अयोध्या वैष्णव संस्कृति के विरासत की प्रतिष्ठित नगरी रही है ! यही राजा का जन्म स्थान था तथा यह रामराज्य के यथार्थ का केंद्र भी था ! उस समय समस्त विश्व में वैष्णव सांस्कृतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा यहीं से निर्धारित हुआ करती थी !
यहाँ पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का दिव्य प्रतिष्ठित त्रेतायुग से ही भगवान श्रीराम के पुत्र कुश द्वारा राम जन्मभूमि मंदिर के रूप में बनवाया गया था !
कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के सरयू नदी में तिरोहित होते ही सरयू नदी में भयानक बाढ़ आई, जिसमें अयोध्या का संपूर्ण वैभव बह कर नष्ट हो गया !
भगवान श्रीराम ने अपने जीवनकाल में ही अपने राज्य को चारों भाइयों के पुत्रों के मध्य में विभाजित कर दिया था ! अपने बड़े पुत्र कुश को कुशावती क्षेत्र, जो अयोध्या से दक्षिण विंध्याचल के आस-पास का क्षेत्र था वह राज्य बनाने के लिए दे दिया था !
उन्होंने अपने दूसरे पुत्र लव को अयोध्या उत्तर श्रावस्ती क्षेत्र, जिसे सरावती कहा जाता था, दे दिया था ! यह वैष्णव शासन का मध्य क्षेत्र था ! भरत के पुत्रों में से तक्ष को तक्षशिला और पुष्कल को पुष्कलावती (पेशावर) पश्चिम का क्षेत्र दिया था !
लक्ष्मण पुत्र चंद्रकेतु को मल्ल देश पूर्वी उत्तर प्रदेश और अंगद को कारु पथ मध्य पूर्व क्षेत्र सौंपा था ! शत्रुघ्न के पुत्र सुबाहु और के शत्रुघाती को क्रमशः मथुरा और विदिशा का क्षेत्र दिया था ! अपने परिवार के अलावा बाली पुत्र अंगद को किष्किंधा के साथ दक्षिणापथ का क्षेत्र दिया था और विभीषण को लंका का राज्य प्रदान किया था !
एक के बाद एक वैष्णव राजा अयोध्या में राज्य करते रहे और यह मंदिर यथावत् बना रहा, पूज्य रहा ! द्वापर युग में महाभारत काल में और उसके बाद कलयुग में ईसा पूर्व छठी शताब्दी के बाद तक गौतम बुद्ध के काल तक यह मंदिर सुव्यवस्थित बना रहा ! उसके प्रति आस्था एवं विश्वास में कोई कमी नहीं आई ! इस तरह ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी तक यह मंदिर यथावत् बना रहा !
किन्तु इतिहास से ज्ञात होता है कि मौर्य साम्राज्य के आंशिक पतन के साथ-साथ ईसा से 150 वर्ष पूर्व यूनान के कुषाण वंश के राजा मिनेण्डर ने नागसेन नामक बौद्ध संतों के प्रभाव में आकर अपने राजकीय कर्मचारियों सहित बौद्ध धर्म अपना लिया था ! जिसका वर्णन “मिलिन्द पाहो” नामक ग्रन्थ में मिलता है ! बौद्ध धर्म दीक्षांत समारोह के उपरांत के राजा मिनेण्डर ने बौद्ध संत गुरु से दीक्षा के बदले कुछ भी मांगने को कहा !
उस समय तक गौतम बुद्ध अपने अनुयायियों सहित शरीर त्याग चुके थे ! उनके विचारधारा के समर्थक पूरी दुनिया में सनातन धर्म को नष्ट करके बौद्ध धर्म की स्थापना के लिए सभी सनातन प्रतीक चिन्हों को नष्ट करने के कार्य में लगे हुए थे ! जितने भी सनातन धर्म प्रतीक चिन्ह थे ! उन पर बौद्धों ने अपना अधिकार जमा लिया था !
धर्मान्तरित राजाओं के सहयोग से गुरुकुल की व्यवस्था को नष्ट करके गुरुकुलों की संपत्तियों पर भी बौद्धों ने अपना अधिकार जमा लिया था, किन्तु भगवान श्रीराम के अयोध्या का भव्य जन्म स्थान मंदिर जो कि वहां के क्षेत्रीय क्षत्रिय शासकों के प्रभाव के कारण बौद्धों द्वारा नष्ट नहीं किया जा सका वह राम जन्मभूमि मंदिर बौद्धों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया था !
इसलिए उस बौद्ध संत नागसेन ने यूनान के राजा मिनेण्डर से गुरु दीक्षा के संकल्प के रूप में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर आक्रमण करके इसको ध्वस्त करने का प्राण करवा लिया !
जिसके उपरांत यूनान का राजा मिनेण्डर एक बहुत बड़ी सेना लेकर राम मंदिर को ध्वस्त करने के लिए अफगान के मार्ग से भारी मार काट करता हुआ अयोध्या की तरफ प्रस्थान किया ! जिसमें उस सेना के जगह-जगह रुकने खाने-पीने की व्यवस्था बौद्ध मठों ने बौद्ध अनुयाई शासकों के सहयोग से की और उसने ईसा से 150 वर्ष पूर्व राम मंदिर पर आक्रमण करके उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया !
बौद्ध संत नागसेन द्वारा श्रीराम मंदिर पर आक्रमण करने के पूर्व बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के उपरांत राजा मिनेण्डर का नाम “मिलिंद” रख दिया था ! ताकि उसको मंदिर को नष्ट करने में उसे बौद्धों का जनसमर्थन प्राप्त हो सके !
इस तरह श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर जो भगवान राम के पुत्र महाराजा कुश द्वारा निर्मित किया गया था उसे सर्वप्रथम यूनान के बौद्ध अनुयायी राजा मिनेण्डर द्वारा गिरा कर बौद्धों के शक्ति का प्रदर्शन किया गया था !!