के बाद उन्होंने यह कठोर नियम बनाया कि समाज में व्यवस्था को ठीक से चलाये रखने के लिए वेदों में वर्णित आदर्श सिद्धांतों का अनुपालन किया जाना प्रत्येक नागरिक के लिए अति आवश्यक है !
जो नागरिक वेदों के मौलिक सिद्धांतों का अनुसरण नहीं करेगा ! उसे ब्रह्म संस्कृति के कठोर नियमों के अनुसार समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा ! इस तरह से ब्रह्म संस्कृति के धूर्त नागरिकों को जबरन संस्कृति से बहिष्कृत किया जाने लगा ! तो उन लोग ने जाकर यूरोप के कैस्पियन सागर के निकट अपना निवास करना शुरू किया और नयी संस्कृति को जन्म दिया जो बाद में “वैष्णव संस्कृति” के नाम से जानी गयी ! इनके राजा विष्णु हुये !
जिन्होंने कालांतर में मंगल ग्रह से लाये हुये अपने विज्ञान को पुनः विकसित करके दूसरे आकाशगंगा में स्थित विष्णु लोक के “भगवान विष्णु” से पृथ्वी पर अपने जीवन निर्वाह के लिये समय-समय पर तरह-तरह की वैज्ञानिक मदद मांगी ! जो वैज्ञानिक मदद इन्हें पूर्व में भी मंगल ग्रह पर मिलती थी ! जिससे इन्होंने वहां भी हथियार विकसित कर मंगल ग्रह को भीषण युद्ध में नष्ट कर दिया था !
वही मदद इन्हें पुनः पृथ्वी पर उन विष्णु लोक के वैज्ञानिकों से निरंतर प्राप्त होती रही ! जिसके कारण इन्होंने पृथ्वी पर पुनः अपना शासन जमाने के लिये तरह-तरह के अस्त्र शस्त्रों का निर्माण किया और इन आधुनिक हथियारों की मदद से इस पूरी शान्तिमय पृथ्वी को नये विश्व युद्धों में धकेल दिया ! जिसकी की वजह से इस पृथ्वी पर अभी तक 14 विश्व युद्ध हुये हैं !
इन का विरोध सदैव से दैत्य, दानव, असुर और रक्ष संस्कृति वालों से रहा ! किंतु इनको देवता, यक्ष, किन्नर आदि संस्कृतियों से निरंतर सहयोग मिलता रहा और यह लोग धीरे-धीरे सशक्त होते चले गये ! इनका सर्वाधिक संघर्ष “शैव संस्कृति” के अनुयायियों से हुआ ! जिस का इतिहास समस्त वैष्णव ग्रंथ में भरा पड़ा है !
इनके अधिष्ठाता देव दूसरी आकाश गंगा के विष्णु लोक के “भगवान विष्णु” हैं, किंतु पृथ्वी के नागरिकों को गुमराह करने के लिये इन “ब्रह्म संस्कृति” से बहिष्कृत धूर्त लोगों ने पृथ्वी पर अपने राजा का नाम “विष्णु” रख दिया ! जो कि मात्र एक पदनाम है !
और कालांतर में पृथ्वी वासियों का अपने राजा के प्रति विश्वास दृढ़ करने के लिये वैष्णव लेखकों की मदद से पृथ्वी के सामान्य अवसरवादी और धूर्त राजा “विष्णु” को अपने विष्णु लोक का “भगवान विष्णु” सिद्ध करवाने का प्रयास शुरू कर दिया ! यही वैष्णव साहित्य आज भगवान विष्णु और राजा विष्णु के मध्य बार-बार भ्रम पैदा करता है !!