जानिए लोकतंत्र में पिटोला की भूमिका : Yogesh Mishra

क्या आप जानते हैं कि पुराने ज़माने में रजवाड़ों में एक पिटोला परंपरा हुआ करती थी ! इस पिटोला परंपरा का कार्य राजा का मानसिक संतुलन ठीक बनाये रखना होता था, क्योंकि जब राज दरबार में राजा के समक्ष न्याय के लिये कोई गंभीर विषय लाया जाता था ! तो अपराधी के कृत्यों से राजा को क्रोध आ जाता था और फिर वह भरे राज दरबार में राजा तो स्वयं उतरकर उस अपराधी को क्रोध में मारने नहीं जायेगा !

ऐसी स्थिति में राजा के पैरों के पास एक पिटोला सेवक बिठाया जाता था और राजा को जब बहुत ज्यादा क्रोध आता था, तो राजा पिटोला सेवक को लात और जूतों से मारता था फिर वह पिटोला सेवक राजा से जितनी बुरी तरह से मार खाता था ! दौड़ कर उस अपराधी को भी राजा के सामने उतनी ही बुरी तरह से पीटा करता था !

इसका मूल कारण यह रहा होगा कि जब दिन भर राजा के समक्ष अपराधी पेश किये जाते होंगे तो उन अपराधियों के कृतियों को सुनकर राजा को क्रोध आता होगा और वह अपने क्रोध को भरे दरबार में प्रकट नहीं कर पाता होगा ! जिस वजह से राजा प्राय: मानसिक तनाव, ब्लड प्रेशर, मधुमेह, अनिद्रा आदि के रोगों से ग्रसित हो जाता होगा ! तभी राज वैद्द्यों ने इन सभी रोगों का मूल कारण जानने की कोशिश की होगी और यह पाया होगा क्योंकि राजा भरे दरबार में अपने मानसिक तनाव की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता है ! इसलिये वह अस्वस्थ रहता है ! अतः इन राज वैद्ध्यों ने राजा के स्वास्थ्य सुधार के लिये राजाओं को पिटोला व्यवस्था का परामर्श दिया होगा !

किन्तु अब लोकतंत्र है यहां पर राजे रजवाड़े की परंपरा अब समाप्त हो गई है और अब लोकतंत्र में जो चयनित राजा है, वह अपराधी को दंड देने के लिये अब उस पिटोले को पीटता नहीं है ! बल्कि अब वह अपनी छवि सुधारने के लिये जनता द्वारा उस पिटोले को पिटवाता है और उसके बदले में उस पिटोले को संरक्षण और प्रोत्साहन दोनों ही उपहार स्वरूप देता है !

क्योंकि अब लोकतंत्र में जब राजा की छवि समाज में खराब हो जाती है तो उस राजा के गद्दी से उतर जाने का भय होता है ! उसी समय राजा अपने पालतू पिटोले से समय समय पर योजनाबद्ध तरीके से समाज के सामने ऐसे-ऐसे बयान जारी करवाता है ! जिसके कारण जनता का ध्यान मूल समस्या के मुद्दे से भटक जाये और उस पिटोले के बयानों से समाज में आक्रोश पैदा हो और जनता लोकतंत्र के राजा की नाकामियों पर चर्चा बंद करके पिटोले के बयानों पर चर्चा शुरू कर दे !

जनता आक्रोशित होकर उस पिटोला को तरह-तरह की गालियां देती है, अपमानित करती है और इससे नये विषयों पर समाज में एक नई बहस शुरू हो जाती है ! इसके द्वारा जनता का ध्यान मुख्य मुद्दे से भटक जाता है !

इसके बदले में लोकतंत्र का राजा इस पिटोले के सामाजिक मान सम्मान की रक्षा भी करता है ! उसे संरक्षण, आश्वासन और पुरस्कार भी प्रदान करता है !

आपने देखा होगा अभी-अभी पौने दो आंख वाले भगवा व्यवसाई ने एलोपैथी और आयुर्वेद के मुद्दे को खड़ा करके पूरे के पूरे जनमानस का ध्यान करो ना काल में शासन प्रशासन की नाकामी से भटका दिया और अब जो रही सही कसर है ! उसको पूरा करने के लिये इस पौने दो आंख वाले भगवा व्यवसाई ने भारतीय सत्य सनातन वैदिक ज्योतिष पद्धति पर कटाक्ष कर दिया है ! जिससे लोगों का ध्यान वास्तविक समस्याओं से हटकर भावनात्मक विषयों पर लग जाये !

और दूसरी तरफ जो लोग लोकतंत्र के राजा की नाकामियों पर चर्चा करते हों, उनके पीछे शासन प्रशासन के कानूनी रक्षकों को लगा दिया जाये ! जिससे राजा के नाकामियों की चर्चा शीघ्र अति शीघ्र समाज में बंद हो जाये !

अब नये प्रकरण में एलोपैथी के विवाद के बाद पौने दो आंख वाले भगवा व्यवसाई का कहना यह है कि सारे मुहूर्त भगवान के बनाये हुये हैं ! इसलिये ज्योतिष, काल गणना, घड़ी, मुहूर्त आदि सभी कुछ जनता को बहकाने के लिये हैं ! यह ज्योतिष पूरे एक लाख करोड़ की इंडस्ट्री है !

यह सभी कुछ मात्र इसलिये हो रहा है कि आम जनता का ध्यान शासक के करो ना काल की असफलताओं की तरफ से हटकर दूसरे विषयों की तरफ चला जाये ! जिससे शासक की बिगड़ी हुई छवि जनता की निगाह में शीघ्र अति शीघ्र पुनः बनाई जा सके ! यही लोकतंत्र में पिटोला की भूमिका है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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