गाँधी जी के एक साथी आचार्य विनोबा भावे जी थे ! जो महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में एक गांव है, गागोदा के रहने वाले थे ! जिन्हें लम्बे समय तक एकांत में रहने के कारण खुद के तत्व ज्ञानी होने का भ्रम पैदा हो गया ! वह प्राय: अपनी जनसभाओं में स्कंद पुराण पर आधारित रैक्व ऋषि की आधी अधूरी कहानी सुनाया करते थे !
यह विनोबा भावे वही युगपुरुष थे, जिन्होंने जब राजस्थान के मुसलमानों को आर्य समाज के द्वारा हिंदू बनाने का प्रयास किया गया था ! तब गांधी के कहने पर राजस्थान में जाकर आर्य समाज के इस सराहनीय प्रयास के विरुद्ध आमरण अनशन शुरू कर दिया था और जब तक हिंदू बने मुसलमान पुन: मुसलमान नहीं हो गये. तब तक उन्होंने अपना आमरण अनशन नहीं तोड़ा !
यही आचार्य विनोबा भावे के प्रिय मुसलमान आज राजस्थान में हिन्दुओं के लिये एक गंभीर समस्या बने हुये हैं क्योंकि पाकिस्तान बाड़र अब राजस्थान से मिलता है ! जहाँ से हथियार और नशा की तस्करी आज भी इन्हीं के दम से बदस्तूर चालू है !
गांधी की मृत्यु के बाद सन् 1951 में देश के आजाद होने के बाद आचार्य विनोबा भावे ने संपन्न सवर्णों की जमीन बहला फुसला कर हड़पने के लिए राजनैतिक सहयोग से एक छद्म अभियान भूदान का चलाया था !
जिसमें आचार्य विनोबा भावे ने अपने चिलान्टुओं के लिये जमीदारों और रजवाड़ों को भूदान करने के लिये बाध्य किया करते थे और जो भूदान नहीं करता था उसके विरुद्ध वह तुरन्त आमरण अनशन शुरू कर दिया करते थे ! जिसमें बड़े-बड़े जमींदार और राजे रजवाड़े इनके प्रभाव में आ गये और उन्होंने विनोबा भावे को अपनी हजारों एकड़ पैतृक जमीनें दान कर दीं !
आज वही विनोबा भावे के चिलान्टु जिन रजवाड़ों के दम पर जमींदार बने हैं ! उन्हीं पर हरिजन एक्ट का मुकदमा लिखवाने में संकोच नहीं करते हैं !
भैर हाल आज हम बात करते हैं, विनोबा भावे के स्कंद पुराण आधारित रैक्व ऋषि के अधूरे दृष्टांत के त्याग के घटना की !
स्कंद पुराण में एक घटना मिलती है ! एक तत्व ज्ञानी रैक्व ऋषि थे जो राजा जनश्रुति के राज्य में रहते थे !
एक बार राजा जनश्रुति के मन में तत्व ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा जागृत हुई ! राजा जनश्रुति विख्यात रैक्व ऋषि के पास तत्व ज्ञान प्राप्त करने के लिये गये और अपने साथ तत्व ज्ञानी गुरु के लिये बहुत सा उपहार, वस्त्र, धन आदि ले गये ! जिसे रैक्व ऋषि को भेंट किया और उनसे से तत्व ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखी !
जिस पर रैक्व ऋषि ने राजा जनश्रुति को बहुत फटकारा और कहा कि अपनी यह सारी संपदा अपने साथ वापस ले जाओ ! मैं इस सम्पदा के प्रभाव में तुम्हें तत्व ज्ञान नहीं दे सकता हूँ !
क्योंकि एक तत्व ज्ञानी के लिए इन सब बहुमूल्य संपदाओं का कोई महत्व नहीं है ! आचार्य विनोबा भावे कथा को यहीं तक सुनते थे और यह सिद्ध करने का प्रयास करते थे कि मुझ जैसे तत्व ज्ञानी के लिये धन का कोई महत्व नहीं है !
किन्तु आज मैं इसके आगे की वास्तविक पुराण लिखित घटना में सुनाता हूँ ! राजा जनश्रुति निराश भाव से वापस आ गए किंतु तत्व ज्ञान प्राप्त करने की चाहत उनकी कम न हुई ! अतः उन्होंने अपने बहुत से मंत्री और परमर्शियों से परामर्श लिया !
कुछ समय के अध्ययन के बाद सभी ने एक मत से राय दिया कि राजा जनश्रुति को अपने राज्य की एक सबसे सुन्दर स्त्री को लेकर पुन: रैक्व ऋषि के पास जाना चाहिये ! इस स्त्री के स्पर्श सुख से निश्चय ही रैक्व ऋषि राजा जनश्रुति को तत्व ज्ञान देंगे !
तब राजा पुन: अपनी कन्या को लेकर उपहार सहित रैक्व ऋषि से मिले तब उस कन्या की सुन्दरता देख कर रैक्व ऋषि मुग्द हो गये और उपहार स्वीकार करके राजा जनश्रुति को तत्व ज्ञान दिया !
अर्थात तत्व ज्ञानियों की भी मानवीय कमजोरियां होती हैं !!