ईश्वर के सभी आदेश वेदों में ऋचाओं के रूप में दिये गये हैं ! ऋचाओं के दृष्टा विभिन्न वैदिक ऋषि हैं ! जिन्होंने ईश्वर के स्वरूप ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं से संपर्क स्थापित कर सृष्टि के संचालन के लिये ईश्वर के निर्देश प्राप्त किये हैं और इन ईश्वरीय निर्देशों का संग्रह ही वेद ग्रंथ है !
वेदों का आदेश है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कौशल को बढ़ाये ! ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामथ्र्य बढ़ाया जाए और प्राकृतिक प्रतिभाओं का विकास हो ! इस पर ऋग्वेद के नौवें अध्याय के 112वें सूक्त में काफी विवेचन मिलता है ! वहाँ यह भी बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति की प्रवृत्ति और रूचि भिन्न-भिन्न होती है, इसलिए उन्हें उनकी रूचि और प्रवृत्ति के अनुसार ही काम मिलना और करना चाहिये !
सभी मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकृति के होते हैं ! कोई शिल्पकार वस्तुओं के स्वरूप को सुधारने वाला बनना चाहता है; तो कोई वैद्य – भिषक बन कर प्राणियों के स्वास्थ्य मे सुधार लाना चाहता है; तो अन्य ज्ञान का विस्तार कर के समाज में दिव्यता की उपलब्धियों के लिए शिक्षा यज्ञादि अनुष्ठान कराना चाहता है ! इन सब प्रकार की वृत्तियों के विकास के अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं ! ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामथ्र्य बढ़ाओ ! ऋ. 9.112.1
भिन्न भिन्न जड़ी बूटियों, भिन्न भिन्न प्राणियों के अवयवों से अनेक ओषधियां प्राप्त होती हैं ! इनके उपयोग के प्रशिक्षण तथा अनुसंधान के साधन उत्पन्न करो ! खनिज पदार्थों इत्यादि से ज्ञान कौशल द्वारा धनोपार्जन सम्भव होता है ! इन विषयों पर प्रशिक्षण अनुसंधान के साधन उपलब्ध कराओ ! ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामथ्र्य बढ़ाओ ! ऋ. 9.112.2
मैं संगीतज्ञ हूं, मेरे पिता वैद्य हैं, मेरी माता अनाज को पीसती है ! हम सब इस समाज के पोषण में एक गौ की भांति अपना अपना-अपना योगदान करते हैं ! ऋ. 9.112.3
साधारण व्यक्ति एक घोड़े की भान्ति एक संवेदनशील स्वामी की सेवा में अपना भार वहन करने में सन्तुष्ट है ! अन्य व्यक्ति मित्र मंडली में बैठ कर हंसी मज़ाक में सुख पाता है ! कोई अन्य व्यक्ति अधिक कामुक है और स्त्री सुख की अधिक इच्छा करता है ! ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए सभी लोगों में समाज के विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का समर्थ बढ़ाओ ! ऋ. 9.112.4
उपरोक्त सभी ऋचाओं उनके अध्ययन के बाद यह ज्ञात होता है कि वैदिक काल में भी श्रम का विभाजन बहुत ही व्यवस्थित और विकास परख था ! अतः यही कारण है कि वैदिक युग में ही मनुष्य अत्यधिक विकसित और संपन्न हो गया था ! इसीलिये जब-जब वैदिक संस्कृति पर हमला हुआ ! तब तक उसकी रक्षा के लिये समस्त देव शक्तियों ने मनुष्य का सहयोग किया !!