मंदिर केवल एक देवस्थान या पूजा-पाठ के केन्द्र के रूप में नहीं रहा है बल्कि मंदिरों में ज्ञान विज्ञान ज्योतिष खगोल आयुर्वेद आदि की शिक्षा भी दी जाती थी, मंदिर एक तरह के बैंक का भी काम करते थे ! लोगों के जीवन में मंदिर का महत्व था इसलिए मंदिरों में भी विविधता थी, इसी विविधता की देन थी कि आगे चलकर जो भी देवस्थान थे वहीं शिक्षा के भी केन्द्र उन्नत हुए !
जनसरोकार के कार्य करने के लिए राजाओं के द्वारा मंदिरों को गांव के गांव दान में दिए जाते थे, दान का अर्थ ये नहीं था कि उस गांव के लोग मंदिरों के गुलाम थे बल्कि उस गांव से मिलने वाले कर में मंदिरों की हिस्सेदारी थी एवं मंदिरों से लोगों की भावनाएं इस तरह जुड़ी थी कि मात्र मंदिरों को तोड़ने की वजह से हिंदू जनमानस कभी मुस्लिम समाज को स्वीकार नहीं कर पाया और मंदिर ही इस्लामिक हुकूमत से लड़ने के लिए एक माहौल तैयार करते रहे !
मुस्लिम और ईसाई आक्रांताओं का इतिहास रहा है कि उन्होंने जहां-जहां भी कब्जा किया वहां-वहां इस्लामिक व ईसाई तंत्र की स्थापना कर दी, मगर भारत एक अपवाद रहा क्योंकि भारत के पास पहले से ही इनसे उन्नत विचारधारा थी और एक बेहतर धर्म था, अंग्रेजों ने पुर्तगालियों और फ्रेंच की गलतियों का अध्ययन कर के भारत में धीरे-धीरे अपना शासन विस्तार किया इसीलिए अंग्रेजों ने कभी मंदिरों पर तोड़फोड़ नहीं की बल्कि आस्था पर तोड़फोड़ की, रेल की पटरी बिछाने से भी पहले अंग्रेजों ने मंदिरों से शैक्षणिक व्यवस्था को खत्म किया !
इतना सब होने के बाद भी चूंकि पीढ़ियों से मंदिर और ईश्वर के प्रति जो आस्था भारतीय जनमानस में थी उसको विस्थापित नहीं किया जा सका, ध्यान रहे कि हमारी आस्था पर ये हमला केवल दो सौ साल का नहीं था बल्कि उसके पहले भी छः सौ साल से ये हमला होता आया था यानी छः सौ साल तक हथियार और दो सौ साल तक बौद्धिक हमला झेलने के बाद हमारी आस्था और मंदिरों का मूल ताना-बाना टूटा तो नहीं था मगर कुछ फर्क तो जरूर पड़ा था !
इतना सब होने के बाद भी जब अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो काले अंग्रेजों ने अपना अंतिम दांव खेला और मंदिरों के दान और धन को सरकारी पहरे में रख दिया यानी अब चाहकर भी मंदिर अपने धन का उपयोग अपनी मर्जी से नहीं कर सकते हैं, एक तरफ मंदिरों के धन पर सरकारी नियंत्रण हो गया दूसरी तरफ वामपंथियों और इस्लामिक संस्थाओं को मंदिरों में होने वाली सलाना आय का ब्यौरा दे दिया गया जिसका उपयोग वो सनातन धर्मियों को अपने धर्म के खिलाफ भड़काने के लिए अक्सर करते हुए पाएं जाते हैं !
सोचिए कि भारत सरकार के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड और इसाई मिशनरियों के पास है, विदेशों से संदिग्ध रूप से सबसे ज्यादा चंदा ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक संस्थाओं के पास आता है मगर सरकार को इन पर नियंत्रण करना जरूरी नहीं लगा ! जहां राजनीतिक दल अपने पार्टी को मिलने वाले चंदे का हिसाब और खर्च पर सरकारी नियंत्रण नहीं रखते वहां ऐसा क्या जरूरी था कि मंदिरों के दान में मिले धन पर ही सरकारी नियंत्रण हो !
हर मिशनरी स्कूल में गिरजाघर मिलेगा, बाइबिल की प्रार्थना होती है, क्रिसमस को धूमधाम से मनाया जाता है साथ ही पढ़ाई भी होती है, कुछ याद आ रहा है, यानी आज जो काम मिशनरी स्कूलों में हो रहा है वहीं काम एक समय में हमारे मंदिरों में हुआ करता था उसी की देन थी कि हमारे धर्म की जड़ें इतनी गहरी थी और आज वही काम ईसाई मिशनरी कर रही है !
एक तरफ उनके प्रयासों को सफल बनाने के लिए सरकारी प्रोत्साहन और दूसरी तरफ हम कोई प्रयास न करें इसलिए नियंत्रण ! नतीजा, धर्म के प्रति ईश्वर के प्रति अनासक्ति रखने वाले व्यक्तियों के समूहों के और संस्थाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है, देश के जाने-माने विश्वविद्यालयों में हिंदू देवी-देवताओं पर अपमानजनक टिप्पणियां करने के लिए सेमिनार गठित हो रहे हैं और डेनमार्क म्यामार के किसी घटना पर हमारे देश में तोड़फोड़ हो रही है !