पूजास्थल पर कलश-स्थापन का रहस्य
हिन्दू धर्म में कलश-पूजन का अपना एक विशेष महत्व है। वेदोक्त मंत्र के अनुसार कलश के मुख में विष्णु का निवास है
उसके कण्ठ में रुद्र मूल में ब्रह्मा स्थित हैं। कलश के मध्य में सभी मातृशक्तियां निवास करती हैं।
कलश में समस्त सागर, सप्दद्वीपों सहित पृथ्वी, गायत्री, सावित्री, शान्तिकारक तत्व, चारों वेद, सभी देव, आदित्य देव, विश्वदेव सभी पितृदेव, एक साथ निवास करते हैं।
कलश की पूजा मात्र से एक साथ सभी प्रसन्न होकर यज्ञ कर्म को सुचारू रुपेण संचालित करने की शक्ति प्रदान करते हैं
और निर्विघ्नतया यज्ञ कर्म को समाप्त करवाकर प्रसन्नतापूर्वक आशीर्वाद देते हैं।
कलश एक ही केंद्र में समस्त देवताओं को देखने के लिये स्थापित किया जाता है।
कलश को सभी देव शक्तियों, तीर्थों आदि का संयुक्त प्रतीक मानकर उसे स्थापित एवं पूजित किया जाता है।
कलश में आम्र -पत्तियाँ और नारियल सृष्ठी के सृजन (क्रिएशन ) का प्रतीक हैं .
और ग्रीवा से बंधा धागा उस प्रेम का प्रतीक है इसलिये यही कलश अमृत घट अमरत्व का प्रतीक भी बन जता है