जानिये स्तम्भन का तंत्र विज्ञान : Yogesh Mishra

तंत्र की प्रयोगशाला हमारा शरीर है ! तंत्र का उद्देश्य है शरीर में विद्यमान शक्ति केंद्रों को जागृत कर विशिष्ट कार्यों को सिद्ध करना ! तंत्र अभ्यास और व्यवहारिक ज्ञान का शास्त्र है और तंत्र शब्द अपने आप में महत्वपूर्ण और गौरवमय है ! तंत्र शब्द ‘तन’ इस मूल धातु से बना है, अतः तंत्र का विकास अर्थ में प्रयोग किया जाता है !

तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है ! एक वाम मार्गी दूसरी दक्षिण मार्गी ! मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के यह नौ प्रकार हैं ! तन्त्र शब्द के अर्थ बहुत विस्तृत है ! तन्त्र-परम्परा की शुरआत शैव पध्यति से हुई थी ! बाद में इसके प्रभाव को देखते हुये इसे पूरे विश्व ने अपनाया था ! बौद्ध परम्परा के साथ ही, जैन धर्म, सिख धर्म, तिब्बत की बोन परम्परा, दाओ-परम्परा तथा जापान की शिन्तो परम्परा आदि शैव तंत्र के विभिन्न स्वरूप हैं !

तंत्र में मारण से तात्पर्य प्राणनाश करने वाला, मोहन से किसी का मन को मुग्ध करने वाला, स्तंभन से मंत्रादि द्वारा विभिन्न घातक वस्तुओं या व्यक्तियों को क्रियाहीन करना, विद्वेषण से दो अभिन्न हृदय व्यक्तियों में भेद या द्वेष उत्पन्न करना, उच्चाटन से किसी के मन को चंचल, उन्मत्त या अस्थिर करना तथा वशीकरण से राजा, अधिकारी, समाज या किसी स्त्री अथवा अन्य व्यक्ति के मन को अपने वश में करने की क्रिया संपादित की जाती की जाती है !

आज हम स्तंभन पर विशेष चर्चा करेंगे ! स्तंभन कई प्रयोग के होते हैं ! जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन, समाज स्तम्भन और क्रिया स्तंभन आदि आदि !

इन विभिन्न प्रकार की तंत्र क्रियाओं को करने के लिये अनेक प्रकार के भिन्न भिन्न तांत्रिक कर्म विधान हैं ! जिनमें सामान्य दृष्टि से कुछ घृणित कार्य भी विहित माने गये हैं ! इन क्रियाओं में मंत्र, यंत्र, बलि, प्राणप्रतिष्ठा, हवन, औषधिप्रयोग आदि के विविध नियोजित स्वरूप मिलते हैं !

उपर्युक्त अभिचार अथवा तांत्रिक षट्कर्म के प्रयोग के लिये विभिन्न तिथियों का भी विधान मिलता है ! जैसे–मारण के लिये शतभिषा नक्षत्र की अर्धरात्रि, स्तंभन के लिये शीतकाल, विद्वेषण के लिये ग्रीष्मकाल के पूर्णिमा की दोपहर, उच्चाटन के लिये शनिवार युक्त कृष्णा चतुर्दशी अथवा अष्टमी आदि के निर्देश शास्त्रों में दिये गये हैं !

स्तम्भन द्वारा सर्प, व्याघ्र, सिंह आदि भयंकर जन्तुओं को तथा भूत, प्रेत, पिशाच आदि दैविक बाधाओं को और संसार में शत्रु सेना के आक्रमण तथा अन्य विद्रोही व्यक्तियों को या जन सामान्य को नियंत्रित किया जाता है ! इसमें व्यक्तियों के संख्या की कोई सीमा नहीं है ! जो कोई भी तांत्रिक या जजमान के निर्देश पर सामूहिक रूप से देवी अनुष्ठान, रुद्राभिषेक, छालर वादन, नगाड़ा वादन, वीणा वादन, शंख वादन, दीप प्रज्वलन, सामूहिक व्रत, हवन आदि कर्म करता है वह इस तंत्र क्रिया का हिस्सा हो जाता है ! इसके लिये किसी भी अनुष्ठान में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना आवशयक नहीं है !

स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव व्यक्ति के मस्तिष्क पर पड़ता है ! बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके मानसिक व शाररिक क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है ! इसका प्रभाव तत्काल मस्तिष्क पर बाद में धीरे-धीरे शरीर पर भी पड़ता है !

त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे ! तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है ! शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है ! इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिये तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिये ! लेकिन फिर भी अनादि काल से इस तंत्र का उपयोग राज सत्ता को पाने या सत्ता में स्थाई बने रहने के लिये किया जाता रहा है ! अब तो भीड़ को आकर्षित करने के लिये वहुत से धर्मगुरु भी इस विधा का प्रयोग कर रहे हैं !

श्रीलंका में लंका, तिब्बत में मानस और नेपाल में गंडकी शक्तिपीठ हैं ! पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगलाज शक्तिपीठ 52 पीठों में सबसे दुर्गम पीठ है ! जहां पहुंचना आज भी मुश्किल है ! शर्कररे, कराची पाकिस्तान के सुक्कर स्टेशन के निकट !

भारत में कामख्या, विंध्याचल, दतिया बगुलामुखी, बांग्लादेश में सुगंधा, करतोयाघाट, चट्टल और यशोरेश्वरी शक्तिपीठ हैं ! इनमें करतोयाघाट प्रमुख पीठ मानी गई है ! नैनादेवी मंदिर, बिलासपुर, हि.प्र. भी बताया जाता है। ज्वाला जी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश ! उज्जनि, गुस्कुर स्टेशन से वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल 16 कि॰मी॰ ! मणिकर्णिका घाट, काशी, उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश में उज्जैन आदि ! देवी तंत्र की 108 पीठ और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है ! तंत्र चूड़ामणि में भी 52 शैव शक्तिपीठ बतलाये गये हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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