वास्तव में विषाणु एक अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव है ! जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते है ! यह नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित बनते हैं ! शरीर के बाहर तो यह मृत-समान ही होते हैं परंतु शरीर के अंदर जाते है तो पुनः जीवित हो जाते हैं ! इन्हे प्रयोगशाला में क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है !
एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है ! यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में पड़े रह सकते हैं और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आते हैं ! उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देते हैं और जीव बीमार हो जाता है !
और एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है ! तो वह मानव कोशिका के मूल आर.एन.ए एवं डी.एन.ए. की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती हैं ! विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है !
चेचक के विषाणु का सर्वप्रथम सन 1796 में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया था ! जिससे उन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार भी किया था ! इसके बाद सन 1886 में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू में मोजेक रोग एक विशेष प्रकार के वाइरस के द्वारा होता है ! रूसी वनस्पति शास्त्री इवानोवस्की ने भी 1892 में तम्बाकू में होने वाले मोजेक रोग का अध्ययन करते समय विषाणु के अस्तित्व का पता लगाया ! बेजेर्निक और बोर ने भी तम्बाकू के पत्ते पर इसका प्रभाव देखा और उसका नाम टोबेको मोजेक रखा ! मोजेक शब्द रखने का कारण इनका मोजेक के समान तम्बाकू के पत्ते पर चिन्ह पाया जाना था ! इस चिन्ह को देखकर इस विशेष विषाणु का नाम उन्होंने टोबेको मोजेक वाइरस रखा !
विषाणु लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं ! जीवाणुभोजी विषाणु लाभप्रद होते हैं ! यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है !
किन्तु कुछ विषाणु जो पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं वह मनुष्य के लिये भी हानिप्रद होते हैं ! एच.आई.वी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं ! यह सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा संचरण करते हैं ! परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं !
जीवाणु और विषाणु में अन्तर
जीवाणु एक कोशिकीय जीव है ! जबकि विषाणु अकोशिकीय होता है !
जीवाणु सुसुप्त अवस्था मे नहीं रहते हैं ! जबकि विषाणु जीवित कोशिका के बाहर सुसुप्त अवस्था मे हजारों साल तक रह सकते है और जब भी इन्हें जीवित कोशिका मिलती है यह पुन: जीवित हो जाते हैं !
जीवाणु का आकार विषाणु से बड़ा होता है और इन्हें प्रकाशीय सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है ! जबकि विषाणु का आकार जीवाणु से छोटा होता है ! इन विषाणुओं को इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है !
जीवाणु को संग्रह नहीं किया जा सकता है ! जबकि विषाणु निर्जीव की भांति क्रिस्टल के रूप में संग्रह किये जा सकते हैं