जैसा कि हम सभी जानते हैं की घटना और शब्दों की ऊर्जा सदैव ब्रह्मांड में तैरती रहती है ! यदि किसी व्यक्ति ने किसी व्यक्ति के विषय में कोई ऐसी बात कही है, जो घटना की ऊर्जा से तालमेल नहीं खाती है ! तो प्रकृति स्वत: ही उस बात को कहने वाले व्यक्ति को दंडित करना आरंभ कर देती है ! यही मुण्डक-उपनिषद से लिये गये “सत्यमेव जयते” का आधार है !
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि भगवा कपड़े पहन कर बड़े-बड़े मंचों के व्यास पीठ पर बैठे हुये लोग धार्मिक कथाओं में दिल खोलकर झूठ बोलते हैं और समाज के लोग अज्ञानता वश या भावुकता वश उस झूठ को वैसा ही स्वीकार कर लेते हैं, जैसा कि कथा वाचक व्यास पीठ से बोल रहा होता है !
लेकिन क्या आपने कभी यह महसूस किया कि भगवान के नाम पर इस तरह से व्यासपीठ से झूठ बोलने वाले कथावाचकों का हश्र क्या होता है ? प्राय: यह लोग गंभीर बीमारियों से पीड़ित होकर तड़फ-तड़फ कर मरते हैं या फिर इनके ही भक्त इनकी हत्या कर देते हैं !
जबकि जीवन भर भगवान का नाम लेकर उनके महान कार्यों का प्रचार प्रसार करने वाले भक्तों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिये ! जैसा कि यह लोग बड़े-बड़े मंचों पर बैठकर स्वयं ही बतलाया करते हैं !
लेकिन फिर भी इनके साथ ऐसा ही हो रहा है ! यह घटनाएं यह सिद्ध करती है कि भगवान मूर्ख नहीं है ! ईश्वर की कार्य कारण व्यवस्था निरंतर अनादि काल से अपना कार्य करती चली आ रही है और आगे भी करती रहेगी !
इसीलिए कभी भी अपने निजी लाभ के लिये भगवान का नाम लेकर समाज को मूर्ख बनाने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए !!