वैदिक ज्योतिष को पुनः जीवित किया था कृष्णमूर्ति जी ने !

ज्योतिष में राशियों का अपना महत्व है, परंतु हमारे वैदिक ज्योतिष में राशियों से कहीं अधिक महत्ता नक्षत्रों की बताई गई है ! पुरानी परिपाटी के ज्योतिर्विद प्रायः राशियों तथा ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही फलित का विचार करते हैं, परंतु ऐसा करने से फलित के केवल स्थूल रूप पर ही पहुंचा जा सकता है ! यदि हमें किसी भाव अथवा ग्रह विशेष के विषय में सटीक भविष्य जानने का प्रयास करना है तो उसके नक्षत्रों से संबंध की छान-बीन करनी होगी तथा और भी अधिक गहराई में जाने के लिए नक्षत्रों के स्वामियों के साथ-साथ उनके उप स्वामियों का विचार करना भी होगा !

यह चिंता का विषय है कि फलित निर्धारण में ग्रहों के नक्षत्रों से संबंध पर विचार किए बिना अनेक ज्योतिर्विद फलित बता रहे हैं और इसमें व्यावसायिक दृष्टि से सफल भी हैं ! नक्षत्रों पर विचार करने की पहल ज्योतिष के महान विद्वान श्री के. कृष्णमूर्ति ने की थी और आज उनके नाम पर एक पद्धति प्रचलित है जिसे कृष्णमूर्ति पद्धति कहा जाता है ! बहुत से ज्योतिर्विद इसे अपना कर ज्योतिष की सेवा कर रहे हैं !

आप भी नक्षत्रों व उनके स्वामी और उप स्वामी के अनुसार ग्रहों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए फलित पर विचार कर सकते हैं परंतु आवश्यकता है इन सब को स्मरण रखने की ! ज्योतिष में सिद्धांतों, योगों और ग्रहों की स्थितियों से संबंधित अंशों के नक्षत्रों के साथ नक्षत्रों के स्वामियों और उप स्वामियों को एक साथ याद रखना वास्तव में साधारण प्रतिभा के लोगों के लिए कठिन अवश्य है परंतु असंभव नहीं है ! यदि हम इस नक्षत्र प्रणाली से फलित करने का निरंतर अभ्यास करें तो कुछ समय बाद यह सब सहज ही स्मरण रहने लगेंगे ! यहां एक सारणी प्रस्तुत है जिसकी सहायता से वांछित जानकारी सेकेंडों में प्राप्त की जा सकती है ! इसके आधार पर ग्रह स्पष्ट से नक्षत्र और उसके स्वामी तथा उपस्वामी को जान सकते हैं और फलित को पूर्णता प्रदान कर सकते हैं !

श्री के एस कृष्णमूर्ति जी का जन्म रविवार दिनांक 1.11.1908 को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर थिरवैयारु (अक्षांश 10-48 उत्तर, देशांतर 79-15 पूर्व) में हुआ था ! यह स्थान थंजावुर से थोड़ी दूर उत्तर पूर्व की ओर तमिलनाडु में है !.तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कालेज में अपनी शिक्षा पूरी कर तमिलनाडु सरकार में पब्लिक हैल्थ विभाग में किंग इंस्टीट्यूट, गिंडी , मद्रास (चेन्नई ) में 14/07/1927 को इनकी नियुक्ति हो गयी !

तभी से श्री कृष्णमूर्ति जी की ज्योतिष में रूचि हो गयी ! वहां इन्होंने भारतीय एवं पाश्चात्य ज्योतिष का आद्योपांत गहन अध्ययन किया तथा अपनी पद्धति में समावेश भी किया, किन्तु उनका तीक्ष्ण एवं खोजी मन पूर्णरूपेण संतुष्ट नहीं हुआ ! उन्होंने भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों पद्धतियों में कुछ वैज्ञानिक त्रुटियां महसूस कीं. जैसे भारतीय पद्धति में लग्न एवं दशम भाव को मध्य भाव मानकर भाव स्पष्ट करना, कला से कला की द्रष्टि न लेकर भाव से भाव पर ग्रहों की द्रष्टियां, अनेक प्रचलित दशाएं जैसे विंशोत्तरी दशा, अष्टोत्तरी दशा, काल चक्र दशा, योगिनी दशा इत्यादि !

कृष्णामूर्ति जी ने चन्द्रमा के ही नहीं, वरन शेष सभी ग्रहों की स्थिति नक्षत्र, उप नक्षत्र, उप उप नक्षत्रों में बांट दी ! इतना ही नहीं, बारह भावों में आरम्भ की कला विकलाओं को भी नक्षत्र, उप नक्षत्र एवं उप उप नक्षत्रों में विभाजन कर दिया और यह सिद्ध कर दिया कि उप नक्षत्र ही उस भाव के फलों का सही विश्लेषण करता है ! इसी नक्षत्रीय विद्या को कृष्णामूर्ति पद्धति कहते हैं ! 27 नक्षत्रों के 249 उप नक्षत्र बनते हैं ! इन्हीं 249 उप नक्षत्रों के किसी नंबर के आधार पर प्रश्न कुंडली से सटीक फलादेश की विद्या भी इस पद्धति की प्रमुख कड़ी है ! श्री कृष्णामूर्ति जी ने शासक ग्रहों की विधा (जिससे चंद मिनटों से वर्षों में होने वाली घटनाओं का समय आसानी से ज्ञात किया जा सकता है.) भी इसी पद्धति में शामिल है !

उनके सेवा काल में समय का बहुत अभाव था ! अतः जून 1961 में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के लिए प्रार्थना पत्र सरकार को प्रस्तुत कर दिया और सरकारी सेवा से 19/09/1961 को सेवानिवृत होकर अपना तन, मन और धन ज्योतिष की सेवा में लगा दिया ! उन्होंने नक्षत्रीय ज्योतिष विज्ञान के नए आयाम समझाने व स्थापित करने के लिए भारत के विभिन्न शहरों में नक्षत्रीय ज्योतिष अन्वेषण एवं अनुसन्धान केंद्र स्थापित किये, भ्रमण किया और सूत्र समझाए ! प्रचार एवं प्रसार हेतु मार्च 1963 से एस्ट्रोलोजी एवं अथरिष्ट नाम की मासिक पत्रिका निकाली !

वह भारतीय विद्या भवन के विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे ! प्रोफ़ेसर कृष्णामूर्ति जी ने 6 पुस्तकें भी लिखीं ! पुस्तकों के नाम हैं ! रीडर 1 (जन्म पत्रिका निर्माण), रीडर 2 (ज्योतिष के सिद्धांत), रीडर 3 (फलित ज्योतिष), रीडर 4 (विवाह, वैवाहिक जीवन एवं संतान), रीडर 5 (गोचर), रीडर 6 (प्रश्न ज्योतिष) ! महाराष्ट्र के गवर्नर डॉ. पी.वी.चारियान ने 1964 में उन्हें ज्योतिष मार्तण्ड की उपाधि से विभूषित किया एवं मलाया की ज्योतिष सोसायटी ने 26/06/1970 को इनके विशेष शोध कार्य के लिए साथिडा मनन की उपाधि प्रदान की गई थी !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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