पाखंडी बाबा का स्वदेशी उत्पादन का सत्य | Yogesh Mishra

एक अति विकसित गांव था ! उस गांव के अंदर गांव की आवश्यकता के अनुरूप सभी चीजों का निर्माण होता था ! लोग कोल्हू से तेल निकालते थे, वैध आयुर्वेदिक दवा बनाते थे ! खाने-पीने का सामान बनाते थे ! कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाते,बिस्कुट,भुजियाँ,आदि सब गाँव में बनता , कृषि करने वाले कृषि करते थे, मसाला बनाने वाला मसाला बनाता था ! गौ पालक दूध का व्यवसाय करते थे घी,मक्खन आदि बेचा जाता था ! गाँव की जरूरत का सब घरेलू सामान गाँव में गावं के ही साधारण लोगो द्वारा बनाया जाता था और गाँव में एक दुसरे को बेचा जाता था,जिस कारण वह गाँव स्वावलंबी (आत्मनिर्भर ) गाँव था !

उसी गांव में एक भगवा वस्त्रधारी पाखंडी बाबा रहता था ! उसको यह हवस थी कि इस धरती की सारी संपदा मुझे प्राप्त हो जाए, इसी लालसा में उसने लोगों को ठगने के लिए शारीरिक व्यायाम करवाना शुरू किया और लोगों को बताया कि इससे मन की शांति मिलती है और मन के शांत होने पर भगवान की प्राप्ति होती है ! उस गांव की भोली भाली जनता पाखंडी बाबा के प्रभाव में आ गई और शारीरिक व्यायाम द्वारा ईश्वर प्राप्ति में लग गई ! बाबा ने शारीरिक व्यायाम करवा-करवा कर खूब धन कमाया लेकिन धन कमाने की इच्छा पूरी नहीं हुई !

उसी गांव के निकट एक बहुत बड़ा शहर था ! बाबा प्रायः शहर आया-जाया करता था, शहर के कुछ धूर्त व्यवसाइयों ने बाबा की महत्वाकांक्षा को समझा और एक योजना बनाई कि यदि बाबा के गांव में कुटीर उद्योग नष्ट कर दिया जाए तो हमारे शहरों के बड़े बड़े कल कारखानों में होने वाले उत्पाद के उपभोक्ता बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाएंगे, अतः उन धूर्त व्यवसाइयों ने मिलकर बाबा को आगे करके बाबा के नाम पर घरेलू उत्पाद सामग्रियों के बड़े बड़े कारखाने स्थापित किए और प्रतिस्पर्धा के चलते उस गांव के कुटीर उद्योगों के उत्पादों के मूल्य से कम मूल्य पर अपने सामानों को बेचना शुरू किया ! यह भी प्रचार किया गया कि इन उत्पादों से होने वाले लाभ से गाँव का विकास होगा ! गाँव का पैसा गाँव में रहेगा ! कुटीर उद्द्योग वाले मिलावट करते हैं, बाबाजी का सामान शुद्ध है तथा बाबाजी के सामान के साथ आशीर्वाद मुफ्त प्राप्त होता है !

कुछ समय बाद सभी लोग बाबाजी का सामान लेने लगे, उस गांव के सभी कुटीर उद्योग धीरे-धीरे करके बंद हो गए ! अब गांव के सभी लोग बाबा जी के उत्पादों पर पूरी तरह आश्रित हो गए !

कालांतर में शहर के धूर्त व्यवसाइयों ने कारखाने के मूल्य के नाम पर बाबज की सारी जमा पूंजी हड़प ली और शासन-सत्ता से सांठगांठ करके बाबाजी के घटिया व नकली उत्पादों की पोल खोल दी और बाबाजी को जेल भेज दिया गया ! बाबाजी के सभी कल कारखाने बंद करवा दिए गये ! अब गांव वालों के पास शहर के इन धूर्त व्यवसाइयों से सामान खरीदने के अलावा अन्य और कोई विकल्प नहीं था ! इस तरह यह स्वाश्रित ग्राम धूर्त व्यवसाइयों के चंगुल में फंस गया !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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