क्या आपने महसूस किया कि आज दो करोड़ साधु, संत, नागा, पुजारी, पुरोहित, कथावाचक, अनुष्ठानकर्ता, आदि के रहते हुये भी सनातन हिंदू धर्म बराबर पतन की ओर क्यों जा रहा है ?
इसके अनेक कारण हैं ! जिनमें से एक और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि आज संस्कार विहीन लोग भगवा वस्त्र धारण करके इन मंदिरों, आश्रमों और मठों में कब्जा किये बैठे हैं ! जिनका एकमात्र उद्देश्य अपने शिष्यों की संख्या बढ़ाना या भगवान के नाम पर मंदिर मठों की आय बढ़ाना है ! जिससे वह अपने प्रभाव और सुविधाओं को बढ़ा सकें !
इन मठों में बैठे हुये किसी भी परजीवी संत में इतना सामर्थ नहीं है कि वह सत्य सनातन हिंदू धर्म के रक्षार्थ अपने समस्त सुखों को त्याग कर आदि गुरु शंकराचार्य की तरह बिना किसी लोभ अपेक्षा के समाज में निकल पड़े !
यह सारे के सारे तथाकथित संत आज हिंदुओं से आस्था और धर्म के नाम पर मोटी रकम उगाने में लगे हुये हैं और उस रकम का इस्तेमाल अपनी निजी बेनामी संपत्ति बनाने में कर रहे हैं ! इसके लिये चाहे उन्हें किसी दूसरे की हत्या ही क्यों न करनी पड़े उसमें भी उन्हें कोई संकोच नहीं है ! उसी का परिणाम है कि आज भारत के जेलों में हजारों की तादाद में तथाकथित साधु-संत हत्या, डकैती, बलात्कार, ठगी के अपराध में पड़े हुये हैं !
लेकिन क्या आपने कभी यह विचार किया कि यह लोग कौन हैं और साधु वेश में हिंदू सनातन धर्म में कैसे आ गये ! यह वह संस्कार विहीन लोग हैं जो अपने जीवन में ज्ञान, शिक्षा और संस्कार के अभाव में विभिन्न अपराधों में धन की लिप्सा के कारण लिप्त रहे हैं और जब इसके अपराधों के कारण समाज के सारे दरवाजे इनके लिये बंद हो गये, तब इन्होंने भगवा धारण करके सन्यासी का रूप धारण कर लिया और नये रूप में नये अपराधों में लग गये !
मात्र भगवा धारण करने से कोई व्यक्ति सन्यासी नहीं हो जाता है ! उसके लिये त्याग, स्नेह, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा और समाज को धर्म के प्रति जागरूक करने का साहस भी होना चाहिये ! यह स्वाभाविक रूप से बस सिर्फ त्यागी ब्राह्मणों में ही पाया जाता है और दूसरे जाति के लोग ब्राह्मणों के सानिध्य में आकर इन गुणों को अपने अंदर विकसित करते हैं ! किंतु आज दुर्भाग्य है कि अधिकांश ब्राह्मण संत भी संस्कार विहीन हो गये हैं और यही संस्कार विहीन साधु समाज आज हिंदू धर्म का मार्गदर्शन कर रहे हैं ! इसीलिये हिंदू धर्म का निरंतर पतन होता चला जा रहा है ! यह स्थिति हिंदुत्व ही नहीं मानवता की रक्षा के लिये भयावह है !
इसी का परिणाम है कि आज मठ मंदिरों के गुरुकुलों से समाज को जागृत करने वाले मेधावी छात्र नहीं निकल रहे हैं ! जो छात्र निकलते हैं वह गीता के कुछ श्लोक रट लेते होते हैं या उन्हें रामचरितमानस की कुछ चौपाइयां रटी होती हैं और इस आधे अधूरे ज्ञान से ही वह लोग समाज में धर्म की एक नई दुकान खोल कर बैठ जाते हैं और उनकी अपेक्षा होती है कि गृहस्थ उनके झांसे में आकर उन्हें दान दें ! जिससे उनकी संपन्नता और कृतिम आभामंडल विकसित हो जो उनके समाजघाती नकली संस्कारों पर टिका है ! उसका विस्तार होता रहे !
इसी वजह से आज हिन्दू धर्म की अंतरराष्ट्रीय दुकानें पूरे विश्व में ऐसे ही लोगों के द्वारा चलाई जा रही हैं और भारत जहां सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई थी ! वह देश जो सनातन धर्म का मूल है वहां पर ही सनातन धर्म विलुप्त हो रहा है !
ऐसी स्थिति में अब सनातन धर्म के पुनर्स्थापना या जागरण के लिये आदि गुरु शंकराचार्य की तरह नये सिरे से विचार करना चाहिये और संस्कार व आचरण विहीन नकली साधु संतों को चिन्हित करके उन्हें समाज के सामने उनके वास्तविक ठग स्वरूप में प्रस्तुत करना चाहिये ! जिससे वास्तव में समर्पित और सनातन धर्म के लिये काम करने वाले संतों को कार्य करने का अनुकूल वातावरण मिल सके और जो लोग भगवा कपड़े की ओट में हिंदुओं के साथ ठगी का धंधा कर रहे हैं ! वह समाज के सामने अपने वास्तविक स्वरूप में प्रस्तुत किये जा सकें ! यही इस समय सनातन धर्म की सबसे बड़ी आवश्यकता है !