ईष्ट निर्धारण कैसे करें
अधिकतर साधकों के मन में ये प्रश्न उठा कि ये कैसे ज्ञात करें की उन्हें किस देवता की साधना में जल्दी सफलता मिलेगी यदि आप किसी भी देवी-देवता की पूजा कर रहे हैं तो इसका मतलब है आप उस देवी देवता को अपने शरीर में बुला रहे हैं, वास्तव में तो सभी देव ऊर्जा पहले से आपके शरीर के अलग-अलग निश्चित चक्र में है आप पूजा से मात्र ब्रह्माण्ड से उसकी शक्ति को शरीर में खीच कर उनकी शक्ति बढा रहे हैं,
जिससे वे ऊर्जा जाग्रत होकर अधिक क्रियाशील हो सके यदि कोई शक्ति पहले से आपके शरीर में स्थित है तो उसे अगले चरण में ले जाने के लिये आप के पास आधार होता है अतः आपको आधार बनाने के लिये अनावश्यक ऊर्जा नहीं लगनी पङती है और आगे की साधना सरल हो जाती है इस तरह पूर्व जन्म की देव ऊर्जा को जानना ही ईष्ट को जानना है इसकी जानकारी ज्योतिष द्वारा की जा सकती है
जेमिनी सूत्र के रचयिता महर्षि जेमिनी इष्टदेव के निर्धारण में आत्मकारक ग्रह की भूमिका को सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बतलाया है।
महर्षि जेमिनी के अनुसार कुंडली में लग्न, लग्नेश, लग्न नक्षत्र के स्वामी एवं लग्न के ग्रहों में जों सबसे अधिक अंश में हो चाहे वह किसी भी राशि में हो आत्मकारक ग्रह होता है।
-अन्य मतानुसार पंचम भाव, पंचमेश व पंचम में स्थित बलि ग्रह या ग्रहों के अनुसार ही इष्ट देव का निर्धारण व अराधना करें।
-त्रिकोणेश में सर्वाधिक बलि ग्रह के अनुसार भी इष्टदेव का चयन कर सकते हैं और उसी अनुसार उनकी अराधना करें।
मेरा मत है कि जन्म कुंडली के पंचम स्थान से पूर्व जन्म के संचित कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, धर्म व इष्ट का बोध होता है। नवम् भाव से उपासना के स्तर का ज्ञान होता है अरूण संहिता के अनुसार व्यक्ति के पूर्व जन्म में किए गए कर्म के आधार पर ग्रह या देवता भाव विशेष में स्थित होकर अपना शुभाशुभ फल देते हैं।
पंचम स्थान में स्थित राशि के आधार पर आपके इष्ट देव इस प्रकार होंगे-
मेष: सूर्य या विष्णुजी की आराधना करें।
वृष: गणेशजी।
मिथुन: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कर्क: हनुमानजी।
सिंह: शिवजी।
कन्या: भैरव, हनुमानजी, काली।
तुला: भैरव, हनुमानजी, काली।
वृश्चिक: शिवजी।
धनु: हनुमानजी।
मकर: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कुंभ: गणेशजी।
मीन: दुर्गा, सीता या कोई देवी।
यदि पंचम में कोई ग्रह बैठा है तो इष्ट देवी देवता का ज्ञान निम्न प्रकार होगा
सूर्य-राम व विष्णु
चन्द्र-शिव, पार्वती, कृष्ण
मंगल-हनुमान, कार्तिकेय, स्कन्द, नरसिंग
बुध-गणेश, दुर्गा, भगवान् बुद्ध
वृहस्पति-विष्णु, ब्रह्मा, वामन
शुक्र-परशुराम, लक्ष्मी
शनि-भैरव, यम, कुर्म, हनुमान
राहु-सरस्वती, शेषनाग
केतु-गणेश व मत्स्य
इस प्रकार अपने इष्ट देव का चयन करने के उपरांत किसी भी जातक को उनकी पूजा अराधना करनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक देवी-देवता ब्रह्माण्ड के एक निश्चित गुण और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके मंत्रो ,पूजा पद्धति ,उनके रूप में एक विशिष्टता होती है जो उसके गुणों को व्यक्त करती है,उसकी पूजा करने पर आपमें वह गुण बढने लगते है और कुछ समय बाद वह ऊर्जा सिद्ध हो जाती है, जिससे अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है