वैष्णव शास्त्रों में देवताओं का मानवीकरण : Yogesh Mishra

वैदिक युग से लेकर कृष्ण काल तक रामायण और महाभारत इन दो ग्रंथों के भीतर वेदों के विरुद्ध वैष्णव लेखकों ने राम और कृष्ण को ईश्वर से ऊपर प्रस्तुत किया है ! जब कि सनातन शैव चिंतन में मिथक या माइथालोजी के लिये यहाँ कोई स्थान ही नहीं था ! किन्तु पहली बार वेदों के नक्शेकदम पर आदि लेखक महर्षि बाल्मीकी ने रामायण के अन्दर सारे वैदिक देवी देवताओं का मानवीकरण करके उन्हें मानव जैसा ही एक नया आकार दे दिया है !

और मानव देवता को से भी ऊपर की प्रतिष्ठा कर दिया ! इस बाल्मीकी के साहित्य में अग्नि, वरुण, वायु आदि जो मात्र ऊर्जा रूप में होते हैं ! वह सब मानव रूप में मनुष्य की सेवा करने के लिये धरती पर उतर आते हैं ! यह सृष्ठी के संचालक महान देवता रामायण में पृथ्वी पर वानर और भालू बन कर घूम रहे थे ! रामायण का राम एक पूर्ण पुरुषार्थी मानव है !

जिसे बाल्मीकी अनावश्यक वैष्णव के समर्थन में विष्णु की संज्ञा दे दी ! क्योंकि उस समय उत्तर भारत में अधिकांश राजा वैष्णव जीवन शैली अपना चुके थे ! जबकि वास्तव में इसकी की कोई आवश्यकता ही नहीं थी ! क्योंकि भगवान राम शैव भक्त ब्राह्मण रावण का वध करके अपने को एक सम्पूर्ण मनुष्य के रूप में प्रस्तुत कर चुके थे !

आदिकवि बाल्मीकी ने रामायण में अपने नर राम की प्रतिष्ठा वैदिक विष्णु से ऊपर की है ! जिन रावण की क्रूरताओं को विष्णु सहित सारे देवता मिलकर भी समाप्त न कर सके ! उसे वाल्मीकि के मानव राम ने अपने दिव्य पुरुषार्थ से नष्ट कर दिया ! रावण की शक्ति सारे देवताओं से भी अधिक प्रचण्ड थी ! फिर भी बाल्मीकि ने रामायण में यह सिद्ध किया कि मानव राम ने रावण की क्रूरता को समाप्त कर देवत्व के ऊपर मनुष्यत्व को प्रतिष्ठित कर दिया है !

वैदिक देवतावाद के सन्दर्भ में यह वाल्मीकि की यह रामायण एक बहुत बड़ी वैष्णव राजाओं के लिये चटुकारिता पूर्ण नई लेखन क्रांति के साथ नायब प्रस्तुति थी ! जिसने देवताओं के राजा इन्द्र और प्रतापी देव सेनापति वरुण के लिये भी भारतीय वैष्णव इतिहास के काल-प्रवाह में कोई भी स्थान न छोड़ा !

कालांतर में महाभारत काल तक आते-आते तो श्रीकृष्ण को देवताओं से बहुत ऊपर इस सृष्ठी का निर्माता, पालक, नियन्ता, विनाशक सभी कुछ घोषित कर दिया गया ! जिस कृष्ण ने देवताओं के वैदिक राजा इन्द्र का ही इन्द्रध्वज ही वैष्णव संस्कृति उखाड़ फेंका था और स्वयं ही सृष्ठा बन गया !

जो प्रकृति की संपूर्ण व्यवस्था माया, योगमाया, महामाया तीनों का नियन्ता है ! जिसने पंच तत्वों को अपने नियंत्रण में कर रखा है ! जो काल के प्रवाह को भी रोकने या बदलने का सामर्थ्य रखता है ! जिसकी इच्छा मात्र पर प्रकृति की समस्त व्यवस्थायें अपने क्रम में परिवर्तन को तैयार बैठी हैं ! जो जीव का की उत्पत्ति का कारण है ! जीव का पालक है और जीव को अपने में ही विलय कर लेने का सामर्थ रहता है !

अर्थात इस सृष्ठी के संचालन के लिये उत्पत्ति हेतु ब्रह्मा, पालन हेतु विष्णु और संघार हेतु शिव की कोई आवश्यकता बाकी नहीं रही है और नही जीव के कर्म के अनुसार उसे दंडित या पुरस्कृत करने के लिये यमराज की ही आवश्यकता शेष बची है ! अर्थात इस समस्त भूमंडल पर वैष्णव जीवन परंपरा के कृष्ण के अलावा किसी अन्य देवी-देवताओं की कोई आवश्यकता शेष नहीं बची है !

भूत, प्रेत, पिशाच, जिन्न, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, आदि सब प्राकृतिक ऊर्जायें अब निषप्रयोजन हैं ! ऐसा अद्भुत वैष्णव परम्परा का मनुष्य जो प्रकृति की समस्त मर्यादाओं से परे है ! उसे महाभारत के नायक के रूप में व्यास द्वारा प्रस्तुत किया गया है !

यह महाभारत की दृष्टि में मनुष्य की श्रेष्ठत्म प्रस्तुति से आधिक और कुछ भी नहीं है ! इसके बाद अगर शंकराचार्य मनुष्य को ही ब्रह्म घोषित कर देते हैं ! तो इसमें गलत क्या है ?

जिसका अनुकरण बौध आदि परम्परा के लोगों ने राजाओं के सहयोग से मूर्तियों का निर्माण कर भव्य मंदिरों और बौध विहारों की स्थापना करना शुरू कर दिया था !

अब यही सब कुछ आज के राज्य लेखकों द्वारा राजनेताओं के व्यक्तित्व विस्तार के लिये हो रहा है ! इसमें कुछ भी नया नहीं है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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