वशिष्ठ ऋषि वैदिक काल के विख्यात थे ! इनके ज्ञान के कारण इन्हें सप्तर्षि में भी शामिल किया गया था ! यानि ऐसा माना जाता है कि इन्हें वेदों की रचना करने वाले ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान प्राप्त हुआ था ! इनका विवाह दक्ष प्रजापति और प्रसूति की पुत्री अरुंधती से हुआ था !
विश्वामित्र ने इनके 100 पुत्रों को मार दिया था, फिर भी इन्होंने विश्वामित्र को माफ कर दिया ! कोई भी सूर्य वंशी राजा इनकी आज्ञा के बिना कोई धार्मिक कार्य नही करते थे !
इसीलिये वशिष्ठ को राजा दशरथ ने अपना राजकुल गुरु निश्चित किया था ! वशिष्ठ ब्रम्हा के मानस पुत्र थे ! त्रिकाल दर्शी तथा बहुत ज्ञान वान ऋषि थे ! त्रेता के अंत मे ये ब्रम्हा लोक चले गए थे !
जिस पुस्तक में यह ज्ञान संगृहीत है उसे वैष्णव ने योग-वासिष्ठ ग्रन्थ कहा है ! इस ग्रंथ को वशिष्ठ संहिता के नाम से भी जाना जाता है और यह बतलाया जाता है कि इन्हों ने भगवान राम को योग की जो शिक्षा दी थी वह इस ग्रन्थ में संगृहीत है !
जबकि यह सूचना गलत है ! इस ग्रंथ में जो ज्ञान है वह महर्षि वशिष्ठ अपने पुत्र शक्ति को हठयोग का ज्ञान विस्तार से बतलाने के लिये दिया था ! जिससे कालांतर में वैष्णव ग्रंथकारों ने राम का नाम जोड़कर इस ग्रंथ को राम को दी जाने वाली शिक्षा के रूप में विख्यात कर दिया !
जबकि भगवान श्रीराम का स्वभाव मृदुल था ! अतः हठयोग की शिक्षा उनके लिए उपयुक्त नहीं थी ! अतः इस ग्रंथ में दी गई हठयोग की शिक्षा का राम से कोई लेना देना नहीं था !
हठयोग की शिक्षा जिद्दी स्वभाव के कठोर व्यक्तित्व के छात्र को दी जाती है ! जिससे वह ईश्वरीय विधान से अपने लक्ष्य की प्राप्ति के अनुरूप मानसिक शक्तियों से कार्य ले सके !
वैसे भी हठयोग शैव तंत्र विधान का विषय है ! जिसमें भक्त जिद करके प्रकृति से अपना कार्य करवाता है ! वैष्णव में भक्ति को विशेष महत्व दिया गया है ! अतः वैष्णव भक्त सेवा द्वारा प्रकृति से अपना कार्य करवाता है ! जिद्द से नहीं !
जबकि भगवान श्रीराम का स्वभाव जिद्दी नहीं था ! वह कुल, समाज की मर्यादा के अनुरूप कार्य करने वाले एक मृदुल स्वभाव के व्यक्ति थे ! इसलिए इस ग्रंथ को जबरजस्ती भगवान श्रीराम से जोड़ना उचित नहीं है !
अत: इसी तरह योग वशिष्ठ शैव आध्यात्मिक हठ योग का ग्रंथ है ! इसमें शैव जीवन शैली के आध्यात्मिक हठ योग सूत्रों का समावेश किया गया है ! किन्तु कालांतर में वैष्णव चाटुकार लेखकों ने योग वशिष्ठ में भी राम के नाम पर वैष्णव महत्त्व को बढ़ा चढ़ा कर उसे योग वशिष्ठ नाम दे दिया ! जो कि द्वापर तक आते-आते श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में संक्षिप्त वैष्णव ग्रंथ बन गया !!