बहुत से लोग बड़े-बड़े संतों का नाम लेकर मुझसे राय पूंछते हैं कि इन लोगों ने अपना पूरा जीवन राम और कृष्ण को ईश्वर मानते हुये समर्पित कर दिया और आप राम और कृष्ण को मात्र महापुरुष मानते हैं ! ईश्वर नहीं ऐसा क्यों है ?
अब यहां पर दो बातें विचार करने योग्य हैं ! पहला आप जिन्हें बड़े-बड़े संत बतला रहे हैं, क्या वह वास्तव में संत हैं या फिर वह सभी राम और कृष्ण की ओट में अपना सांसारिक प्रपंच फैलाकर धन कमाने वाले तथाकथित संत हैं !
इसका सीधा सा जवाब है कि जिन्हें आप बड़े बड़े संत बोल रहे हैं, यह सब प्रपंची संत हैं ! जैसा कि हम सभी जानते हैं कि राम और कृष्ण वैष्णव लेखकों की कृपा से समाज में मान्यता प्राप्त धर्म पुरुष हैं !
अतः यदि राम और कृष्ण के नाम का प्रपंच फैलाया जाये, तो निश्चित रूप से समाज बिना अधिक परिश्रम के इन प्रपंची संतों की आर्थिक मदद करना शुरू कर देगा और अधिक प्रश्न उत्तर भी नहीं करेगा !
इसीलिए यह तथाकथित संत लोग समाज में मान्यता प्राप्त भगवान के नाम का प्रपंच फैलाकर अपना सांसारिक व्यवसाय करते हैं !
दूसरा विषय यह है कि जो व्यक्ति संत हो गया, उसे किसी भी भीड़, आश्रम, भक्त, सेवक की क्या आवश्यकता है ? और यदि समाज में घोषित संत होने के बाद भी कोई व्यक्ति जगह-जगह अपने आश्रम बना रहा है ! भक्त, सेवा, भीड़ इकट्ठे कर रहा है, तो इसका मतलब है कि वह संत नहीं बल्कि संत के भेष में छिपा हुआ व्यवसाई है ! जिसे समाज दुर्भाग्यवश संत मान रहा है !
मैं निजी तौर पर संत उसे मानता हूं जो संसार में निर्वाह के लिये भगवान के नाम पर किसी से आर्थिक सहयोग नहीं लेता है बल्कि सांसारिक आत्म निर्वाह का कार्य करते हुये आत्म उत्थान की प्रक्रिया में लगा रहता है ! ऐसा व्यक्ति नि:संदेह दूसरों के लिये आदर्श संत है ! जैसे रैदास, रहीम दास, कबीर दास, आदि आदि
इन संतो ने मरते वक्त तक भगवान के नाम पर किसी से कोई चंदा दान या आर्थिक मदद नहीं ली ! यह लोग पूरी तरह से संसार में जीवन निर्वाह करने के लिए अपना निजी व्यवसाय जीवन के अंतिम दिनों तक करते रहे और साथ ही आत्म उत्थान की प्रक्रिया में भी लगे रहे !
शेष तो सभी भगवान के नाम पर धंधा करने वाले ढोंगी ही हैं ! जो भगवा लपेटकर, सिर पर त्रिपुंड तिलक लगाकर, अति संपन्न होते हुए भी त्यागी पुरुष देखने की इच्छा से. दरिद्रों जैसी वेशभूषा बनाकर, समाज को राम और कृष्ण का नाम लेकर आश्रम के नाम पर रटे रटाये ज्ञान को बतलाते हुये, अपनी निजी संपत्ति बना रहे हैं !
ऐसे लोग कुछ भी हो सकते हैं पर कभी भी निर्मल हृदय के संत नहीं हो सकते और समाज को ऐसे तथाकथित स्वघोषित संतो से सावधान रहना चाहिए क्योंकि यही संत आपके सनातन धर्म के सर्वनाश का कारण हैं !!