तन्त्र साहित्य अत्यन्त विशाल है ! प्राचीन समय के दुर्वासा, अगस्त्य, विश्वामित्र, परशुराम, बृहस्पति, वशिष्ठ, नंदिकेश्वर, दत्तात्रेय आदि ऋषियों ने तन्त्र के अनेकों ग्रन्थों का प्रणयन किया, उनका विवरण देना यहाँ अनावश्यक है ! ऐतिहासिक युग में शंकराचार्य के परम गुरु गौडपादाचार्य का नाम उल्लेखयोग्य है ! उनके द्वारा रचित ‘सुभगोदय स्तुति’ एवं ‘श्रीविद्यारत्न सूत्र’ प्रसिद्ध हैं !
मध्ययुग में तांत्रिक साधना एवं साहित्य रचना में जितने विद्वानों का प्रवेश हुआ था उनमें से कुछ विशिष्ट आचार्यो का संक्षिप्त विवरण यहाँ दिया जा रहा है- लक्ष्मणदेशिक: यह शादातिलक, ताराप्रदीप आदि ग्रथों के रचयिता थे ! इनके विषय में यह परिचय मिलता है कि यह उत्पल के शिष्य थे ! आदि शंकराचार्य: वेदांगमार्ग के संस्थापक सुप्रसिद्ध भगवान शंकराचार्य वैदिक संप्रदाय के अनुरूप तांत्रिक संप्रदाय के भी उपदेशक थे ! ऐतिहासिक दृष्टि से पंडितों ने तांत्रिक शंकर के विषय में नाना प्रकार की आलोचनाएं की हैं ! कोई दोनों को अभिन्न मानते हैं और कोई नहीं मानते हैं ! उसकी आलोचना यहाँ अनावश्यक है !
परंपरा से प्रसिद्ध तांत्रिक शंकराचार्य के रचित ग्रंथ इस प्रकार हैं ! किसी-किसी के मत में ‘कालीकर्पूरस्तव’ की टीका भी शंकराचार्य ने बनाई थी ! पृथिवीधराचार्य अथवा ‘पृथ्वीधराचार्य: यह शंकर के शिष्कोटि में थे ! इन्होंने ‘भुवनेश्वरी स्तोत्र’ तथा ‘भुवनेश्वरी रहस्य’ की रचना की थी ! भुवनेश्वरी स्तोत्र राजस्थान से प्रकाशित है ! वेबर ने अपने कैलाग में इसका उल्लेख किया है ! भुवनेश्वरी रहस्य वाराणसी में भी उपलब्ध है और उसका प्रकाशन भी हुआ है !
पृथ्वीधराचार्य का भुवनेश्वरी-अर्चन-पद्धति नाम से एक तीसरा ग्रंथ भी प्रसिद्ध है ! चरणस्वामी: वेदांत के इतिहास में एक प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं ! तंत्र में इन्होंने ‘श्रीविद्यार्थदीपिका’ की रचना की है ! ‘श्रीविद्यारत्न-सूत्र-दीपिका’ नामक इनका ग्रंथ मद्रास लाइब्रेरी में उपलब्ध है ! इनका ‘प्रपंच-सार-संग्रह’ भी अति प्रसिद्ध ग्रंथ है !
सरस्वती तीर्थ: परमहंस परिब्राजकाचार्य वेदांतिक थे ! यह संन्यासी थे ! इन्होंने भी ‘प्रपंचसार’ की विशिष्ट टीका की रचना की ! राधव भट्ट: ‘शादातिलक’ की ‘पदार्थ आदर्श’ नाम्नी टीका बनाकर प्रसिद्ध हुए थे ! इस टीका का रचनाकाल सं॰ 1550 है ! यह ग्रंथ प्रकाशित है ! राधव ने ‘कालीतत्व’ नाम से एक और ग्रंथ लिखा था, परंतु उसका अभी प्रकाशन नहीं हुआ ! पुण्यानंद: हादी विद्या के उपासक आचार्य पुण्यानंद ने ‘कामकला विलास’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी ! उसकी टीका ‘चिद्वल्ली’ नाम से नटनानंद ने बनाई थी ! पुण्यानंद का दूसरा ग्रंथ ‘तत्वविमर्शिनी’ है ! यह कभी भी प्रकाशित नहीं हुआ है !
अमृतानंदनाथ: अमृतानदनाथ ने ‘योगिनीहृदय’ के ऊपर दीपिका नाम से टीकारचना की थी ! इनका दूसरा ग्रंथ ‘सौभाग्य सुभगोदय’ विख्यात है ! यह अमृतानंद पूर्ववर्णित पुणयानंद के शिष्य थे ! त्रिपुरानंद नाथ: इस नाम से एक तांत्रिक आचार्य हुए थे जो ब्रह्मानंद परमहंस के गुरु थे ! त्रिपुरानंद की व्यक्तिगत रचना का पता नहीं चलता ! परंतु ब्रह्मानंद तथा उनके शिष्य पूर्णानंद के ग्रंथ प्रसिद्ध हैं !
सुंदराचार्य या सच्चिदानंद: इस नाम से एक महापुरुष का आविर्भाव हुआ था ! यह जालंधर में रहते थे ! इनके शिष्य थे विद्यानंदनाथ ! सुंदराचार्य अर्थात् सच्चिदानंदनाथ की ‘ललितार्चन चंद्रिका’ एवं ‘लधुचंद्रिका पद्धति’ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं ! विद्यानंदनाथ का पूर्वनाम श्रीनिवास भट्ट गोस्वामी था ! यह कांची (दक्षिण भारत) के निवासी थे !
इनके पूर्वपुरुष समरपुंगव दीक्षित अत्यंत विख्यात महापुरुष थे ! श्रीनिवास तीर्थयात्रा के निमित जालंधर गए थे और उन्होंने सच्चिदानंदनाथ से दीक्षा ग्रहण कर विद्यानंद का नाम धारण किया ! गुरु के आदेश से काशी आकर रहने लगे ! उन्होंने बहुत से ग्रंथों की रचना की जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं- ‘शिवार्चन चंद्रिका’, ‘क्रमरत्नावली’, ‘भैरवार्चापारिजात’, ‘द्वितीयार्चन कल्पवल्ली’, ‘काली-सपर्या-क्रम-कल्पवल्ली’, ‘पंचमेय क्रमकल्पलता’, ‘सौभाग्य रत्नाकर’ (36 तरंग में),’सौभग्य सुभगोदय’, ‘ज्ञानदीपिका’ और ‘चतु:शती टीका अर्थरत्नावली’ ! सौभाग्यरत्नाकर, ज्ञानदीपिका और अर्थरत्नावली सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्रकाशित हुई हैं !
नित्यानंदनाथ: इनका पूर्वनाम नाराणय भट्ट है ! उन्होंने दुर्वासा के ‘देवीमहिम्न स्तोत्र’ की टीका की थी ! यह तन्त्रसंग्रह में प्रकाशित है ! तन्त्रसंग्रह सम्पूर्णानन्दविश्वविद्यालय से प्रकाशित है ! उनका ‘ताराकल्पलता पद्धति’ नामक ग्रंथ भी मिलता है !
सर्वानंदनाथ: इनका नाम उल्लेखनीय है ! यह ‘सर्वोल्लासतंत्र’ के रचयिता थे ! इनका जन्मस्थान मेहर प्रदेश (बांग्लादेश) था ! यह सर्वविद्या (दस महाविद्याओं) के एक ही समय में साक्षात् करने वाले थे ! इनका जीवनचरित् इनके पुत्र के लिखे ‘सर्वानंद तरंगिणी’ में मिलता है ! जीवन के अंतिम काल में यह काशी आकर रहने लगे थे ! प्रसिद्ध है कि यह बंगाली टोला के गणेश मोहल्ला के राजगुरु मठ में रहे ! यह असाधारण सिद्धिसंपन्न महात्मा थे !
निजानंद प्रकाशानंद मल्लिकार्जुन योगीभद्र: इस नाम से एक महान सिद्ध पुरुष का पता चलता है ! यह ‘श्रीक्रमोत्तम’ नामक एक चार उल्लास से पूर्ण प्रसिद्ध ग्रंथ के रचयिता थे ! श्रीक्रमोत्तम श्रीविद्या की प्रासादपरा पद्धति है ! ब्रह्मानंद: इनका नाम पहले आ चुका है ! प्रसिद्ध है कि यह पूर्णनंद परमहंस के पालक पिता थे ! शिक्ष एवं दीक्षागुरु भी थे ! ‘शाक्तानंद तरंगिणी’ और’तारा रहस्य’ इनकी कृतियाँ हैं ! पूर्णानंद: ‘श्रीतत्त्वचिंतामणि’ प्रभृति कई ग्रंथों के रचयिता थे ! श्रीतत्वचिन्तामणि का रचनाकाल 1577 ई॰ है !
‘श्यामा अथवा कालिका रहस्य’, ‘शाक्त क्रम’, ‘तत्वानंद तरंगिणी’, ‘षटकर्मील्लास’ प्रभृति इनकी रचनाएँ हैं ! प्रसिद्ध ‘षट्चक्र निरूपण’, ‘श्रीतत्वचितामणि’ का षष्ठ अध्याय है ! देवनाथ ठाकुर तर्कपंचानन: यह 16वीं शताब्दी के प्रसिद्ध ग्रंथकार थे ! इन्होंने ‘कौमुदी’ नाम से सात ग्रंथों की रचना की थी ! यह पहले नैयायिक थे और इन्होंने ‘तत्वचिंतामणि’ की टीका आलोक पर परिशिष्ट लिखा था ! यह कूचविहार के राजा मल्लदेव नारायण के सभापंडित थे ! इनके रचित ‘सप्तकौमुदी’ में ‘मंत्रकौमुदी’ एवं ‘तंत्र कौमुदी’ तंत्रशास्त्र के ग्रंथ हैं ! इन्होंने ‘भुवनेश्वरी कल्पलता’ नामक ग्रंथ की भी रचना की थी !
गोरक्ष: प्रसिद्ध विद्वान् एवं सिद्ध महापुरुष थे ! ‘महार्थमंजरी’ नामक ग्रंथरचना से इनकी ख्याति बढ़ गई थी ! इनके ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं- “महार्थमंजरी’ और उसकी टीका ‘परिमल’, ‘संविदुल्लास’, ‘परास्तोत्र’, ‘पादुकोदय’, ‘महार्थोदय’ इत्यादि ! ‘संवित्स्तोत्र’ के नाम से गोरक्ष के गुरु का भी एक ग्रंथ था ! गोरक्ष के गुरु ने ‘ऋजु विमर्शिनी’ और ‘क्रमवासना’ नामक ग्रंथों की भी रचना की थी !
सुभगानंद नाथ और प्रकाशानंद नाथ: सुभगांनंद केरलीय थे ! इनका पूर्वनाम श्रीकंठेश था ! यह कश्मीर में जाकर वहाँ के राजगुरु बन गए थे ! तीर्थ करने के लियह इन्होंने सेतुबंध की यात्रा भी की जहाँ कुछ समय नृसिंह राज्य के निकट तंत्र का अध्ययन किया ! उसके बाद कादी मत का ‘षोडशनित्या’ अर्थात् तंत्रराज की मनोरमा टीका की रचना इन्होंने गुरु के आदेश से की ! बाईस पटल तक रचना हो चुकी थी, बाकी चौदह पटल की टीका उनके शिष्य प्रकाशानंद नाथ ने पूरी की ! यह सुभगानंद काशी में गंगातट पर वेद तथा तंत्र का अध्यापन करते थे !
प्रकाशानंद का पहला ग्रंथ ‘विद्योपास्तिमहानिधि’ था ! इसका रचनाकाल 1705 ई॰ है ! इनका द्वितीय ग्रंथ गुरु कृत मनोरमा टीका की पूर्ति है ! उसका काल 1730 ई॰ है ! प्रकाशानंद का पूर्वनाम शिवराम था ! उनका गोत्र ‘कौशिक’ था ! पिता का नाम भट्टगोपाल था ! यह त्र्यंबकेश्वर महादेव के मंदिर में प्राय: जाया करते थे ! इन्होंने सुभगानंद से दीक्षा लेकर प्रकाशानंद नाम ग्रहण किया था !
कृष्णानंद आगमबागीश: यह बंग देश के सुप्रसिद्ध तंत्र के विद्वान् थे जिनका प्रसिद्ध ग्रंथ ‘तंत्रसार’ है ! किसी किसी के मतानुसार यह पूर्णनंद के शिष्य थे परंतु यह सर्वथा उचित प्रतीत नहीं होता ! यह पश्वाश्रयी तांत्रिक थे ! कृष्णानंद का तंत्रसार आचार एवं उपासना की दृष्टि से तंत्र का श्रेष्ठ ग्रंथ है !
महीधर: काशी में वेदभाष्यकार महीधर तंत्रशास्त्र के प्रख्यात पंडित हुए हैं ! उनके ग्रंथ ‘मन्त्रमहोदधि’ और उसकी टीका अतिप्रसिद्ध हैं (रचनाकाल 1588 ई॰) ! नीलकंठ: महाभारत के टीकाकार रूप से महाराष्ट्र के सिद्ध ब्रह्मण ग्रंथकार ! यह तांत्रिक भी थे ! इनकी बनाई ‘शिवतत्वामृत’ टीका प्रसिद्ध हैं ! इसका रचनाकाल 1680 ई॰ है !
आगमाचार्य गौड़ीय शंकर: आगमाचार्य गौड़ीय शंकर का नाम भी इस प्रसंग में उल्लेखनीय है ! इनके पिता का नाम कमलाकर और पितामह का लंबोदर था ! इनके प्रसिद्ध ग्रंथ तारा-रहस्य-वृत्ति और शिवार्चर्धन माहात्म्य हैं ! इसके अतिरिक्त इनके द्वारा रचित और भी दो-तीन ग्रंथों का पता चलता है जिनकी प्रसिद्धि कम है !
भास्कर राय: 18वीं शती में भास्कर राय एक सिद्ध पुरुष काशी में हो गए हैं जो सर्वतंत्र स्वतंत्र थे ! इनकी अलौकिक शक्तियाँ थी ! इनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं- सौभाग्य भास्कर’ (यह ललिता सहस्र-नाम की टीका है, रचनाकाल 1729 ई0) ‘सौभाग्य चंद्रोदय’ (यह सौभाग्यरत्नाकर की टीका है !) ‘बरिबास्य रहस्य’, ‘बरिबास्यप्रकाश’; ‘शांभवानंद कल्पलता'(भास्कर शाम्भवानन्दकल्पलता के अणुयायी थे – ऐसा भी मत है), ‘सेतुबंध टीका’ (यह नित्याषोडशिकार्णव पर टीका है, रचनाकाल 1733 ई॰); ‘गुप्तवती टीका’ (यह दुर्गा सप्तशती पर व्याख्यान है, रचनाकाल 1740 ई॰); ‘रत्नालोक’ (यह परशुराम ‘कल्पसूत्र’ पर टीका है); ‘भावनोपनिषद्’ पर भाष्य प्रसिद्ध है कि ‘तंत्रराज’ पर भी टीका लिखी थी !
इसी प्रकार ‘त्रिपुर उपनिषद्’ पर भी उनकी टीका थी ! भास्कर राय ने विभिन्न शास्त्रों पर अनेक ग्रंथ लिखे थे ! प्रेमनिधि पंथ: इनका निवास कूर्माचल (कूमायूँ) था ! यह घर छोड़कर काशी में बस गए थे ! यह कार्तवीर्य के उपासक थे ! थोड़ी अवस्था में उनकी स्त्री का देहांत हुआ ! काशी आकर उन्होंने बराबर विद्यासाधना की ! उनकी ‘शिवतांडव तंत्र’ की टीका काशी में समाप्त हुई ! इस ग्रंथ से उन्हें बहुत अर्थलाभ हुआ ! उन्होने तीन विवाह किए थे ! तीसरी पत्नी प्राणमंजरी थीं ! प्रसिद्व है कि प्राणमंजरी ने ‘सुदर्शना’ नाम से अपने पुत्र सुदर्शन के देहांत के स्मरणरूप से तंत्रग्रंथ लिखा था ! यह तंत्रराज की टीका है !
प्रेमनिधि ने ‘शिवतांडव’ टीका ‘ मल्लादर्श’, ‘पृथ्वीचंद्रोदय’ और ‘शारदातिलक’ की टीकाएँ लिखी थीं ! उनके नाम से ‘भक्तितरंगिणी’, ‘दीक्षाप्रकाश’ (सटीक) प्रसिद्ध है ! कार्तवीर्य उपासना के विषय में उन्होंने ‘दीपप्रकाश नामक’ ग्रथ लिखा था ! उनके ‘पृथ्वीचंद्रोदय’ का रचनाकाल 1736 ई॰ है ! कार्तवीर्य पर ‘प्रयोग रत्नाकर’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ है ! ‘श्रीविद्या-नित्य-कर्मपद्धति-कमला’ तंत्रराज से संबंध रखता है ! वस्तुत: यह ग्रंथ भी प्राणमंजरी रचित है ! उमानंद नाथ: यह भास्कर राय के शिष्य थे और चोलदेश के महाराष्ट्र राजा के सभापंडित थे !