विष्णु स्तम्भ अर्थात कुतुब मीनार भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित है ! जिसका निर्माण सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक खगोलशास्त्री वराहमिहिर राज ज्योतिषी ने 57 ईसा पूर्व करवाया था ! जो कि ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है ! ऊँचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट) और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है ! इसमें 379 सीढियाँ हैं ! मीनार के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं ! जिनमें से अनेक इसके निर्माण काल सन 1192 के हैं ! यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है !
जिसे कुतुबदीन ने नहीं बल्कि सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक और खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था ! कुतुब मीनार के पास जो बस्ती है उसे महरौली कहा जाता है ! यह एक संस्कृत शब्द है जिसे मिहिर-अवहली कहा जाता है ! इस कस्बे के बारे में कहा जा सकता है कि यहाँ पर विख्यात खगोलज्ञ मिहिर जो कि विक्रमादित्य के दरबार में थे रहा करते थे ! उनके साथ उनके सहायक, गणितज्ञ और तकनीकविद भी रहते थे !
वह लोग इस कथित कुतुब मीनार का खगोलीय गणना, अध्ययन के लिए प्रयोग करते थे ! दो सीटों वाले हवाई जहाज से देखने पर यह मीनार 24 पंखुड़ियों वाले कमल का फूल दिखाई देता है ! इसकी एक-एक पंखुड़ी एक होरा या 24 घंटों वाले डायल जैसी दिखती है ! चौबीस पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की इमारत पूरी तरह से एक हिंदू विचार है ! इसे पश्चिम एशिया के किसी भी सूखे हिस्से से नहीं जोड़ा जा सकता है जोकि वहाँ पैदा ही नहीं होता है !
इस टॉवर के चारों ओर हिंदू राशि चक्र को समर्पित 27 नक्षत्रों या तारामंडलों के लिए मंडप या गुंबजदार इमारतें थीं ! कुतुबुद्दीन के एक विवरण छोड़ा है जिसमें उसने लिखा कि उसने इन सभी मंडपों या गुंबजदार इमारतों को नष्ट कर दिया था, लेकिन उसने यह नहीं लिखा कि उसने कोई मीनार बनवाई !
मुस्लिम हमलावर हिंदू इमारतों की स्टोन-ड्रेसिंग या पत्थरों के आवरण को निकाल लेते थे और मूर्ति का चेहरा या सामने का हिस्सा बदलकर इसे अरबी में लिखा अगला हिस्सा बना देते थे ! बहुत सारे परिसरों के स्तंभों और दीवारों पर संस्कृत में लिखे विवरणों को अभी भी पढ़ा जा सकता है ! इस मीनार का प्रवहश द्वार उत्तर दिशा में है, पश्चिम में नहीं, जबकि इस्लामी धर्मशास्त्र और परंपरा में पश्चिम का महत्व है !
यह खगोलीय प्रेक्षण टॉवर था ! पास में ही जंग न लगने वाले लोहे के खंभे पर ब्राह्मी लिपि में संस्कृत में लिखा है कि विष्णु का यह स्तंभ विष्णुपाद गिरि नामक पहाड़ी पर बना था ! इस विवरण से साफ होता है कि मीनार के मध्य स्थित मंदिर में लेटे हुए विष्णु की मूर्ति को मोहम्मद गोरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ने नष्ट कर दिया था ! खंभे को एक हिंदू राजा की पूर्व और पश्चिम में जीतों के सम्मानस्वरूप बनाया गया था ! स्तंभ में सात तल थे जोकि एक सप्ताह को दर्शाते थे, लेकिन अब स्तंभ में केवल पाँच तल हैं !
छठवें को गिरा दिया गया था और समीप के मैदान पर फिर से खड़ा कर दिया गया था ! सातवें तल पर वास्तव में चार मुख वाले ब्रह्मा की मूर्ति है जो कि संसार का निर्माण करने से पहले अपने हाथों में वहदों को लिए थे ! ब्रह्मा की मूर्ति के ऊपर एक सफेद संगमरमर की छतरी या छत्र था जिसमें सोने के घंटे की आकृति खुदी हुई थी ! इस टॉवर के शीर्ष तीन तलों को मूर्तिभंजक मुस्लिमों ने बर्बाद कर दिया जिन्हें ब्रह्मा की मूर्ति से घृणा थी !
मुस्लिम हमलावरों ने नीचे के तल पर शैय्या पर आराम करते विष्णु की मूर्ति को भी नष्ट कर दिया ! लौह स्तंभ को गरुड़ ध्वज या गरुड़ स्तंभ कहा जाता था ! यह विष्णु के मंदिर का प्रहरी स्तंभ समझा जाता था ! एक दिशा में 27 नक्षत्रों के मंदिरों का अंडाकार घिरा हुआ भाग था !टॉवर का घेरा ठीक ठीक तरीके से 24 मोड़ देने से बना है और इसमें क्रमश: मोड़, वृत की आकृति और त्रिकोण की आकृतियां बारी-बारी से बदलती हैं !
इससे यह पता चलता है कि 24 के अंक का सामाजिक महत्व था और परिसर में इसे प्रमुखता दी गई थी ! इसमें प्रकाश आने के लिए 27 झिरी या छिद्र हैं ! यदि इस बात को 27 नक्षत्र मंडपों के साथ विचार किया जाए तो इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता है कि टॉवर खगोलीय प्रेक्षण स्तंभ था !
इसी की नक़ल में मध्य इटली के टस्कनी क्षेत्र में 1173 ई. मे निर्मित आठ मंजिला मीनार का इटली के वास्तुकार बोनेब्रस की देख रेख में बनवाया गया था ! जो 179 फुट ऊँची है तथा लंब से लगभग 4 डिग्री झुकी हुई है ! जो खराब व अनुभवहीन इंजीनियरिंग के कारण एक तरफ ऊध्वार्धर से 5 मीटर से भी अधिक झुक गया ! इसके बाद भी इस पीसा की मीनार को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर दिया गया ! जबकि कई बार इस मीनार को बंद भी किया जा चुका है ! इसका कारण साफ था कि यह कभी भी गिर सकती है !
अब प्रश्न यह है कि इसको किसने और क्यों बनवाया था ! तो इसका जवाब है ! 1173 में पीसा एक अमीरों का शहर था ! वहाँ के लोग अच्छे व्यापारी थे ! जिनका मसाले की खरीद के सिलसिले में भारत के दिल्ली की मंडी में आना जाना था ! जिन व्यापरियों का प्रभाव येरूशलम, कार्थेज, स्पेन, अफ़्रीका, बेल्जियम नॉर्वे और पीसा तक था !
और दूसरी ओर इतालवी नगर के फ़्लॉरेंस के व्यापारियों का प्रभाव था ! जो अरब की मंडी से मसाला खरीदते थे ! जिन्हें भारतीय व्यापारी मसाला की सप्लाई करते थे ! दोनों समूहों के मध्य भारी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा थी ! दोनों ने कई व्यापारिक और वास्तविक युद्ध भी लड़े थे ! पीसा के व्यापारियों ने फ़्लोरेंस के व्यापारियों को नीचा दिखाने और अपना बड़प्पन साबित करने के लिये विष्णु स्तम्भ अर्थात कुतुब मीनार के तर्ज पर पिसा में भी व्यापारियों से चंदा जोड़ कर एक विशाल मीनार बनवाने की शुरुआत की !
इसके पहले वास्तुशिल्पी यानी बनाने वाले व्यक्ति बोनानो पीसानो थे ! मीनार का निर्माण शुरू होने के 12 साल बाद ही साफ़ हो गया कि यह टेढ़ी हो रही है लेकिन तब तक इसकी 8 में से 3 मंज़िलें बन चुकी थीं और आज तक बड़े जतन से इस मीनार को गिरने से बचाया जाता रहा है !
मीनार बनने का काम शुरू होने के लगभग 830 साल बाद पीसा अब उतना बड़ा शहर नहीं रहा है लेकिन अब भी दुनिया भर से लोग पीसा की इस मीनार को देखने आते हैं और दिलचस्प बात यह है कि बहुत से भारतीय, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी लोगों ने पीसा की झुकी हुई मीनार के आसपास अपनी दुकानें सज़ा रखी हैं !
इसके विपरीत मणिकर्णिका घाट काशी का यह मंदिर जिसे काशी करवट मंदिर के नाम से जानते हैं ! यह भी हजारों वर्ष पुराना है और यह भी झुका हुआ है ! परंतु इस पर न तो किसी का ध्यान जाता है और न ही यहां कुछ खास भीड़ लगती है ! ऐसे ही भारत में अनेकों इमारतें हैं !
क्योंकि हमें अपने धरोहरों की जानकारी ही नहीं है और जब तक हमें अपने धरोहरों की जानकारी नहीं होगी तब तक हम अपने संस्कृति को ऐसे ही खोते रहेंगे और दूसरों की संस्कृति को अपनी संस्कृति से ऊंचा मानते रहेंगे !
अब हमें ही अपने धरोहरों की जानकारी सम्पूर्ण विश्व तक पहुंचानी होगी !