रावण के नाभी में अमृत होने का रहस्य : Yogesh Mishra

रावण ने ब्रह्मा जी से अमृत ज्ञान का वरदान मांगा था और उस ज्ञान से निर्मित उस सिद्ध अमृत को उसने अपनी नाभि में रख लिया था ताकि उसकी मृत्यु न हो सके ! इसी सिद्ध अमृत साधना से उसके कटे हुए अंगो को फिर से उग जाते थे या किसी बीमारी या विकलांगता से खराब हुए अंग फिर से सही हो जाते थे तथा अपनी बूढ़ी, जर्जर और कमजोर हो चुकी शरीर को वह पुनः पुनः फिर से एकदम जवान कर लेता था ! इसके लिये मृत संजीवनी मृत्युंजय साधना एकदम शुद्धता पूर्वक पूरे विधि विधान से किया जाना आवश्यक है !

ब्रह्मा जी को यह विद्द्य भगवान शिव ने सिखायी थी ! बाद में भगवान शिव ने देवासुर संग्राम के समय यह ज्ञान असुरों के गुरु शुक्राचार्य को दिया था ! जिसे कालांतर में मृत संजीवनी विद्या कहा गया !

मृत संजीवनी विद्या, वही विद्या है जिससे देवासुर संग्राम में शुक्राचार्य ने मरे हुए दैत्यों को फिर से जीवित किया था ! इस साधना में कई यौगिक, मान्त्रिक और भौतिक प्रक्रियाएं शामिल होती है ! इस साधना के लिए 6 अति दिव्य औषधियों का मिश्रण लेना होता है और पारे के साथ विशेष बर्तन में विशेष रीति से उसे पकाना पड़ता है ! इन 6 औषधियों में सिर्फ एक ही औषधि सोमरस है ! जो आज सहज ही पृथ्वी पर हिमालय क्षेत्र में उपलब्ध है ! बाकी 5 औषधियाँ उच्च लोकों सांगला आदि घाटी में ही मिलती हैं !

इन औषधियों को पारे के साथ पकाने पर वह तरल एक अग्नि के समान दहकता हुआ, स्वर्ण आभा लिए हुए एक महा दिव्य पेय तैयार होता है ! इसी दिव्य तरल को शरीर में नाभी मार्ग से डाला जाता है और जो डालता है उसे भी कुछ घंटे तक अपनी सांस रोक कर प्राणायाम की कुम्भक की स्थिति में एकाग्र मन से बैठना पड़ता है ! जब तक की वह सम्पूर्ण तरल उस व्यक्ति के शरीर के सभी कोशिकाओं में प्रवेश न कर जाये !

इस क्रिया के पूर्ण होने पर अगले कुछ घंटे में व्यक्ति का शरीर फिर से नये स्वस्थ शरीर के रूप में निर्मित हो जाता है ! और वह अमृत धारण कर लेता है !
यही प्रक्रिया किसी मृत व्यक्ति के साथ उसे पुनः जीवित करने के लिये करनी पड़ती है ! इस प्रक्रिया के उपरांत बस कमी रह जाती है तो उस मृत व्यक्ति में प्राण डालने की ! जिसके बिना यह शरीर जीवित नहीं कहा जा सकता है !

अत: दूसरे चरण में उस नव निर्मित शरीर में प्राण डालने के लिये, उस व्यक्ति को जिसने पिछले कुछ घंटे से अपनी सांस रोक कर रखी थी ! उसे अपना सूक्ष्म शरीर प्राण के साथ, अपने स्थूल शरीर से बाहर निकाल कर उस नव निर्मित शरीर के अन्दर घुसाना पड़ता है ! जिसे परकाया प्रवेश की विशिष्ट स्थिति भी कहते हैं ! फिर अन्दर घुस कर वह मृत संजीवनी मन्त्र के साथ कुछ विशिष्ट मन्त्रों का पूरे विधान से मानसिक अनुष्ठान करता है और मरे हुए शरीर में प्राण का आवाहन करता है ! जिससे उस शरीर में फिर अभीष्ट आत्मा वापस प्रवेश कर जाती है !

इस क्रिया को करने के कुछ क्षणों में मरे हुये व्यक्ति के प्राण वापस उसके देह में आ जाते हैं और मरा हुआ आदमी पुनर्जीवित हो उठता है ! तब नव निर्मित शरीर के प्राण वापस आने पर आवाहन कर्ता को अपना सूक्ष्म शरीर और प्राण वापस अपने शरीर में लौटा लेना चाहिए ! इस तरह मृत संजीवनी की कठिन विद्या सफल होती है ! इस तरह से यह प्रक्रिया की जाती है !
मेरे गुरु जी ने इस क्रिया के द्वतीय अंश के द्वारा मेरी माँ को 1974 में पुनः जीवित किया था जो वर्ष 2017 तक जीवित रहीं ! यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Share your love
yogeshmishralaw
yogeshmishralaw
Articles: 1766