भगवान शिव को नटराज अर्थात नृत्य का राजा माना गया है ! भगवान शिव के दो नृत्य प्रसिद्ध हैं ! एक है तांडव नृत्य और दूसरा है नटराज नृत्य ! तांडव नृत्य भगवान शिव तब करते हैं जब सृष्टि का लय खत्म हो जाता है और सृष्टि में सब कुछ अनियंत्रित हो जाता है ! पुण्य पर पाप भारी पड़ने लगता है ! जब अच्छे और बुरे के बीच का संतुलन खत्म हो जाता है ! पृथ्वी और प्रकृति का शोषण शुरु हो जाता है ! तब प्रकृति की रक्षा के लिये शिव क्रोध में भरकर तांडव नृत्य करते हैं !
तांडव नृत्य प्रकृति के अनियंत्रित होने के साथ ही शुरु हो जाता है ! इसीलिये प्रकृति के अनियंत्रित होने से प्राकृतिक आपदाएं आने लगती हैं जो वस्तुत शिव के क्रोध स्वरुप तांडव नृत्य का प्रतीक है !
यही सनातन धर्म में ब्रम्हांड के आदि से अनंतकाल तक एक खास लय में चलने की महिमा का वर्णन भी मिलता है ! जो सृष्टि के सञ्चालन के लिये आवश्यक है !
प्रकृति के उस वक्त लय को बनाये रखने का कार्य शिव का ही है ! इसे लय के व्यवस्थित स्वरूप को भगवान शिव का नटराज नृत्य कहते हैं ! भगवान शिव के इस लयात्मक नृत्य को जिस मूर्ति से रुप में प्रस्तुत किया गया है ! उसे नटराज स्वरुप कहते हैं ! इस नटराज स्वरुप में भगवान शिव के चारों तरफ अग्नि का घेरा है ! यह अग्नि ब्रंहमांडीय ऊर्जा का प्रतीक है ! जिससे संसार में सभी वस्तुओं में प्राणों का संचार होता है !
नटराज शिव की चार भुजाएं हैं ! उनके पहले दाहिने हाथ में डमरु है जो संसार में शब्द नाद का प्रतीक है ! शैव मत में सभी अक्षरों और प्राणों का सृजन शिव के डमरु के नाद से ही माना गया है ! उनके दूसरे बायें हाथ में अग्नि है ! यह अग्नि क्षय और विनाश का प्रतीक है ! अर्थात सृष्टि में सृजन और विनाश का क्रम लगातार चलता रहता है ! जीवन के बाद मृत्यु तय है !
और दूसरा दाहिना हाथ अभय की मुद्रा में है जो हमें आश्वस्त करता है कि जीवन और मृत्यु का चक्र एक सत्य है और इससे डरने की जरुरत नहीं है ! दूसरा बायां हाथ भगवान शिव के पैरों के तरफ इंगित है जिसका अर्थ है कि भगवान की शरण में जाकर ही इस जीवन मरण के चक्र में मुक्त हुआ जा सकता है और मोक्ष की प्राप्ति संभव है !
भगवान शिव के इन चार हाथों मे छिपे प्रतीकों का ही मांत्रिक स्वरुप मृत्युंजय मंत्र में भी दिखाया गया है ! भगवान शिव ने बाएं पैर के नीचे एक राक्षस है जो अज्ञानता का प्रतीक है और भगवान शिव का उठा हुआ पांव ब्रम्हांड के उस संतुलन का प्रतीक है जिसे शिव नियंत्रित कर रहे हैं !
इसीलिये शुद्ध सनातन धर्म में शिव को न केवल सृष्टि का संहारकर्ता बताया गया है बल्कि सृष्टि को एक लय में चलाने वाला भी माना गया है ! हमारी सृष्टि में सब कुछ एक खास लय में हो रहा है ! दिन के बाद रात्रि आती है ! सुबह के बाद शाम होती है ! दुख के बाद सुख आता है और सुख के बाद दुख आता है ! अच्छा और बुरा लगातार चलता रहता है ! सूर्य,चंद्रमा और तारे अपने रास्ते से कभी नहीं भटकते वो अपने एक तय मार्ग पर चलते रहते हैं !
पृथ्वी अपनी धुरी पर एक खास गति से घूमती रहती है ! सारे ग्रह सूर्य का चक्कर एक खास और निश्चित मार्ग और गति का पालन करते हुए चलते रहते हैं ! जीवन के बाद मृत्यु का चक्र चलता रहता है ! और यह सब कुछ एक तय गति या लय में चलता है !
इसे कौन चलाता है औऱ कैसे चलता है यही रहस्य भगवान शिव के नटराज मुद्रा में छिपा हुआ है ! वैष्णव परम्परा में मान्यता है कि जब संसार एक लय में चलने लगता है तो भगवान श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं ! इसके बाद इस संसार को महामाया चलाती हैं ! यह महामाया ही शैव दर्शन में “जीवन” है ! इसकी गति और लय को भगवान शिव नियंत्रित करते हैं ! जैसे ही यह गति या लय अनियंत्रित होती है वैसे ही मृत्यु या प्रलय का आरंभ हो जाता है ! इसीलिये शिव को पालनहार के साथ ही संघर का देवता भी कहा गया है !!