आजकल हिंदू धर्म और ब्राह्मणों को पानी पी पी कर गाली देने का एक प्रचलन सा शुरू हो गया है ! इसके पीछे विदेशी इसाई संस्थाओं और बौद्ध षड्यंत्रकारियों का स्पष्ट हाथ है !
प्रशासनिक सेवाओं की कोचिंग पढ़ाने वालों से लेकर फिल्म बनाने वालों तक और लोकतंत्र की तथाकथित राजनीति करने वालों से लेकर सड़क पर आवारागर्दी करने वाले अनपढ़ जाहिल लफंगों तक ! बिना किसी रोक-टोक के हिंदू धर्म और ब्राह्मणों को गाली देने का प्रचालन चल रहा है !
किंतु गाली देने वालों को यह नहीं पता है कि 400 साल के अथक परिश्रम के बाद स्थापित बौद्ध धर्म को मात्र 30 साल में एक ब्राह्मण आदि गुरु शंकराचार्य ने उखाड़ फेंका और सनातन धर्म को पुनः स्थापित कर दिया था !
इसी एक उदाहरण से इन मंदबुद्धि के लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि सनातन धर्म की जड़ें कितनी गहरी हैं !
वैसे भी आज तक 33 हजार ग्रंथों में इन ब्राह्मण विरोधियों को बस सिर्फ एक ही ग्रंथ समझ में आया वह है “मनुस्मृति” जिसे भी यह लोग जला देना चाहते हैं !
इन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि “मनुस्मृति” को पानी पी पीकर गाली देने वाले लोग अभी तक अपनी कोई “बौद्ध स्मृति” नहीं लिख पाये हैं !
इनकी जानकारी के लिए मैं यह बतला देना चाहता हूं कि सनातन धर्म का आधार मात्र “मनु स्मृति” नहीं है बल्कि ऐसे 33 हजार ग्रंथ हैं ! जिनका साक्षात दर्शन आज तक इन ब्राह्मण विरोधियों को नसीब नहीं हुये हैं !
“द एसेंशियल्स ऑफ हिंदुइज्म” पुस्तक प्रो ! त्रिलोचन शास्त्री द्वारा लिखी गई है ! वह आई.आई.एम. बैंगलोर के प्रोफेसर और सेंटर फॉर कलेक्टिव डेवलपमेंट (सी.सी.डी.) के संस्थापक सचिव और सी.ई.ओ. हैं !
इन्होंने गहन शोध के बाद बतलाया है कि सनातन धर्म की स्थापना किसी एक व्यक्ति विशेष ने नहीं की गयी है ! यह कहते हैं कि जिन्होंने ऋग्वेद की रचना की उन ऋषियों और उनकी परंपरा के ऋषियों ने इस धर्म की स्थापना की है ! जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अग्नि, आदित्य, वायु और अंगिरा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है !
इनके साथ ही प्रारंभिक सप्तऋषियों का नाम लिया जाता है ! ब्रह्म (ईश्वर) से सुनकर हजारों वर्ष पहले जिन्होंने वेद सुनाए, वही संस्थापक माने जाते हैं ! हिन्दू धर्म का विकास वेद की वाचिक परंपरा का परिणाम है ! ब्रह्मा और उनके पुत्रों, सप्तऋषियों, ऋषि बृहस्पति, ऋषि पराशर, वेदव्यास से लेकर आदि शंकराचार्य तक इस धर्म का निरंतर परिवर्तन और विकास होता रहा है !
इस धर्म का धर्मग्रंथ चार वेद है- ऋग, यजु, साम और अथर्व ! उपनिषद और गीता वेदों का सार है ! स्मृति और पुराणों को इतिहास ग्रंथ माना गया है ! वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है ! इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं !
ये 6 षड्दर्शन हैं- 1 ! न्याय, 2 ! वैशेषिक, 3 ! मीमांसा, 4 ! सांख्य 5 ! वेदांत और 6 ! योग ! 10 सिद्धांत प्रमुख है: 1 ! षष्ट कर्म का सिद्धांत, 2 !पंच ऋण का सिद्धांत, 3 ! चार पुरुषार्थ का सिद्धांत, 4 !आध्यात्मवाद का सिद्धांत, 5 !आत्मा की अमरता का सिद्धांत, 6 !ब्रह्मवाद का सिद्धांत, 7 ! चार आश्रम का सिद्धांत, 8 ! मोक्ष मार्ग का सिद्धांत, 9 ! व्रत और संध्यावंदन का सिद्धांत और 10 ! अवतारवाद का सिद्धांत !
यह धर्म अनुशासन और कर्तव्य पालन पर जोर देकर मानव को एक सभ्य मनुष्य बनाता है ! इसीलिए 4 पुरुषार्थों और आश्रम के महत्व को समझाया गया है ! प्रकृति से निकटता रखते हुए अभ्यास और जागरण इस धर्म का मूल है ! हिन्दू धर्म में पंचयज्ञ, 16 सोलह संस्कार, संध्यावंदन, व्रत-उपवास, तीर्थ-मंदिर, स्नान, दान-पुण्य, त्योहार-पर्व, वेद-गीता पाठ आदि के अनुसार ही जीवन यापन करने का खास महत्व है !
हिन्दू धर्म में शिव को सर्वोच्च देव मानाया गया है ! इसीलिए उन्हें महादेव भी कहा जाता है ! हिन्दू धर्म वट वृक्ष के समान हैं जिसकी सैंकड़ों शाखाएं हैं ! जितनी शाखाएं हैं उतने ही देवी, देवता, भगवान और ऋषि हैं और उन सभी देव-देवताओं को मानने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है !
सभी में अंतरविरोध होने के बावजूद सभी कुछ सिद्धांतों पर एकमत हैं ! वैसे हिन्दू धर्म में त्रिदेवों को खास महत्व दिया गया है ! ये त्रिदेव है ब्रह्मा, विष्णु और महेश ! ब्रह्मा को मानने वाले कम भी है परंतु वैदिक समाज के लोग उन्हें मानते हैं !
विष्णु और महेश अर्थात शंकर को मानने वाले दो वर्गा में बंटे हैं- पहला वैष्णव और दूसरा वर्ग शैव है ! दोनों ही संप्रदाय के देवी और देवता भिन्न है और इनकी पूजा पद्धति भी भिन्न है ! देवियों को पूजने वाले को शाक्त संप्रदाय का माना जाता है !
पंच देवों अर्थात सूर्य, विष्णु, दुर्गा, गणेश और शिव की पूजा करने वालों को स्मार्त संप्रदाय का माना जाता है ! उक्त संप्रदायों के कई उपसंप्रदाय भी हैं ! वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत ही विष्णु के अवतारों की पूजा होती है जैसे श्रीराम और श्रीकृष्ण सहित सभी 24 अवतारों की पूजा ! इसी तरह शिव, दुर्गा आदि देवी और देवताओं के भी अवतार हैं !!
इतनी गहरी जड़ों के धर्म को हिला पाना इन प्रपंच कार्यों के बस की बात नहीं है ! इसलिए ब्राह्मणों को निश्चिंत होकर अपने कार्य को करना चाहिए ! क्योंकि इनका ज्ञान ही इनका शस्त्र है ! इसलिए ब्राह्मणों को कभी भी शस्त्र और शास्त्र को नहीं त्यागना चाहिए ! जब तक ब्राह्मणों के साथ उनका शास्त्र रूपी शस्त्र है ! तब तक उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता है !!