सतयुग काल में समस्त पृथ्वी पर शैव विचारधारा ही विकसित रूप में थी ! इसी का प्रभाव था कि महर्षि भृगु जैसे ऋषि भी भगवान विष्णु के सीने पर लात मारने का समर्थ रखते थे ! इसी समय अनेकों देव( वैष्णव ) असुर ( शैव ) संग्राम और समुद्र मंथन आदि हुये !
किन्तु कालांतर में त्रेता के आरम्भ के साथ ही वैवस्वत मनु और इंद्र के जल विवाद के कारण जल प्रलाव के उपरान्त जब वैवस्वत मनु भारत आये तो अपने परिवार और प्रजा के साथ अवध में सरजू नदी के तट पर स्थापित हुये ! वहां से त्रेता युग की शुरुआत हुई ! यह समय वैष्णव के लिये संघर्ष काल था !
उस समय शैवों का प्रतिनिधित्व करने वाले परशुराम ने 21 बार पूरी पृथ्वी से वैष्णव प्रतिनिधित्व करने वाले राजाओं का संघार किया था ! किन्तु परशुराम के सन्यास ले लेने के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में रावण ने शैव संप्रदाय का रक्षण और संवर्धन का दायित्व संभाला ! जिस वजह से वैष्णव देवताओं के राजा इन्द्र से रावण का लम्बे समय तक युद्ध चलता रहा ! यह युद्ध राम द्वारा रावण के वध पर समाप्त हुआ और यहीं से वैष्णव का संघर्ष काल समाप्त हुआ !
द्वापर वैष्णव का स्थापत्य काल था ! इसी युग में सभी वैष्णव ग्रंथों की रचना हुई और व्यास ( लेखन ) परम्परा शुरू हुई किन्तु महाभारत युद्ध के बाद वैष्णवों की विचारधारा का तेजी से पतन शुरू हो गया ! वैष्णव विचारधारा के पोषक सभी राजा इस महाभारत युद्ध में मारे गये थे ! अतः वैष्णव विचारधारा के समर्थक राजा न होने के कारण वैष्णव आचार्य परम्परा और विचारधारा का पतन शुरू हो गया !
उसी का परिणाम था कि गौतम बुद्ध और महावीर जैन जैसे लोग जो न तो ब्राह्मण थे और न ही वैष्णव विचारधारा के पोषक थे ! इनका प्रभाव तेजी से समाज में बढ़ने लगा और पूरी की पूरी पृथ्वी बहुत जल्द ही बौध और जैन धर्म के प्रभाव में आ गयी ! उन्हें भी राजाओं का समर्थन प्राप्त हुआ !
किंतु नव उदित धर्म के अनुयाई कालांतर में राजाओं के अति संरक्षण के कारण भोगी विलासी हो गये और उसी समय पश्चिम के देशों में अनेकों धर्म उदय होने शुरू हो गये ! जिसमें सबसे व्यवस्थित धर्म इसाई था और सबसे क्रूर धर्म इस्लाम था !
आज शैव जीवन पद्धति के विनाश के कारण सारी पृथ्वी विभिन्न संप्रदाय आक्रांताओं के भय से भयभीत है !