अवधूत ऐसा इंसान होता है, जो मन के भाग दौड़ को त्याग कर शिशु जैसी अवस्था में पहुंच गया हो ! अब उसे संसार और समाज के नियमों का कुछ भी पता नहीं होता है !
वह अपने आपको संसार से इतना अलग कर लेते हैं कि अब यदि आपको उन्हें जिन्दा रखना हो तो आपको उन्हें खिलाना पड़ता है ! बच्चे की तरह बिठाना पड़ता है, खड़ा करना पड़ता है !
क्योंकि वह अपने आप में इतने आनंदित होते हैं, कि उन्हें अपने जीवन के किसी दूसरे पहलू को संभालना अब नहीं आता है ! ऐसा इंसान अपने मन को पूरी तरह छोड़ देता हैं ! उनकी कोई भी भावना, इच्छा, वासना आदि नहीं होती है ! वह फालतू विचारों से पूरी तरह मुक्त होते हैं !
हो सकता है कि यह स्थिती किसी अवधूत की हमेशा के लिये न हों ! मगर कुछ खास अवधि तक ऐसी अवस्था में अवधूत साधक रह सकता है ! कुछ लोग तो सालों तक किसी अवधूत की तरह रहते हैं !
यह बहुत आनंदपूर्ण और अद्भुत अवस्था होती है ! अवधूत साधक को किसी की कोई आवश्यकता नहीं होती है ! लोगों को लगेगा कि ऐसा इंसान अपना दिमागी संतुलन खो बैठा है और उसे पागलखाने जाने के जरुरत है !
दक्षिण भारत में बहुत असाधारण अवधूत हुए हैं ! वह कुछ नहीं करते, वह कुछ नहीं जानते, उसके पास कोई कर्म या कोई कर्म बंधन नहीं है ! उसके लिए सब कुछ अपने आप में विलीन हो जाता है।
अवधूत योग संसार से मुक्त होने का सबसे तेज और विश्वसनीय तरीका है ! मगर साथ ही अवधूत इस अवस्था में अपना शरीर नहीं छोड़ सकते हैं ! वह ईश्वर द्वारा दी हुई सांसों का प्रयोग मानव चेतना को व्यवस्थित करने में लगते हैं ! इसलिये इस अवस्था में शरीर नहीं छोड़ते हैं । जबकि शरीर छोड़ना उनके लिये सहज प्रक्रिया है !
क्योंकि जब उनको शरीर छोड़ना होगा, तो उनको जागरूक होना होगा ! जागरूक अवस्था में आते ही आप एक बार फिर से वह कर्म का रसास्वादन जमा कर सकते हैं !
ऐसे लोगों को जानते हैं, जो अवधूतों के रूप में रहे हैं ! वह कर्म बंधन से पूरी तरह मुक्त थे, मगर आखिरी पलों में जब वह उस अवस्था से बाहर निकलते हैं, तो वह फिर से अपनी कर्म संरचना में वापस चले जाते हैं और जीवन मारण के चक्र में फंस जाते हैं ! इसलिये जो जैसा भी है वैसा ही वह स्वीकार करके जीवन पूरा कर लेते हैं !
यही है अवधूत सन्यासियों का रहस्यमय जगत जिसे कामना और इच्छा रखने वाला व्यक्ति कभी नहीं समझ सकता है !!